ईमर्जन्सी ख़त्म होने के बाद…

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ – भाग ५४

४ जुलाई १९७५ को पूजनीय सरसंघचालक को गिरफ़्तार किया गया था। २१ मार्च १९७७ को उन्हें रिहा कर दिया गया। रिहाई के बाद बाळासाहब देवरस मुंबई आ रहे थे। रास्ते में कल्याण स्टेशन पर उनके स्वागत के लिए भारीभरक़म भीड़ जमा हुई। पूरे २१ महीनें बाद स्वयंसेवकों को सरसंघचालक के दर्शन हो रहे थे। सभी लोग इस समय भावनाविवश हो गये। उन सबको अभिवादन कर बाळासाहब ने कल्याण स्टेशन पर ही छोटा-सा भाषण किया। ‘अब हम पुनः अपने कार्य में जुट जायेंगे। समाज एवं राष्ट्र की सेवा, यही हमारा कार्य था और इसके आगे भी रहेगा’, ऐसा बाळासाहब ने इस समय कहा।

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मुंबई में भी बाळासाहब का जल्लोष के साथ स्वागत किया गया। यहाँ पर भी बाळासाहब ने, ‘मन में कटुता न रखते हुए, पुनः कार्यरत हो जाइए’ असा सन्देश स्वयंसेवकों को दिया। २२ मार्च १९७७ को देशभर में पुनः संघ की शाखाएँ शुरू हुईं। उस दिन स्वयंसेवकों का उत्साह देखनेलायक था। सारा देश भारतमाता की जयजयकार से गूँज उठा था।

२४ मार्च १९७७ को नागपुर के कस्तुरचंद पार्क में बाळासाहब के सार्वजनिक सत्कार का कार्यक्रम संपन्न हुआ। यहाँ पर बाळासाहब ने संघ की भूमिका स्पष्ट की। ‘जो कुछ भी हुआ, उसे भूल जाओ और क्षमा कर दो’ ऐसा सन्देश यहाँ पर भी सरसंघचालक ने दिया। महात्मा गाँधीजी की हत्या के बाद संघ पर पाबंदी लगायी गयी थी और स्वयंसेवकों पर अत्याचार भी हुए। फिर भी संघ पर लगी पाबंदी हटायी जाने के बाद श्रीगुरुजी ने स्वयंसेवकों को मन में बैरभावना न रखने का आवाहन किया था। इमर्जन्सी के बाद बाळासाहब ने बिलकुल ऐसी ही भूमिका अपनायी।

संघ ने यह क्षमाशील भूमिका अपनायी। लेकिन वह आसान नहीं था, इस बात पर हमें ग़ौर करना होगा। इमर्जन्सी के दौरान देशभर में ढ़ाये गये ज़ुल्मों के भयानक परिणाम कइयों को भुगतने पड़े। इन ज़ुल्मों के कारण कइयों को अपनी जान गँवानी पड़ी थी। कइयों को ज़िन्दगीभर के लिए अपाहिज़ बनना पड़ा था। कइयों ने अपने रोज़गार का साधन गँवाया था। यह सबकुछ भूलकर, अत्याचार करनेवालों को क्षमा करना सबके लिए आसान नहीं था। २१ महीनों के इस दर्दनाक अनुभव के बाद किसी के भी मन में क्रोध निर्माण होना बिलकुल स्वाभाविक था।

‘ये अत्याचार करनेवाले कोई विदेशी नहीं थे। ‘अपने ही दाँत और अपने ही होंठ’ ऐसा मानकर हमें क्रोध को भूलना चाहिए। यदि हम बदले की भावना मन में क़ायम रखेंगे और उन्हीं के जैसा आचरण करेंगे, तो समाज में चहूँ ओर अस्थिरता, अशान्ति फैलेगी। उसके लिए हम भी ज़िम्मेदार रहेंगे’, यह बाळासाहब अगले समय में अपने देशभर के प्रवास में बार बार दोहराते रहे। ‘चुनावों में जनता पार्टी को मिली सफलता का श्रेय संघ को दिया जाता है। इससे अधिक हमें और क्या चाहिए! बुरे समय में जिस तरह हम सबने खुद पर नियंत्रण रखा और जनतन्त्र की रक्षा की, वैसा ही संयम हमें विजय के बाद भी दर्शाना आना चाहिए’ ऐसा कहते हुए बाळासाहब ने ‘पराजय के दौर में अपना साहस क़ायम रखें और विजय के बाद अपना मन विशाल करें’, इन विन्स्टन चर्चिल के उद्गारों की याद दिला दी।

इमर्जन्सी को हटाया गया, इसका श्रेय संघ को दिया जा रहा है। ऐसे समय हम सबको नम्रता दर्शानी चाहिए, इसका भी एहसास बाळासाहब ने स्वयंसेवकों को करा दिया। महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त होने पर ‘जेताओं को चाहिए कि वे विवेक दर्शाएँ’ ऐसा भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था। प्रतिदिन भगवत्गीता का पाठ करनेवाले सरसंघचालक ने यही संदेश स्वयंसेवकों को दिया और मन विशाल कर, अत्याचार करनेवालों को क्षमा करने का आवाहन किया। ऐसी सहिष्णुता दर्शायी, तो समाज को उसके बहुत बड़े लाभ प्राप्त होते हैं, यह इतिहास ने समय समय पर दिखा दिया है।

