क्रान्तिगाथा-७७

९ अगस्त १९२५ का दिन। सहारनपुर से लखनौ की तरफ़ जा रही ८ डाऊन ट्रेन काकोरी स्टेशन के पास आते ही अचानक से रूक गयी। शायद किसी ने चेन खींच ली होगी। ट्रेन रूक गयी और कुछ ही देर में बहुत कुछ घटित हुटा। अलग अलग जगह से इकट्ठा किया गया पैसा, जो अँग्रेज़ सरकार की तिजोरी का हिस्सा था, उसे इस ट्रेन के द्वारा लखनौ ले जाया जा रहा था।

काकोरी स्टेशन के पास रूकी इस ट्रेन में रहनेवाली कॅश लूट ली गयी। भारतीयों से वसूल किया गया यह पैसा, जो अँग्रेज़ों की तिजोरी में जा रहा था, उसे लूटा गया था। अँग्रेज़ सरकार की तिजोरी को लगा हुआ पहला धक्का! फिर क्या? खोज शुरू की गयी। अँग्रेज़ों की तिजोरी को हाथ लगाने की जुर्रत भला किसने की? चप्पा चप्पा छान मारना शुरू हो गया। किसने किया यह काम?

फौरन एक के बाद एक करके भारतीयों को ग़िरफ्तार किया जाने लगा। घटना घटित हुई काकोरी के पास, लेकिन ग़िरफ्तारी सारे युनायटेड प्रोव्हिन्स में शुरू हो गयी, यहाँ तक कि बंगाल में से भी क्रान्तिकारियों को ग़िरफ्तार किया गया। बनारस, अलाहाबाद, आगरा, बंगाल, इटाह, कानपुर, हरदोइ, मथुरा, मेरठ, शाहजहानपुर, लखनौ और कई अन्य जगह भी गिरफ़्तारियाँ शुरू हो गयी। कुल ४० क्रान्तिकारियों को ग़िरफ़्तार किया गया।

और अब अँग्रेज़ सबूत इकट्ठा करने लगे। एच.आर.ए. (हिन्दुस्थान रिपब्लिकन असोसिएशन) के सदस्यों का यह काम था। इस घटना को अंजाम देनेवाले रामप्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाकउल्ला खान इन प्रमुख क्रान्तिकारियों को गिरफ़्तार करने में अँग्रेज़ों को देर लगी।

काकोरी काण्ड’ के नाम से स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में विख्यात हुई यह घटना। दर असल एच.आर.ए. के क्रान्तिकारियों ने भारतीयों से अँग्रेज़ों के द्वारा जमा किया गया यह पैसा भारतीयों को और भारत को आज़ाद करने के लिए लूटा था। लेकिन अँग्रेज़ों के नज़रिये से यह गुनाह था।

फिर क्या! गिरफ़्तार किये गये लोगों पर मुकदमा चलाया गया। ४० क्रान्तिकारियों में से रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला खान, राजेन्द्रनाथ लाहिरी और रोशन सिंह इन चारों को फाँसी की सज़ा सुनायी गयी। अन्य १६ को ३ साल से लेकर १४ साल तक कारावास की सज़ा सुनायी गयी और शायद बाकी के २० लोगों को महज़ शक की बुनियाद पर ही ग़िरफ़्तार किया गया था!

दोषी क़रार दिये गये क्रान्तिकारियों को अलग अलग जेल में रखा गया और उन्हें कैदियों की पोशाक पहनने दी गयी। लेकिन अलग अलग जेल में रहनेवाले क्रान्तिकारियों ने कैदियों के कपड़े पहनने से इनकार कर दिया, क्योंकि वे क्रान्तिकारी थे, गुनाहगार नहीं थे। अलग अलग जेल में रखे गये इन क्रान्तिकारियों ने पहले ही दिन अनशन (हंगर स्ट्राइक) करना शुरू कर दिया। किसी ने ४ दिन, किसी ने १६ दिन, किसीने ११ दिन तो किसीने ४५ दिनों तक अनशन किया।

