श्‍वसनसंस्था – १९

आज से हम फेफड़ों में होनेवाले रक्ताभिसरण की जानकारी प्राप्त करेंगे। फेफड़ों का मुख्य कार्य वायु का आदान-प्रदान ही है। इसमें फेफड़ों में होनेवाले रक्ताभिसरण की मुख्य भूमिका होती हैं। इसकी कुछ विशेषतायें हैं, इसी लिए हम इसके बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। हम सर्वप्रथम रक्ताभिसरण कार्य की दृष्टि से फेफड़ों की रक्तवाहिनियों की रचना के बारे में समझेंगे।

१) फेफड़ों की रक्तवाहिनियाँ : पलमनरी आरटरी दाहिनी वेंट्रीकल के ऊपरी सिरे से शुरु होती हैं। इसकी लम्बाई अधिकतम ५ से.मी. होती है। इस आरटरी की दो शाखायें होती हैं। दाहिनी और बायी। दाहिनी आरटरी दाहिने फेफड़े को रक्त की आपूर्ति करती है। बायी आरटरी बायें फेफड़े को रक्त की आपूर्ति करती है। पलमरी आरटरी की दीवारें वैसे तो पतली ही होती हैं। तुलनात्मक दृष्टि से इनकी मोटाई वेनाकॅवा की मोटाई की दो गुनी होती है तथा शरीर की मुख्य रोहिणी की मोटाई के १/३ होती है। प्रत्येक पलमनरी आरटरी भी मोटी होती है। परन्तु पलमनरी आरटरी की बिलकुल छोटी-छोटी शाखाओं तक भी शरीर की उसी आकार की आरटरी की तुलना में संकरी होती हैं।
पतली दीवारें, संकरी थैली (पोकळी) और तनाव की क्षमता इत्यादि तीनों के कारण इस आरटरी में बड़ी मात्रा में रक्त जमा हो सकता है। फेफड़ों की वेन्स और शरीर की वेन्स की रचना में ज्यादा अंतर नहीं होता। पलमनरी आरटरी में अशुद्ध रक्त होता है तथा पलमनरी वेन्स में शुद्ध रक्त होता हैं।

२) ब्रोंकिअल आरटरीज : ये रक्तवाहनियाँ फेफड़ों और श्वासनलिका (ब्रोंकाय और ब्रोंकिओल्स) के कनेक्टीव टिश्यूज, परदे इत्यादि को रक्त की आपूर्ति करती हैं। ये रक्तवाहिनियाँ वायु के आदान-प्रदान में सम्मिलित नहीं होतीं। इन रक्तवाहनियों में शुद्ध रक्त होता है। कारडियाक आऊटपुट का २ प्रतिशत रक्त इन वाहनियों में रहता है। फेफड़ों की अन्य पेशियों को रक्त की आपूर्ति करने के के बाद इसका रक्त पलमनरी वेन्स में आता है, वहाँ से बांयी एट्रिअम में जाता है।

३) लिंफॅटिक वाहनियाँ : फेफड़ों की सभी प्रकार की सपोर्टिव्ह पेशियों में लिंफॅटिक वाहनियाँ होती हैं। फेफड़ों में आनेवाले विविध कणों को फेफड़ों से बाहर ले जाने का कार्य लिंफटिक वाहनियाँ करती हैं।

– फेफड़ों के अंतर्गत विभिन्न दबाव अथवा प्रेशर्स :
फेफड़ों की रक्तवाहनियाँ दोनों ओर से हृदय से जुड़ी होती हैं। पलमनरी आरटरी दाहिनी वेंट्रिकल से तथा पलमनरी वेन बायीं एट्रिअम से जुड़ी होती है। हदय के चेंबर्स का दबाव फेफड़ों की रक्तवाहनियों में प्रतिबिंबित होता है।

