पाकिस्तान एफएटीएफ की ‘ग्रे लिस्ट’ में कायम

पॅरिस – ‘फायनॅन्शिअल अ‍ॅक्शन टास्क फोर्स-एफएटीएफ’ की ‘ग्रे लिस्ट’ से पाकिस्तान को छुटकारा नहीं मिला है। आतंकवादियों की आर्थिक घेराबंदी ना करनेवाले देशों की इस लिस्ट से पाकिस्तान को छुटकारा मिलें, इसके लिए पाकिस्तान ने जानतोड़ कोशिश की थी। अन्तर्राष्ट्रीय वित्तसंस्थाओं से कर्ज सहायता और निवेश प्राप्त होने के लिए इस लिस्ट से बाहर निकलना पाकिस्तान के लिए आवश्यक था। लेकिन यह संभावना खारिज होने के कारण पाकिस्तान की बड़ी निराशा हुई है। पाकिस्तान के साथ ही तुर्की, जॉर्डन और माली इन देशों को भी एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में सहभागी करा लिया गया है।

grey-list-pak-fatfएफएटीएफ के अध्यक्ष डॉ. मार्कस प्लेयर ने यह घोषणा की। इस ग्रे लिस्ट से बाहर निकलने के लिए एफएटीएफ ने पाकिस्तान के सामने ३४ माँगें रखीं थीं। इनमें से ३० माँगों पर पाकिस्तान ने ठीक प्रदर्शन दर्ज किया। लेकिन अभी भी एफएटीएफ उससे संतुष्ट नहीं हुआ है। संयुक्त राष्ट्र संगठन ने आतंकवादी घोषित करनेवालों पर कड़ी कार्रवाई करने की उम्मीद पूरी करने में असफल रहने के कारण पाकिस्तान को और थोड़ी देर इस लिस्ट में रहना ही पड़ेगा, ऐसा डॉ. प्लेअर ने कहा है। मॉरिशस और बोट्स्वाना इन देशों को एफएटीएफ की लिस्ट से बाहर निकलने में सफलता प्राप्त हुई है। इस पृष्ठभूमि पर पाकिस्तान की यह असफलता अधिक ही स्पष्ट रूप से दुनिया के सामने आई है।

इसी बीच कोमा आतंकवादियों को पैसे सप्लाई करना और निधि का अवैध हस्तांतरण इन दो बातों की दखल लेकर एफएटीएफ ने तुर्की को भी अपनी ग्रे लिस्ट में डाला है। आतंकवाद की जागृति केंद्र के रूप में कुख्यात बने पाकिस्तान का निकटतम सहयोगी देश ऐसी तुर्की की पहचान बनी थी। इस कारण तुर्की का इस लिस्ट में समावेश गौरतलब साबित होता है। तुर्की का भी प्रवास पाकिस्तान की दिशा में शुरू हुआ होने के स्पष्ट संकेत इससे मिल रहे हैं।

सन २०२२ के अप्रैल महीने तक पाकिस्तान ग्रे लिस्ट में कायम रहनेवाला है। इस लिस्ट से पाकिस्तान को छुटकारा नहीं मिलेगा, क्योंकि भारत ने ही अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके पाकिस्तान को इस लिस्ट में डाला है, ऐसा आरोप इस देश के पत्रकार कर रहे हैं। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कुछ ही महीने पहले कहा था कि भारत के प्रयासों के कारण ही पाकिस्तान एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में है। उनके इस बयान का विपर्यास करके पाकिस्तान के नेता और माध्यम अपनी असफलता का ठीकरा भारत पर फोड़ते चले आ रहे हैं।

पाकिस्तान की मुद्रा होनेवाले रुपये की दर प्रति डॉलर १७३ तक फिसली होकर, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था टूटने की कगार पर आई है। महँगाई ने पाकिस्तानी जनता की कमर तोड़ दी होकर, अगर ऐसी ही गिरावट कायम रही, तो पाकिस्तान मिट्टी में मिले बगैर नहीं रहेगा, ऐसे दावे इस देश से ही किए जा रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में पाकिस्तान को अन्तर्राष्ट्रीय वित्तसंस्थाओं की वित्तसहायता की बहुत बड़ी आवश्यकता है। सन २०२१ से २३ इस कालावधी में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को लगभग ५१.६ अरब डॉलर्स की अतिरिक्त आवश्यकता होने की जानकारी अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष ने दी थी। लेकिन इतनी निधि इकट्ठा करने की अथवा निवेश प्राप्त करने की क्षमता पाकिस्तान ने गँवाई है। इसी कारण एफएटीएफ के इस फैसले के बाद पाकिस्तान के पल्ले घोर निराशा आई है।

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