परमहंस-५३

भैरवी के मार्गदर्शन में चल रहीं रामकृष्णजी की उपासनाओं के दौरान उन्हें कई ईश्‍वरीय अनुभव हुए।

इनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण था, उनकी कुंडलिनी जागृत हो रही होने का अनुभव। ‘इस कालावधि में जब कोई भी मेरे साथ किसी भौतिक या व्यावहारिक बात पर बोलने की कोशिश करता, तब मेरा सिर इस कदर दर्द करता था जैसे कोई मेरे मस्तिष्क पर आघात कर रहा हो। इस कारण मैं जितना हो सके उतना लोगों की संगत टालकर पंचवटी में एकांत में ही यह उपासना करता था’ ऐसा आगे चलकर उन्होंने अपने शिष्यों के साथ इस बारे में बात करते हुए कहा था।

यह कुंडलिनी शक्ति मूलाधार से सहस्रार तक किस प्रकार प्रवास करती है, उस बारे में आसान-सा विवरण भी उन्होंने अपने शिष्यों को बताया। ‘उसका (कुंडलिनी का) यह प्रवास कई बार, ऊपर की ओर सरकनेवालीं झुनझुनियों के रूप में मुझे महसूस होता था। लेकिन उन झुनझुनियों के तरी़के हर बार अलग अलग होते थे। कभी चिंटी के जैसी सीधी कतार में तथा एकसमान गति में, कभी मेंढ़क की तरह छोटी छोटी छलाँगों के रूप में, कभी साँप की तरह वक्राकार गति में, कभी पंछियों जैसी कम-अधिक रफ़्तार में, तो कभी वानर जैसी लंबी लंबी छलाँगों में ये झुनझुनियाँ ऊपर की ओर सरकती रहती थीं’ ऐसा वे अपने शिष्यों को बताते थे।

ईश्‍वरीय अनुभव हुए

लेकिन अचरज की बात यह है कि अपने शिष्यों के साथ इस अनुभव के बारे में बात करते समय, एक विशिष्ट पड़ाव के आगे यह अनुभव वे कभी भी शब्दबद्ध करके नहीं बता सके। उन्होंने लाख कोशिशें कीं, लेकिन बताते समय एक विशिष्ट पड़ाव तक आने के बाद अपने मुँह से शब्द ही नहीं उच्चारित हो रहे हैं, ऐसा अनुभव उन्हें हो जाता था।

साथ ही, उन्हें इन उपासनाओं के दौरान अष्टसिद्धियों की प्राप्ति हुई होने का उल्लेख भी उन्होंने आगे चलकर अपने शिष्यों के साथ बात करते हुए किया था। ‘लेकिन उसके बाद तुरन्त ही मुझे कालीमाता के दर्शन हुए और ‘सच्चे साधक के लिए ये सिद्धियाँ किस प्रकार उपयोगी नहीं हैं और दरअसल वे उसकी साधना में किस तरह बाधा ही बन सकती हैं’ यह उसने मुझे दियाखा। तब से इन सिद्धियों को मैं मेरी साधना के बीच आनेवालीं अड़चनें ही मानता आया हूँ और आप लोग भी ऐसी सिद्धियाँ प्राप्त होने पर उनका विनियोग न करें’ ऐसा उन्होंने अपने शिष्यों से अनुरोधपूर्वक कहा।

इसीके साथ रामकृष्णजी को इस विश्‍व के आदिकारण के दर्शन भी इस उपासना के दौरान हुए, ऐसा उन्होंने अपने शिष्यों को बताया। इस दर्शन में उन्हें, एक दीप्तिमान त्रिकोणीय आकार हर पल अनगिनत ब्रह्मांडों की उत्पत्ति कर रहा है, ऐसा दृश्य दिखायी दिया। उसीके साथ उन्हें ॐकार जैसी अनाहत ध्वनि? भी सुनायी दे रही थी और इस बीच उन्हें पशुपक्षियों की भाषा भी समझने लगी थी, ऐसा वर्णन उन्होंने शिष्यों के पास किया, ऐसा उल्लेख भी पाया जाता है।

इसी प्रकार के अन्य भी कुछ ईश्‍वरीय अनुभव उन्हें इन उपासनाओं के दौरान हुए। उन्हीं में से एक लक्षणीय अनुभव उन्होंने अपने शिष्यों से यह बताया कि ‘इस विश्‍व को नचानेवाली भगवान की माया का मानवरूप में दर्शन उन्हें हुआ।’

इस दर्शन में उन्हें दिखायी दिया कि ‘गंगानदी में से एक बहुत ही सुंदर स्त्री बाहर आकर पंचवटी की दिशा में चलकर आयी। वह स्त्री गर्भवती थी और अब किसी भी पल बच्चे को जन्म दे सकती है ऐसी स्थिति में थी। थोड़े ही समय में उसने एक सलोने बालक को जन्म दिया। जन्म देते ही उसने उस बालक को हल्के से गले तो लगाया; लेकिन….लेकिन अगले ही पल उसने भयंकर रूप धारण किया और स्वयं ने ही जन्म दिये उस बालक को अपने विकराल दातों से चबाचबाकर निगल लिया और वह पुनः गंगानदी में अदृश्य हो गयी और वह दृश्य खत्म हुआ।’

‘इस भौतिक जग में उलझे मनुष्य की इसी प्रकार माया दयनीय अवस्था करती है, इसलिए मानवी जन्म के असली उद्देश्य को पहचानो’ ऐसा उन्होंने अपने शिष्यों को सचेत किया।

इन्हीं उपासनाओं के दौरान रामकृष्णजी को कई तेजस्वी देवताओं के दर्शन भी हुए। कई देवताओं ने उमका मार्गदर्शन भी किया। उनमें से ‘षोडशी’ एवं ‘राजराजेश्‍वरी’ इन रूपों की ईश्‍वरीय सुंदरता तो शब्दों में बयान कर नहीं सकते, ऐसा उन्होंने अपने शिष्यों के साथ बात करते समय नमूद किया है।

इस दौर में उनकी अंगकांति भी इतनी तेजस्वी बन चुकी थी कि देखनेवाले की नज़र हटती ही नहीं थी। अधिकांश समय अंतर्मुख रहनेवाले रामकृष्णजी इस बात से परेशान होते थे कि अपनी बाह्यकांति की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित हो रहा है। फिर वे कालीमाता से प्रार्थना करते कि ‘मैं चाहता हूँ भीतरी सुन्दरता (अंतर्सुन्दरता), वह मुझे दिला दे….यह बाहरी सुन्दरता मुझे नहीं चाहिए।’

अहम बात यह है कि ये सारीं उपासनाएँ उन्होंने इतने कम समय में करके दिखायीं कि भैरवी तो दंग ही रह जाती थी। आम साधक को जहाँ कोई उपासना पूरी करने में कई दिन लग जाते थे, वह उपासना रामकृष्णजी द्वारा दो-तीन दिनों में ही पूरी की जाती थी।

ऐसी यह रामकृष्णजी की उपासनामार्ग पर की मार्गक्रमणा तेज़ी से आगे बढ़ रही थी।

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