परमहंस-७१

तीर्थयात्रा से रामकृष्णजी, मथुरबाबू और अन्य जन पुनः दक्षिणेश्‍वर लौट आने के कुछ ही दिन बाद एक दुखदायी घटना घटित हुई – हृदय की पत्नी का देहान्त हो गया।

वैसे देखा जाये, तो हृदय हालाँकि अपने मामा की – रामकृष्णजी की सेवा दिल लगाकर करता था, मग़र फिर भी वह मूलतः बहुत ही व्यवहारी और भौतिक सुखों की चाह होनेवाला ऐसा था; और अपना तथा अपने परिवार का जीवन भौतिकदृष्टि से अधिक से अधिक सुखी कैसे होगा, इसी दिशा में उसके सारे क्रियाकलाप चालू रहते हैं। दक्षिणेश्‍वर भी वह आया था, वह महज़ नौकरी की तलाश में! केवल रामकृष्णजी की सन्निधता में रहते समय ही वह भौतिक सुखों को थोड़ाबहुत भूल जाता था।

रामकृष्णजी की प्रायः सभी साधनाएँ हालाँकि उसकी आँखों के सामने हुईं थीं, मग़र फिर भी उनके जरिये रामकृष्णजी को हुए अनुभवों का आध्यात्मिक महत्त्व समझ पाने की उसकी क्षमता नहीं थी। केवल – ‘क्या कभी ऐसे अनुभव मुझे भी हो सकते हैं’ ऐसा विचार कभीकभार उसके मन में उठता था।

रामकृष्ण परमहंस, इतिहास, अतुलनिय भारत, आध्यात्मिक, भारत, रामकृष्णलेकिन पत्नी के देहान्त के बाद उसे भारी मात्रा में वैराग्य प्राप्त हुआ था और उस दौर के लिए ही सही, लेकिन वह भौतिक सुखों को भूल चुका था। अतः उस दौर में उसका नामस्मरण, जाप, ईश्‍वर के बारे में मनन-चिंतन आदि बातें वृद्धिंगत होने लगीं थीं। अपने मामा की आध्यात्मिक ऊँचाई उसे भली-भाँति ज्ञात थी। ‘मामा मेरी सेवा से खुश है। अतः मैं यदि मामा से कहता हूँ कि मुझे भी भगवान के दर्शन करने हैं, तो वह ‘ना’ नहीं कहेगा। वह मुझे भगवान के दर्शन ज़रूर करायेगा’ इसका उसे यक़ीन था। उसने वैसा रामकृष्णजी से कहा।

लेकिन जैसा वह सोचता था, वैसा हुआ नहीं। रामकृष्णजी ने उसे प्यार से समझाकर बताया कि ‘तुम्हारे मन में ईश्‍वर के दर्शन की लगन निर्माण हुई है, यह अच्छा ही है। लेकिन इस तरह अपनी इच्छा से या माँगकर अनुभवों की प्राप्ति नहीं होती, बल्कि वे उस देवीमाता की इच्छा से प्राप्त होते हैं। लेकिन उसके लिए मेहनत करने की हमारी तैयारी होनी चाहिए और हर एक का समय भी आना चाहिए। समय से पहले यदि किसी को कोई आध्यात्मिक अनुभव हुआ, तो वह उसे पचेगा नहीं। फिलहाल माता ने, मेरी उपासनाओं के दौर में मेरा खयाल रखने की सेवा तुम्हें सौंपी है, जिसे तुम बड़ी ही निष्ठा से तथा प्रेमपूर्वक कर रहे हो। तुम्हारा भी समय आने ही वाला है और उचित समय पर तुम्हें भी ऐसे अनुभव प्राप्त होने ही वाले हैं। इसलिए जल्दबाज़ी मत करना।’

लेकिन हृदय को यह स्पष्टीकरण कुछ ख़ास रास नहीं आया और वह सहम गया। तब मजबूरन् रामकृष्णजी ने कहा कि ‘मैं कौन होता हूँ किसी को दर्शन करानेवाला? देवीमाता की जैसी इच्छा होगी, वैसा ही होगा। वैसे भी, मुझे भी उसी की इच्छा से ये सारे अनुभव प्राप्त हुए हैं।’

लेकिन उसके बाद हृदय ने – ‘मैं इन अनुभवों को प्राप्त करके ही रहूँगा’ ऐसे ज़िद पर उतरकर नामस्मरण, पूजन आदि जोश के साथ करना शुरू किया और अचरज की बात यानी धीरे धीरे वह भी कुछ पलों के लिए ही सही, लेकिन भावसमाधि को प्राप्त होने के वाक़ये घटित होने लगे। मथुरबाबू तक जब यह बात पहुँची, तब पहले उन्हें यह सब हृदय का नाटक ही प्रतीत हुआ और उन्होंने रामकृष्णजी को इसके बारे में पूछा। तब उन्होंने शांति से कहा, ‘नहीं, वह वास्तव में यह सबकुछ अनुभव कर रहा है। उसने देवीमाता से तहे दिल से वैसी प्रार्थना की, वह माता तक पहुँच गयी और अब उसे भी ऐसे अनुभव होने की शुरुआत हुई है। लेकिन चिन्ता मत करना। जल्द ही माता उसे इसमें से बाहर निकालेगी।’

मथुरबाबू के साथ रामकृष्णजी का यह संभाषण होने के बाद दूसरे ही दिन एक वाक़या घटित हुआ। देर रात हृदय ने देखा कि रामकृष्णजी उठकर अपने उपासनास्थल की ओर – पंचवटी की दिशा में जा रहे हैं। वह देख – ‘हो सकता है, उन्हें पानी, तौलिया आदि हमेशा की चीज़ों की ज़रूरत पड़ें; इसलिए मैं यदि वहाँ पर रहूँ तो अच्छा होगा’ ऐसा सोचते हुए हृदय उन चीज़ों को लेकर उनके पीछे पीछे चलने लगा। चलत चलते बीच में ही एक विलक्षण घटना घटित हुई!

हृदय को ऐसा दिखायी दिया कि ‘अपने आगे आगे चल रहे रामकृष्णजी ये भौतिक हड्डी-मांस से न बने होकर, वे बहुत ही तेजःपुंज ऐसे प्रकाश के बने हैं और इस प्रकाश ने पूरा रास्ता ही प्रकाशमान कर दिया है। मुख्य बात, चलते हुए उनके कदम ज़मीन को स्पर्श नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे हवा में अधांतर चल रहे हैं।’

पहले तो हृदय को वह अपने मन का वहम ही लगा। वह पुनः पुनः आँखें मल-मलकर देखने लगा, फिर भी वही दृश्य। फिर उसने आजूबाजू देखा, तो आजूबाजू की सारीं चीज़ें – मंदिर, गंगानदी, नदी के घाट, पेड़, घर, रास्ते पर पड़े पत्थर….यह सबकुछ, जैसा हमेशा होता है वैसा ही था – भौतिक चीज़ों से बना हुआ। लेकिन रामकृष्णजी तो, जैसा उसे दिखायी देने लगे थे, ठीक वैसे ही अभी भी दिख रहे थे – प्रकाशरूप। ‘यह यक़ीनन ही अपनी उपासनाओं का परिणाम है’ ऐसा विचार उसके मन में मँड़राने लगा।

फिर सहज ही उसकी नज़र अपने खुद के शरीर की ओर गयी…. और उसे मानो आश्‍चर्य का झटका ही लगा….!

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