स्नायुसंस्था भाग – ०६

आज हम अपने शरीर की तीसरी प्रकार की स्नायु संस्था की जानकारी प्राप्त करने वाले है। स्थूल मसल्स अथवा स्नायु। इन स्नायुपेशियों में आकुंचन की प्रथिने ठराविक पद्धति से रची हुयी नहीं होती है। साथ ही साथ इनमें सारकोमिअर्स भी नहीं होते हैं। इसके कारण सूक्ष्मदर्शी में ये पेशियां सीधी अथवा स्मूथ दिखायी देती हैं। इसीलिये इन्हें स्मूथ स्नायु कहते हैं। इन स्नायुओं के कार्यों की शुरुआत व कार्यों का नियमन, दोनों हम तय नहीं कर सकते। अत: इन्हें इनव्हॉलंटरी (involuntary) स्नायु भी कहते हैं।

Muscular sys- स्नायु पेशियां

इसकी स्नायु पेशियां अन्य दो प्रकार की स्नायु की पेशी की अपेक्षा आकार से छोटी होती है। इसकी लम्बाई में काफी लचीलापन होता है। १५ मायक्रोमीटर लम्बाई की सबसे मोटी स्नायुपेशी छोटी रक्तवाहिनियों में होती हैं। वहीं सबसे लम्बी पेशी गर्भाशय के स्नायु में (२०० मा.मी.) होती है। गर्भावस्था में इसी पेशी की लम्बाई ५०० मा. मीटर तक बढ़ जाती है। स्नायुपेशी स्पिन्डल के आकार की होती है। यानी मध्यभाग में मोटी व दोनों सिरों पर पतली होते जाने वाली। इसकी रचना अलग होती है। एक पेशी का मध्यभाग दूसरी पेशी के सिरेंवाले भाग के पास होता है। इस तरह की रचना के कारण ये पेशियां एक-दूसरे पर मजबूरी से बै़ठ जाती हैं।

इस प्रकार के स्नायु सर्वसाधारण रुप से शरीर की विभिन्न खोखली नलिकाओं की दीवारों में पाये जाते हैं। उदा.अन्ननलिका, रक्तवाहनियाँ, श्‍वासनलिका इत्यादि।

अवयवों के अनुसार इनके पेशियों की रचना अलग-अलग होती है। रक्तवाहिनियों की दीवारों में ये पेशियां एक-दूसरे पर मजबूती से चिपकी होती हैं। इनके बीच में थोड़ी सी भी जगह नहीं होती है। इसके कारण रक्तवाहिनियों की दीवारों में दूसरी रक्तवाहनियां अथवा केशनलिकायें नहीं घुस सकती। आँतों के स्नायु में इन पेशियों के दो स्तर होते हैं। अंदरुनी स्तर की पेशी आड़ी रेखा में अथवा गोलाकार होती हैं तथा बाहरी स्तर की पेशी खड़ी रेषा में होती हैं।

स्केलेटल स्नायु की तुलना में इसकी रक्त आपूर्ति अत्यल्प होती हैं। स्नायुपेशी के चारों ओर रहनेवाली केशनलिकायें यहाँ पर नहीं होती हैं।

स्मूथ स्नायु, स्केलेटल स्नायु के बराबर ताकत अपने आकुंचन से निर्माण कर सकते हैं। परन्तु इन स्नायुओं की कुछ विशेषतायें हैं तथा अवयवों के अनुसार इन विशेषताओं का उपयोग होता है।

१)कुल आकार के लगभग ८०% तक ये स्नायु आकुंचित हो सकते हैं। (स्केलेटल स्नायु में यह मात्रा ३०% होती है)। इसका लाभ हमें हमारे मूत्राशय में दिखायी देता है। इस में जमा हुआ लगभग सारा मूत्र शरीर के बाहर निकालना संभव होता है।

