इमर्जन्सी की असंतुष्टता

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ – भाग ५१

इमर्जन्सी के घोषित हो जाने के बाद सरकार का दमनतंत्र देशभर में जोर से शुरू हो गया। केवल सरकार के खिलाफ़ होने के शक़ से कई लोगों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया था। संघ के साथ संलग्न होनेवाले लोगों पर भी पुलिस के अत्याचार शुरू हो गये थे। वहाँ पर संघ के पदाधिकारियों को और स्वयंसेवकों को क्या सहना पड़ा होगा, इस के बारे में हम केवल सोच ही सकते है।

RSS - Rameshbhai Mehtaएक लाख स्वयंसेवकों को गिरफ़्तार करके ज़ेल में रख दिया था। हजारों स्वयंसेवक भूमिगत हो गये थे। इसके बावजूद भी संघ को रोकना सरकार के लिए मुमक़िन नहीं हो पाया। इस कारण बेचैन हुई सरकार ने पूरी ताकत का इस्तेमाल किया, फिर भी इमर्जन्सी के खिलाफ़ चल रहे संघ के कार्य में कोई भी रुकावट नहीं आयी।

इस दौरान संघ के द्वारा किये गये काम के बारे में बताने से पहले हमें यह जान लेना चाहिए की संघ के द्वारा सरकार का विरोध क्यों किया गया। आज़ादी के बाद पहली ही बार देशभर में इमर्जन्सी लगायी गयी थी। सरकार के विरोधक देश भर में अराजक फैला रहे है, यह आरोप लगाकर सरकार ने यह इमर्जन्सी लगायी थी। लेकिन इस इमर्जन्सी के लागू करने से पहले ही, सरकार के रवैय्ये का विरोध करनेवालों को गिरफ़्तार करना, जिस प्रकार हो सके उस रास्ते से उन पर ज़ुल्म ढाना, यह सिलसिला ही देशभर में शुरू हो चुका था। भ्रष्टाचार,अनुचित व्यवहार और सरकार की गलत नीतियों के कारण देशभर में असंतोष फैला हुआ था, ना की विरोधकों के कारण। लेकिन सरकार इसे मानने के लिए तैयार ही नहीं थी। इमर्जन्सी लगाकर सरकार ने जनतंत्र का गला घोटना आरंभ किया था। अर्थात् इसके बाद जो संघर्ष शुरू हुआ, वह जनतंत्र व्यवस्था को बनाये रखने के लिए ही था। इस संघर्ष में संघ अग्रसर था।

हजारों स्वयंसेवक भूमिगत होकर कार्य करने लगे। इनमें से कुछ लोगों को गिरफ़्तार करने में पुलिस को कामयाबी ज़रूर हासिल हो गयी। लेकिन संघ के काम में रुकावट नहीं आयी। उस समय आज जैसे माध्यम (मिडीया) नहीं थे। अखबार, साप्ताहिक पत्र और मसिकपत्रिकाएँ इन पर सरकार के द्वारा सेन्सॉरशिप लगायी गयी थी। उस समय का प्रभावशाली माध्यम, रेडियो तो सरकार के ही अधिकार में था। ऐसे समय में सरकार के दमनतंत्र की लोगों को जानकारी देनेवाले पर्चे बाँटना, पोस्टर्स लगाना जैसे काम भूमिगत हो चुके स्वयंसेवक करते थे। इतना ही नहीं, बल्कि विभिन्न स्थानों पर मिटींग्ज् लेकर इअमरजन्सी के विरोध में लोगों में जागृति करने का काम स्वयंसेवक कर रहे थे।
सरसंघचालक बाळासाहेब देवरसजी को गिरफ़्तार करके येरवडा जेल में रखा गया था। लेकिन सरकार्यवाह माधवराव मुळेजी और दत्तोपंत ठेंगडीजी, मोरोपंत पिंगळेजी, भाऊराव देवरसजी, यादवराव जोशीजी, केदारनाथ सहानीजी, नानाजी देशमुखजी और संघ के अन्य ज्येष्ठ स्वयंसेवक भूमिगत हो गये थे। उन्होंने पुलिस को खबर न लगने देते हुए देश भर में घूमना शुरू किया। पुलिस इन सभी महत्त्वपूर्ण लोगों के पीछे पड़ गयी थी। इन में से कुछ लोगों को अगर कोई पकड़कर देता है, तो इसके लिए इनाम भी ज़ाहिर किया गया था। लेकिन संघ का नेटवर्क कितना अभेद्य है, इस बात का अनुभव थोडे ही समय में सरकार को हुआ।

