क्रान्तिगाथा-६८

हालाँकि भारत में सर्वत्र इस अमानुष गोलीबारी की खबर तेज़ी से फैल गयी, लेकिन इंग्लैंड़ में इस घटना की सविस्तार खबर पहुँची, दिसंबर १९१९ में।

अँग्रेज़ सरकार को लगा कि अब भारतीय सहम गये होंगे, इसलिए इसके बाद अँग्रेज़ों के खिलाफ बगावत करने से पहले दस बार सोचेंगे।

लेकिन अँग्रेज़ों को जल्द ही भारतीयों की ताकत का पता चल गया।

अँग्रेज़ सरकार के द्वारा इस घटना की तहकिकात करने का फार्स किया जाने लगा। हंटर नाम के सॉलिसिटर जनरल की अध्यक्षता में एक कमिशन की स्थापना की गयी।

फिर एक बार कमिशन में महज़ तीन ही भारतीय सदस्य थे, बाकी के अध्यक्ष और पाँच सदस्य अँग्रेज़ थे।

इस तहकिकात से क्या हासिल होगा यह तो भारतीय कब का जान चुके थे।

यह कमिशन उसके अध्यक्ष के नाम से ‘हंटर कमिशन’ इस नाम से जाना गया था।

क्रान्तिगाथा, इतिहास, ग़िरफ्तार, मुक़दमे, क़ानून, भारत, अँग्रेज़१९ नवंबर को इस कमिशन के सामने जनरल डायर को तहकिकात के लिए बुलाया गया। वहाँ उससे कई सवाल पूछे गये। लेकिन इस पूछताछ में भी यही दिखायी दिया कि जनरल डायर को अपने किये पर किसी भी तरह का पछतावा नहीं है। उलटे वह तो अपने किये का समर्थन ही कर रहा था। राक्षस से भी बदतर और खूँख़ार रहनेवाले ऐसे इस बेमुरौवत शख़्स से, जिसे मानव तक नहीं कहा जा सकता ऐसे इस श़ख्स से और अपेक्षा भी क्या की जा सकती है?

इस कमिशनद्वारा की गयी पूछताछ के दरमियान पूछे गये सवालों को भी उसने बहुत उद्धत, उद्दंड और बेमुरौवत ढंग से जवाब दिये।

आखिरकार कमिशन ने तहकिकात के बाद अपनी रिपोर्ट पेश की। उनकी रिपोर्ट के अनुसार जनरल डायर की यह कृति यह दर्शा रही थी कि उसके द्वारा अधिकारों का गलत इस्तेमाल किया गया है।

इस कमिशन में जो भारतीय थे, उन्होंने भी इस तहकिकात के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। उनकी रिपोर्ट के अनुसार इस जनसमुदाय में बेगुनाह लोग थे और इस बाग में इससे पहले किसी भी प्रकार की हिंसात्मक कृति नहीं हुई थी। डायर को चाहिए था कि वह अपने सैनिकों को घायलों को वैद्यकीय मदत दिलाने का आदेश दे या प्रशासन से इस विषय में दऱख्वास्त करे। डायर की यह कृति अमानुष थी और इससे अँग्रेज़ सरकार की छबि खराब हो गयी थी। ऐसी इस कमिशन के भारतीय सदस्यों की राय थी।

कमिशन की रिपोर्ट के बावजूद भी जनरल डायर पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं की गयी। डायर के इस कुकर्म को अँग्रेज़ उच्चपदस्थों ने नज़रअंदाज़ कर दिया था, उसे अनदेखा कर दिया था, या यूँ कहिए कि उन्होंने जनरल डायर को उसके द्वारा किये गये शैतानी कुकर्म के लिए माफ कर दिया था।

लेकिन आख़िर जनरल डायर का गुनाह सिद्ध हुआ और उसे दोषी करार देकर मार्च महिने में उसके पद से हटा दिया गया।

मग़र जनरल डायर का अन्त कुछ अलग प्रकार से होना था। इतने सारे बेगुनाह भारतीयों की जान लेनेवाला डायर उसे उसके भविष्यकाल में किस बात का सामना करना पड़ सकता है, यह कहाँ जानता था।

जालियनवाला बाग की पाशवीय गोलीबारी में जान गँवानेवालों के लिए प्रत्येक भारतीय की आँख में आँसू थे और घायलों के लिए प्रार्थना। इस घटना में जान गँवानेवाला और घायल हुआ हर नागरिक भारतमाता के लिए लड़नेवाला सच्चा योद्धा ही था। क्योंकि केवल अपनी मातृभूमि के प्रेम के कारण वे इस सभा में उपस्थित थे। वहाँ पर उपस्थित प्रत्येक नागरिक को आपस में जोड़नेवाली कड़ी थी – उनके मन में भारतमाता के प्रति रहनेवाला प्रेम।

ऐसे इन अनगिनत अनाम वीरों के बलिदान से स्वतन्त्रता यज्ञकुंड को अधिक से अधिक प्रज्वलित होने का बल मिल रहा था। क्योंकि यही धधकता यज्ञकुंड एक दिन इस मातृभूमि को स्वतन्त्रता दिलानेवाला साबित होनेवाला था।

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