२)स्नायुतंतुओं में तनाव बनाये रखने के लिये इन्हे काफी कम मात्रा में ऊर्जा का उपयोग करना पड़ता है। इसका उदाहरण रक्तवाहिनियों में दिखायी देता है। इसकी पेशियों को केशनलिकाओं से मिलनेवाले रक्त की आपूर्ति बिल्कुल ही नहीं होती। फिर भी रक्तवाहिनियों के स्नायुओ में हमेशा तनाव बना रहता है।

इस पेशी में भी पेशीपंजर (cytoskeleton) व आकुंचन करनेवाले प्रथिनों के सूक्ष्मतंतु होते हैं (filaments) पेशी पंजर पेशी की लम्बरेखा में होता है तथा प्रथित तंतु इस रेखा के साथ लघुकोण बनाते हैं। पेशी के आंकुचन के दौरान यह कोण बढ़ता है। इसका मायोसिस तंतु १.५ से २ मा.मीटर लम्बा होता है तथा अंक्टीन तंतू ५ मा. मीटर लम्बा होता है। आकुंचन के समय मायोसिन तंतू की संपूर्ण लम्बाई पर अ‍ॅक्टीन तंतु सरकते हैं (slide) इसके फलस्वरूप ही स्नायु का आकुंचन ज्यादा मात्रा में होता है।

ऑटोनोमिक चेतासंस्था से सिंपथेटिक व पॅरासिंपथेटिक दोनो प्रकार के तंतुओं की आपूर्ति इस स्नायु को होती है। विभिन्न अवयवों में इसके कार्य भिन्न-भिन्न होते हैं। रक्तवाहिनियां, ट्रॅकिआ, अथवा बिंड पाईप के स्नायु धीरे-धीरे आकुंचित होते हैं तथा आँतों, मूत्राशय के स्नायु तेजगति से आकुंचित होते हैं।

हमनें देखा कि इस प्रकार के स्नायु, जहाँ जहाँ पर नलिकामय अवयव (tubular) अथवा खोखले (hollow) अवयव होते हैं, वहाँ वहाँ पर सभी अवयवों में पाये जाते हैं। यदि किन्हीं भी कारनों से इस खोखले स्थान व नलिका में बाधा निर्माण हुयी तो इन स्नायु पर तनाव व उनके कार्य बढ़ जाते हैं। इसी लिये इस स्नायु की विपरीत बाढ़ किंवा hypertrophy होती हैं। इस दरम्यान स्नायु की पेशियों की संख्या बढ़ जाती है तथा स्नायुपेशी का आकार भी दो गुना से चार गुना तक बढ़ जाता है।

Regeneration अथवा पुन:निर्माण की क्षमता इन स्नायुओं में पायी जाती है। आँतों के स्नायुओं में यह क्षमता कम होती हैं। जख्म होने के बाद शुरु होने वाली यह पुननिर्माण की क्रिया कभी-कभी आवश्यकता से ज्यादा ही लम्बी हो जाती है। यह कभी-कभी हानिकारक भी साबित हो सकती है। उदा.- हृदय की रक्तवहिनियों की बाधा दूर करके उन्हें डायलेट अथवा चौड़ा करने के लिये बलून अ‍ॅन्जिओप्लास्टी की जाती है। इस क्रिया के दरम्यान रक्तवाहिनियों के अंदरुनी आवरण पर छोटे-छोटे जख्म हो जाते हैं। इन जख्मों के भरते समय बनने वाला व्रण यदि जरूरत से ज्यादा बढ़ जाये तो उस रक्तवाहिनी में फिर से बाधा निर्माण हो सकती है।

हमारे शरीर के तीन प्रकार के स्नायुओं में साम्य व विभिन्नता आज तक हमने देखी। अब अगले लेखों में हम देखेंगे कि ये स्नायु अवयवों पर अथवा हाड़ों पर किस तरह जुड़ते हैं।

(क्रमश:)

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