परमहंस-१३९

रामकृष्णजी के काशीपुरस्थित वास्तव्य में भविष्यकालीन रामकृष्ण संप्रदाय की नींव रखी गयी। आध्यात्मिक प्रगति करने की एकमेव चाह होनेवाले उनके कुछ पटशिष्य, जिनके मन का रूझान संन्यस्तवृत्ति की ओर था, ऐसे शिष्यों के माध्यम से यह नींव रखी गयी।

उनमें से कुछ पटशिष्य –

नरेंद्र – आगे चलकर ‘स्वामी विवेकानंद’ नाम से विख्यात।

राखाल – राखालचंद्र घोष। आगे चलकर ‘स्वामी ब्रह्मानंद’ नाम से विख्यात। ‘रामकृष्ण मठ एवं मिशन’ के पहले अध्यक्ष।

योगिन – योगीन्द्रनाथ चौधरी। आगे चलकर ‘स्वामी योगानंद’ नाम से विख्यात।

रामकृष्ण परमहंस, इतिहास, अतुलनिय भारत, आध्यात्मिक, भारत, रामकृष्णबाबुराम – बाबुराम घोष। आगे चलकर ‘स्वामी प्रेमानंद’ नाम से विख्यात।

निरंजन – नित्यनिरंजन घोष। आगे चलकर ‘स्वामी निरंजनानंद’ नाम से विख्यात।

शरत – शरतचंद्र चक्रवर्ती। आगे चलकर ‘स्वामी शारदानंद’ नाम से विख्यात।

तारक – तारकनाथ घोषाल। आगे चलकर ‘स्वामी शिवानंद’ नाम से विख्यात। ‘रामकृष्ण मठ एवं मिशन’चे दूसरे अध्यक्ष।

शशी – शशिभूषण चक्रवर्ती। आगे चलकर ‘स्वामी रामकृष्णानंद’ नाम से विख्यात। रामकृष्णजी के अन्तिम समय में उनकी अतुलनीय सेवा की और उनके पश्‍चात् अपने अन्य संन्यस्त बांधवों का एक माँ की तरह खयाल रखा।

हरि – हरिनाथ चट्टोपाध्याय। आगे चलकर ‘स्वामी तुर्यानंद’ नाम से विख्यात। अमरीका स्थित कॅलिफोर्निया में रामकृष्ण आश्रम की स्थापना।

गंगाधर – गंगाधर गंगोपाध्याय (घातक)। आगे चलकर ‘स्वामी अखंडानंद’ नाम से विख्यात। रामकृष्णसंप्रदाय का प्रसार करते समय भारत के विभिन्न भागों में अकालग्रस्तों के लिए, भूकंपग्रस्तों के लिए कार्य।

काली – कालीप्रसाद चंद्र। आगे चलकर ‘स्वामी अभेदानंद’ नाम से विख्यात। इंग्लैंड़, फ्रान्स, स्वित्झर्लंड आदि देशों में रामकृष्णसंप्रदाय का प्रसार।

लटू – रख्तुराम। आगे चलकर ‘स्वामी अद्भुतानंद’ नाम से विख्यात।

गोपालदा – गोपालचंद्र घोष। आगे चलकर ‘स्वामी अद्वैतानंद’ नाम से विख्यात। बूढ़ापे में रामकृष्णजी के संपर्क में आने के बावजूद भी, केवल दृढ निग्रह एवं रामकृष्णजी पर के विश्‍वास के बलबूते पर आध्यात्मिक ऊँचाई हासिल की। ढलती उम्र में भक्ति शुरू करनेवालों के लिए आदर्श।

(इनमें आगे चलकर रामकृष्णजी की समाधि के बाद शारदाप्रसन्न (आगे चलकर ‘स्वामी त्रिगुणातीतानंद’ नाम से विख्यात), सुबोधचंद्र घोष (आगे चलकर ‘स्वामी सुबोधानंद’ नाम से विख्यात), हरिप्रसन्न चट्टोपाध्याय (आगे चलकर ‘स्वामी विज्ञानानंद’ नाम से विख्यात) ऐसे कुछ लोग आ मिले, जिन्होंने भी संन्यास लेकर अपना शेष जीवन रामकृष्णसंप्रदाय के प्रसार हेतु व्यतीत किया।)

ऐसे इन तेरह लोगों को एक दिन अकस्मात् रामकृष्णजी द्वारा संन्यासियों के वस्त्र प्रदान किये गये। वह हुआ यूँ – रामकृष्णजी बीमारी से ठीक हों, इसलिए वैद्यकीय ईलाज के साथ साथ प्रार्थना, मन्नतें, दानधर्म आदि भी लोग कर रहे थे। रामकृष्णजी के उपरोक्त पट्टशिष्यों में से एक गोपालदा ने उस दौर में उनके पास ऐसी इच्छा ज़ाहिर की कि उन्हें संन्यासियों को भगवे वस्त्र और रुद्राक्षमालाएँ बाँटनी हैं। तब रामकृष्णजी ने वहाँ बैठे उनके इन पट्टशिष्यों की ओर निर्देश करते हुए कहा, ‘इनसे अच्छे संन्यासी तुम्हें और कहाँ मिलेंगे!’ और फिर गोपालदा ने वे भगवे वस्त्र और रुद्राक्षमालाएँ लाकर रामकृष्णजी को सौंप दीं, जिन्हें फिर रामकृष्णजी ने अपने हाथों से अपने पट्टशिष्यों में बाँट दिया। उस समय ठीक वे ही लोग वहाँ उपस्थित थे, जिनके मन में संन्यस्तवृत्ति बढ़ चुकी थी। केवल एक वस्त्र शेष रह गया। रामकृष्णजी ने उसे गिरीशचंद्र घोष के लिए रखने के लिए कहा, जो दरअसल गृहस्थाश्रमी थे, लेकिन उनकी निष्ठा तथा भक्ति किसी भी प्रकार से इन संन्यस्तवृत्ति के शिष्यों से कम नहीं थी।

इस प्रकार रामकृष्णसंप्रदाय के अग्रसर साधक रहनेवाले प्रथम शिष्यों को रामकृष्णजी से ही अनुग्रह प्राप्त हुआ था।

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