दक्षिण अफ्रीका में वर्णविद्वेषी गौरवर्णियों की सत्ता रहते हुए कृष्णवर्णियों पर अनन्वित अत्याचार हुए। कृष्णवर्णियों को अधिकारों के लिए झगड़नेवाले नेता नेल्सन मंडेला को २७ साल जेल में बन्द कर दिया गया। इतना होने के बाद जब यह देश गौरवर्णियों के चंगुल से आज़ाद हो गया, तब प्रतिशोध की प्रबल भावना कृष्णवर्णिय जनता के मन में उमड़कर आयी थी। लेकिन यही संयम बरतने की घड़ी है, ऐसा कहते हुए नेल्सन मंडेला ने जनता को शान्त रहने का सन्देश दिया। इस कारण दक्षिण अफ्रीका में अराजक नहीं मचा। आज दक्षिण अफ्रीका अन्य अफ्रीकी देशों से कितना आगे निकल गया है! देशहित को मद्देनज़र रखते हुए मंडेला ने अपनायी समन्वयक नीति का लाभ दक्षिण अफ्रीका को आज भी मिल रहा है।

जेल से रिहा होने के बाद सरसंघचालक का देशभर में प्रवास शुरू हुआ। इस प्रवास के दौरान स्वयंसेवकों के साथ साथ कई मान्यवर उनसे मिलने आते थे। दिल्ली के प्रवास के दौरान अटल बिहारी वाजपेयीजी, लालकृष्ण अडवाणीजी, नानाजी देशमुख, दत्तोपंतजी ठेंगडी इन्होंने सरसंघचालक से मुलाक़ात की। इस समय, ‘हमें अब पिछला सबकुछ भूलकर पुनः कार्य में जुट जाना है। पुनः देश में इस तरह इमर्जन्सी न हों इसलिए हम सब प्रयास करेंगे’ ऐसा आवाहन बाळासाहब ने इस भाषण में भी किया।

मुंबई में रहते विख्यात साहित्यिका दुर्गा भागवत ने बाळासाहब को अपने घर आने का निमंत्रण दिया। दुर्गाबाई ने इमर्जन्सी के विरोध में प्रखर भूमिका अपनायी थी, यह सभी जानते हैं। उनके घर बाळासाहब पधारे, उस समय अन्य कुछ साहित्यिक भी उपस्थित थे। इस समय बाळासाहब के साथ सबकी दिलखुलास चर्चा हुई। इमर्जन्सी के दौरान संघ ने किये हुए कार्य की इन सबने तहे दिल से प्रशंसा की।

महाराष्ट्र हायकोर्ट के निवृत्त न्यायमूर्ति शहा भी बाळासाहब से मिलने संघ कार्यालय में आये और अपनी कृतज्ञता व्यक्त की। ७ मई १९७७ को मुंबई स्थित शिवाजी पार्क में एक सार्वजनिक कार्यक्रम हुआ। इस कार्यक्रम में, नानी पालखीवालाजी और भूतपूर्व न्यायमूर्ति मोहम्मद करीम छागलाजी उपस्थित थे। इन दोनों ने भी संघ पर प्रशंसा के फूल बरसाये। न्यायमूर्ति छागला ने किया हुआ भाषण मुझे अब भी याद है।
‘कौन कहता है कि संघ फॅसिस्ट है? मैं इतने सालों से संघ के कार्य को देखता आया हूँ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यह देशभक्तों का संगठन है। संघ युवाओं पर देशभक्ति के संस्कार करता है। संघ किसी के भी विरोध में नहीं है’ ऐसा छागला ने इस समय कहा था। इतना ही नहीं, बल्कि ‘आनेवाले समय में हमें बाळासाहब देवरस का मार्गदर्शन प्राप्त होता रहें’ ऐसी उम्मीद छागला ने इस समय व्यक्त की। ‘मैं भी संघ का कार्य करने तैयार हूँ’ ऐसा नानी पालखीवालाजी ने इस समय कहा। ‘संघ के ज्येष्ठ प्रचारक नानाजी देशमुख का मार्गदर्शन मुझे हमेशा प्राप्त होता है’ ऐसा भी इस समय पालखीवालाजी ने कहा था।

मुंबई में बाळासाहब को पत्रकार परिषद में कई प्रश्‍न पूछे गये। ख़ासकर संघ की हिंदुराष्ट्र की संकल्पना, हिंदुओं की परिभाषा क्या है, इन सारे प्रश्‍नों के बाळासाहब ने तर्कशुद्ध उत्तर दिए। ‘इस देश में जो कोई भी रहते हैं, वे संस्कार एवं सभ्यता से हिंदु ही हैं। हिंदु यह जीवनपद्धति है, विचारधारा है’, यह बाळासाहब ने स्पष्ट किया। ‘संघ की शाखा में अन्य धर्मों के लोगों को क्यों नहीं आने दिया जाता’ ऐसा प्रश्‍न भी एक व्यक्ति ने पूछा। ‘यह प्रश्‍न हमें हिंदु ही पूछते हैं। ‘आप हिंदु समाज को संस्कारित कर रहे हो, क्या वैसे ही संस्कार हमारे बच्चों पर भी करेंगे’ ऐसा यदि हमें अन्य धर्मों के लोगों द्वारा पूछा गया, तो हम यक़ीनन ही उसका स्वागत करेंगे’ ऐसा उत्तर बाळासाहब ने दिया।

‘भारतमाता सबकी है और इस देश में हुए महापुरुष सबके लिए आदरणीय हैं, यह संघ की शाखा में आने की इच्छा रहनेवाले हरएक ने मान्य करना ही चाहिए। बाहर से इस भूमि में आये धर्मों का पालन करनेवालों ने ‘अपने पूर्वज भी इसी भूमि में जन्मे थे’ इस बात को कभी भी भूलना नहीं चाहिए, इतनी ही मेरी अपेक्षा है’ ऐसा बाळासाहब ने इस समय स्पष्ट किया।

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