भूमिगत हुए लोगों को छिपाने के काम के लिए संघ से जुड़े हुए हजारों परिवार आगे बढ गये। पुलिस जिनका पीछा कर रही थी, ऐसे भूमिगत स्वयंसेवकों को इन परिवारों ने अपने घरों में आसरा दिया और उनकी रक्षा की । क्योंकि ये लोग देश के जनतंत्र के लिए ही लड़ रहे है, इसका यक़ीन इन परिवारों को था। समाज संघ के साथ खड़ा हुआ, इसी कारण यह संभव हो सका। संघ की इस शक्ति को देखकर हमेशा संघ का विरोध करनेवाले समाजवादी विचारधारा के लोग भी इस समय में अचंभित हो गये थे। ये लोग भी इमर्जन्सी के खिलाफ़ लड़ रहे थे। इन में कुछ लोगों को गिरफ़्तार किया गया था, तो कुछ लोग भूमिगत हो गये थे। भले ही हमारे विरोधक हो, लेकिन ये लोग भी जनतंत्र के लिए ही संघर्ष कर रहे है, इस बात  को ध्यान में रखकर संघ ने इन लोगों की भी यथासंभव सहायता की।

हमारे यहाँ आप लोगों जैसा नेटवर्क नहीं है, ऐसा कहते हुए, संघ से उस दौरान काफ़ी अपेक्षाएँ होने की बात ये लोग करते थे। इस दौरान एक जेष्ठ नेता की पत्नि ने उसकी सहेली को खत लिखा था। इस खत में उसने उसके पति पर संघ का बहुत बड़ा प्रभाव हो जाने की बात कही थी। इस नेता को गिरफ़्तार किया गया था। लेकिन जेल से छूटने के बाद मेरे पति संघ के गणवेश में ही बाहर आ जायेंगे, ऐसा इस खत में कहा था। वैसा हुआ नहीं, वह अलग बात है। जेल से छूटने के बाद, संघ के द्वारा की गयी सहायता के बारे में न सोचते हुए ये नेता संघ की जबरदस्त आलोचना करने लगे। इस आलोचना में कोई सच्चाई थी, ऐसा भी नहीं या इस प्रकार आलोचना करते हुए, इमर्जन्सी के दौरान संघ से द्वारा मैंने बहुत बड़ी सहायता ली थी, इस बात का ज़िक्र तक उस नेता ने नहीं किया। लेकिन संघ ऐसी बातों को दिल पर नहीं लेता।

रात के अँधेरे में संघ के कार्यकर्ता कहाँ से आते हैं, दीवार पर पोस्टर्स चिपकाकर कैसे निकल चले जाते है, ये बातें पुलिस की समझ में ही नही आती थी। भूमिगत स्वयंसेवकों को पकड़ने के लिए जी जान से कोशिश करने के बावजूद भी विशेष सफलता हासिल नहीं हो रही थी, इससे पुलिस भी परेशान हो गयी थी लेकिन पुलिस दल के द्वारा देशभर में किये गये अत्याचारों का उल्लेख करते समय, यहाँ पर एक बात दर्ज़ करना ज़रूरी महसूस होता है कि पुलिस को दिये गये आदेशों का पालन करते समय इस बात का एहसास हो रहा था कि जो कुछ हो रहा है वह गलत है।