लेकिन काकोरी में हुआ क्या था? कहा जाता है कि एच.आर.ए. के क्रान्तिकारियों ने अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए यानी भारत को आज़ाद बनाने के लिए यह योजना बनायी थी। १० क्रान्तिकारी इसमें शामील थे।

२२ अगस्त १९२७ को इस मुकदमे का अन्तिम फैसला सुनाया गया। १९ दिसंबर १९२७ को गोरखपुर जेल में रामप्रसाद बिस्मिल को, उसी दिन अशफ़ाक उल्ला खान को फैज़ाबाद जेल में, राजेन्द्रनाथ लाहिरी को १७ दिसंबर १९२७ को गोंडा जेल में और १९ दिसंबर १९२७ को रोशन सिंह को नैनी, अलाहाबाद में फाँसी दी गयी।

देश की स्वतन्त्रता इस एकमात्र ध्येय से प्रेरित रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म जून १८९७ में हुआ, उत्तरप्रदेश के शाहजहानपुर में। जवानी में ही उनके मन पर आर्य समाज के विचारों का प्रभाव पड़ा था और साथ ही देशसेवा को ध्येय मानकर जी रहे अनेक आदर्श व्यक्तित्वों से परिचय होकर उनके सान्निध्य का लाभ भी रामप्रसादजी को मिला।

जीवन का ध्येय निर्धारित कर चुके रामप्रसादजी ने २० वर्ष पूरे होने से पहले ही देश के लिए सक्रिय योगदान देना शुरू कर दिया। उनके दिमाग में निरंतर चल रहे भारतमाता की स्वतन्त्रता के विचार उनकी क़लम से प्रवाहित होने लगे कविताओं एवं लेखों के रूप में।

मैनपुरी में हुई सरकारी खज़ाने की लूट के मामले में अँग्रेज़ पुलीस उन्हें ढूँढ़ ही रही थी। पुलीस को चकमा देकर निकल जाने में वे क़ामयाब हुए थे। उनके जन्मस्थल पर यह खबर फैली की वे पुलिस की गोली का शिकार हो गये। लेकिन दर असल वे यमुना में कूदकर वहाँ से निकल चुके थे। इसके बाद २ सालों तक वे भूमिगत थे।

उनकी कविताओं या लेखों के महज़ शीर्षक पढ़ने पर भी हमारे ध्यान में यह आ जाता है कि इस क्रान्तिवीर के दिलोदिमाग़ में देशभक्ति के अलावा और कुछ भी नहीं था। हिन्दी और उर्दू भाषा में रचना करते समय उन्होंने राम, अज्ञात और बिस्मिल इन उपनामों का इस्तेमाल किया था। इनमें से ‘बिस्मिल’ यह नाम उनके नाम का ही एक अभिन्न हिस्सा बन गया था। ‘देशवासियों के नाम संदेश’, ‘स्वाधीनता की देवी’, ‘स्वदेशी रंग’ इनके साथ ही ‘यौगिक साधना’ और ‘मन की लहर’ इन जैसे वाङ्मयों की रचना भी उन्होंने की।

एच.आर.ए. की स्थापना के बाद रामप्रसाद बिस्मिल के कंधों पर बड़ी ज़िम्मेदारी आ गयी। रामप्रसाद बिस्मिल ने काकोरी काण्ड की योजना बनायी और अपने सहकर्मियों की सहायता से उसे अंजाम भी दिया और अँग्रेज़ों को चकमा देकर निकल जाने में वे क़ामयाब भी हो गये। एच.आर.ए. ने ‘द रिव्होल्यूशनरी’ नाम का जो घोषणापत्र प्रकाशित किया था, उसमें ‘विजयकुमार’ इस नाम से लिखनेवाले रामप्रसाद बिस्मिल ही थे। काकोरी काण्ड के प्रमुख योजनाकार रहनेवाले रामप्रसाद बिस्मिल को ग़िरफ़्तार करने के लिए अँग्रेज़ सरकार ने एडी चोटी एक कर दी और उन्हें गिरफ़्तार करके फाँसी दी गयी।

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