माली में हुई लष्करी बगावत के बाद राष्ट्राध्यक्ष ने दिया इस्तीफा

malisoldiersबमाको – पश्‍चिमी अफ्रिका के माली में हुए लष्करी विद्रोह के बाद देश के राष्ट्राध्यक्ष इब्राहिम कैता और प्रधानमंत्री बोबो सिसे ने इस्तीफा दिया है। मंगलवार की सुबह राजधानी बमाको के करीबी काती रक्षा अड्डे पर सेना ने बगावत करके राष्ट्राध्यक्ष, प्रधानमंत्री एवं वरिष्ठ मंत्रियों को कब्ज़े में रखा था। देश को अराजकता से बचाने के लिए बगावत करनी पड़ी, यह दावा करके जल्द ही नए चुनाव और अंतरिम सरकार का ऐलान किया जाएगा, यह जानकारी लष्करी प्रवक्ता ने साझा की है। लेकिन, इस बगावत पर अमरीका के साथ संयुक्त राष्ट्र संगठन, यूरोपिय महासंघ और अफ्रिकी महासंघ ने कड़ी आलोचना की है और सैनिकों को अपने ठिकानों पर वापिस लौटने का निवेदन किया है। माली में वर्ष 2012 के बाद हुई सेना की यह दूसरी बगावत है।

मंगलवार की सुबह राजधानी बमाको से करीबन 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित काती रक्षा अड्डे पर तैनात लष्करी दल ने गोलीबारी करके वरिष्ठ अधिकारियों को बंधक बनाया। इसके कुछ घंटे बाद ही सैनिकों ने राजधानी बमाको में सरकारी दफ्तरों पर कब्ज़ा करने में कामयाबी पाई। शाम तक एक लष्करी दल ने राष्ट्राध्यक्ष के निवास स्थान पर राष्ट्राध्यक्ष कैता और प्रधानमंत्री सिसे को हिरासत में लिया। इसके बाद इन दोनों नेताओं को काती के रक्षा अड्डे पर रखा गया। देर रात तक राष्ट्राध्यक्ष इब्राहिम कैता ने इस्तीफा देने का और संसद बरखास्त करने का ऐलान किया।

mali-presidentसेना के एक गुट ने दखलअंदाज़ी करने का निर्णय किया है और हमारे सामने अन्य कोई भी विकल्प बचा नही हैं। हम देश से प्रेम करते हैं और खूनखराबा करने की हम इच्छा नहीं रखते, इन शब्दों में राष्ट्राध्यक्ष कैता ने सरकारी समाचार चैनल पर अपने इस्तीफा देने की जानकारी साझा की। उनके इस्तीफे के कुछ घंटे बाद ही सेना के प्रवक्ता ने अपनी भूमिका स्पष्ट करनेवाला निवेदन जारी किया। देश का नियंत्रण हाथ में रखनेवाले व्यक्तियों से गलती होने से अपना देश असुरिक्षतता, अंधाधुंदी और अराजकता की खाई में गिर गया है। इससे देश को बचाने के लिए कार्रवाई करनी पड़ी, यह दावा बगावत करनेवाले लष्करी गुट के प्रवक्ता कर्नल इस्माईल वागू ने किया। ‘नैशनल कमिटी फॉर द सैल्वेशन ऑफ द पीपल’ नाम से सक्रीय हुए इस लष्करी गुट ने अगली जनतांत्रिक प्रक्रिया के लिए देश के नागरी एवं सियासी गुटों को निमंत्रित कर रहे हैं, यह जानकारी प्रदान की।

बीते कुछ वर्षों से पश्‍चिमी अफ्रिका के साहेल क्षेत्र में इस्लामी आतंकवाद का केंद्र बने माली में हुए इस लष्करी बगावत पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने कड़ी आलोचना की है। माली के सुरक्षाबल या अन्य गुटों से हो रहे किसी भी असंवैधानिक बदलावों का अमरीका विरोध करेगी, यह प्रतिक्रिया अमरीका के साहेल क्षेत्र में नियुक्त विशेष दूत जे.पीटर फैम ने व्यक्त की है। संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद ने बुधवार के दिन माली के मुद्दे पर तुरंत बैठक आयोजित की। अफ्रिकी महाद्विप के इकोवास एवं अफ्रिकी महासंघ के प्रमुख संगठनों ने माली की गतिविधियों पर कड़ी चिंता व्यक्त की है। इकोवास ने अपने सदस्य देशों को माली से जुड़ी अपनी सीमाएं बंद करने के और सभी व्यवहार बंद करने के आदेश दिए हैं।

maliवर्ष 2012 के बाद माली में लष्करी बगावत होने का यह दूसरा अवसर है। पहले हुई बगावत का गलत लाभ उठाकर तुआरेग बागी गुट और आतंकी संगठनों ने देश के अहम शहरों पर कब्ज़ा करने की कोशिश की थी। इस संघर्ष के दौरान उस समय की सरकार को सहायता प्रदान करने के लिए फ्रान्स ने लष्करी दखलअंदाज़ी की थी। इसके बाद माली में मौजूद आतंकवाद को रोकने के लिए फ्रान्स के लष्करी दल के साथ संयुक्त राष्ट्रसंगठन के शांति सैनिक और अमरीका के सलाहकार इस देश में पहुँचे थे। लेकिन, इसके बावजूद बीते कुछ वर्षों में माली में सेना पर हो रहे आतंकी हमलों में लगातार बढ़ोतरी होती रही है और इस पर नियंत्रण पाने में सरकार भी नाकामी हुई थी।

यह नाकामी और आर्थिक स्तर पर हुई गिरावट के मुद्दे पर बीते कुछ महीनों से माली में सरकार के खिलाफ़ प्रदर्शन हो रहे हैं। प्रदर्शनकारी और सरकार के बीच अब तक हुई बातचीत भी असफल साबित हुई है। बीते महीने में प्रदर्शनकारी और सुरक्षा बल के बीच हुए संघर्ष में 10 लोगों की मौत हुई थी। ऐसे में विरोधकों ने राष्ट्राध्यक्ष कैता के इस्तीफे की मांग लगातार की थी। लेकिन, मंगलवार के दिन सेना ने की हुई यह बगावत प्रदर्शनों का हिस्सा ना होने की बात विरोधकों ने स्पष्ट की है। इसकी वजह से यह बगावत और माली में सरकार का तख्तापलट होना ध्यान आकर्षित करनेवाला साबित हुआ है।

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