– पलमनरी आरटरी का दबाव :
दाहिनी वेंट्रिकल में सिस्टॉलिक दबाव २५ mm of Hg होता है तथा डायस्टोलिक दबाव ०-१mm होता है। यही दबाव वास्तव में पलमनरी आरटरी में होना चाहिये परन्तु ऐसा नहीं होता। पलमनरी आरटरी की शुरुआत में एक वॉल्व होता है। इसे पलमनरी वॉल्व कहते हैं। दाहिनी वेंट्रिकल के सिस्टोल में यह वॉल्व खुला होता है। सिस्टोल के समाप्त हो जाते ही यह वॉल्व बंद हो जाता है। फलस्वरूप दाहिनी वेंट्रिकल में दबाव शीघ्रता से कम हो जाता है। पलमनरी आरटरी का दबाव धीरे-धीरे कम होता है। इसी लिए पलमनरी आरटरी में सिस्टोलिक दबाव २५ mm of Hg ही होता है परन्तु डायस्टोलिक दबाव ८ mm of Hg होता है।

– फेफड़ों की केशवाहनियों में दबाव : यहाँ पर रक्त का दबाव सिर्फ ७ mm of Hg होता है। पलमनरी आरटरी की तुलना में यह दबाव काफी कम होता है। वायु के आदान-प्रदान के लिए ऐसा फर्क होना महत्त्वपूर्ण होता है।

– पलमनरी वेन्स और बायें एट्रिअम इनके बीच का दबाव :
यहाँ पर दबाव १ mm से लेकर ५ mm of Hg के लगभग होता है। सर्वसामान्यत: यह दबाव २ mm of Hg होता है। फेफड़ों की केशवाहनियों के दबाव का और बायें एट्रिअम के दबाव का सीधा संबंध होता है। बायें एट्रिअम में दबाव बन जाने पर उसका सीधा असर फेफड़ों की केशवाहनियों के रक्त दबाव पर पड़ता है।

– फेफड़ों के रक्ताभिसरण में रक्त की मात्रा :
सामान्यत: शरीर में रक्त की कुल मात्रा में से ९ प्रतिशत रक्त फेफड़ों की केशवाहनियों में होता है। प्रत्येक प्रौढ व्यक्ति में साधारणत: ५ लीटर रक्त होता है। अत: फेफड़ों में ४५० मि.ली. रक्त रहता है। इसमें से मात्र ७० मिली रक्त केशवाहनियों में होता है तथा शेष रक्त पलमनरी आरटरी और वेन में समान मात्रा में रहता है।
फेफड़ों में उपस्थित रक्त आपात स्थिति में शरीर के लिए उपयोगी साबित होता है। रक्तस्राव के फलस्वरूप शरीर के रक्त के बह जाने पर फेफड़ों का रक्त शरीर में भेजा जाता है। साथ ही साथ शरीर की कुछ सर्वसाधारण क्रियाओं में भी फेफड़ों का रक्त शरीर में जाता है। उदाहरणार्थ – गुब्बारा फुलाते समय अथवा बिगुल बजाते समय जब हम जोर लगाकर हवा बाहर निकालते हैं, तब इस क्रिया में लगभग २५० मिली रक्त फेफड़ों से बाहर निकलता है।
हृदयरोग होने पर फेफड़ों में रक्त की मात्रा बढ़ जाती है। हृदय के कार्य में शिथिलता आने पर अथवा मायट्रल वॉल्व में खराबी हो जाने पर लगभग १०० प्रतिशत ज्यादा रक्त फेफड़ों की रक्तवाहनियों में जमा रहता है। इसका असर फेफड़ों की रक्तवाहनियों के कार्यों पर होता है तथा रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) बढ़ जाता है। इसे पलमनरी हायपर टेंशन अथवा फेफड़ों का उच्चदबाव कहा जाता है। इसका विपरित परिणाम श्वसन क्रिया पर होता है। यह परिणाम क्यों होता है, इसकी जानकारी हम अगले लेख में देखेंगे।(क्रमश:)

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