इस दौरान स्वयंसेवकों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। गिरफ़्तार किये गये लोगों में से कई परिवार की ज़िम्मेदारियाँ उठा रहे थे। कमानेवाला पति या बेटा जेल में होने के कारण कई परिवारों को तकली़फें उठानी पड़ी। लेकिन संघ ने उन्हें छोड़ नहीं दिया। इनकी कुछ सहायता हो, इस हेतु संघ के द्वारा इन परिवारों को कुछ आर्थिक सहायता दी जाती थी। इसी के साथ संघ का संदेश भी इन परिवारों को मिलता था। ‘यह धर्मयुद्ध है और उत्पन्न हुई स्थिति का हमें धीरज से मुकाबला करना होगा’ संघ के द्वारा इन परिवारों को यह संदेश दिया जाता था। इन परिवारों ने भी इस बात का मन से स्वीकार किया था। गिरफ़्तार हुए स्वयंसेवक जेल में भी संघ की शाखा का आयोजन करते थे। इतना ही नहीं, बल्कि इमर्जन्सी के दौरान भले ही संघ की शाखा का खुले आम आयोजन न किया गया हो, फिर भी देश भर मे कई स्थानों पर भजनमंडली रामधून शुरू करते थे। लोगों से भी इसे बहुत अच्छा प्रतिसाद मिल रहा था। ये कौन लोग है, यह पुलिस भी जान चुके थे। लेकिन संघ से जुड़ी कोई भी बात खुले आम न होने के कारण इस कार्यक्रम का विरोध भी नहीं किया जा सकता था।

पुलिस को चकमा देने के लिए, भूमिगत हुए संघ के ज्येष्ठ स्वयंसेवक इस दौरान अपना नाम बदलकर, भेस बदलकर घूमते थे। इस बारे में मुझे सरकार्यवाह माधवराव मुळेजी की जरूर याद आती है। वे हमेशा धोती पहनते थे। लेकिन इमर्जन्सी के दौरान इन माधवराव मुळेजी ने उस समय फॅशन में रहनेवाली बेलबॉटम पँट पहनना शुरू किया था। इतना ही नहीं, तो उनके लिए मैंने विग बनवाया था। इस बदले हुए भेस में कोई भी माधवरावजी को पहचान नहीं सका। इस दौरान माधवरावजी का स्वास्थ्य ठिक नहीं था। उन पर इलाज चल रहा था। लेकिन इस बात की परवाह न करते हुए माधवरावजी भूमिगत हो गये। लेकिन उनके इलाज में रुकावट न हो इसलिए इमर्जन्सी के दौरान लंबे समय तक मैंने उन्हें मेरे जुहू स्थित घर  पर रखा था। मेरे भाई की पत्नि डॉक्टर थी। इस कारण माधवरावजी का अच्छी तरह खयाल रखा गया।

पुलिस और स्वास्थ्य की परवाह न करते हुए माधवरावजी बेझिझक अलग अलग नामों से देशभर में घूमकर इमर्जन्सी के खिलाफ़ आवाज़ उठा रहे थे। केवल देश में ही नहीं, बल्कि विदेश में भी सरकार की नीतियों का विरोध करने का काम संघ के द्वारा किया गया। उस समय राज्यसभा के सदस्य रहनेवाले डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी के खिलाफ़ वॉरंट निकला था। लेकिन यदि वे राज्यसभा में अनुपस्थित रहते, तो उनकी सदस्यता भी रद हो जाती। इस कारण विदेश में होनेवाले डॉ. स्वामी के लिए राज्यसभा में उपस्थित होना ज़रूरी था। राज्यसभा में आने के बाद डॉ. स्वामी को गिरफ़्तार करना आसान बात थी। लेकिन राज्यसभा में हाजिर रहकर, सरकार को चुनौति देनेवाला छोटा सा भाषण करके सुब्रमण्यम स्वामी वहाँ से निकल गये और फिर से विदेश पहुँच भी गये। यह सब कुछ संघ के द्वारा करवाया गया था। इसकी सारी योजना माधवरावजी मुळे के द्वारा बनायी गयी थी।

सरकार्यवाह माधवरावजी मुळे के मार्गदर्शन में कई ज्येष्ठ स्वयंसेवक देशभर में घूम रहे थे। भूमिगत रहकर जनजागरण कर रहे थे। पूरे देश पर इसका प्रभाव पड़ रहा था।

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