क्रान्तिगाथा- ३५

आख़िर ‘वंगभग’ हो गया यानी अँग्रेज़ों ने बंगाल का विभाजन किया। अब क्या होगा? हो सकता है कि भारतीय उनकी अगुआई करनेवाले नेताओं के साथ विरोध करेंगे, मोरचे निकालेंगे, सभाएँ लेंगे और कुछ समय बाद शान्त हो जायेंगे, ऐसा अँग्रेज सोच रहे थे। भारतीयों के विचार इस तरह की किसी कृति को जन्म देंगे कि वह कृति इस स्वतन्त्रता संग्राम में एक शस्त्र की तरह काम करेगी, ऐसा तो अँग्रेज़ों ने सपने में भी नहीं सोचा था।

इस वंगभंग में से ही अँग्रेज़ों के खिलाफ़ एक अभूतपूर्व आंदोलन का जन्म हुआ। ‘स्वदेशी आंदोलन’! ‘स्व-देशी’, जो हमारे देश का है, जिसका निर्माण हमारे देश में हुआ है, वह है ‘स्वदेशी’। अब तक भारत में अपनी जड़ें मज़बूत बना चुके अँग्रेज़ों ने भारत को एक बड़ी व्यापारी पैंठ बना लिया था। ब्रिटन से भारत के बाज़ारों में तरह तरह का माल भेजा जा रहा था, भारतीयों को वह ख़रीदना पड़ रहा था और अँग्रेज़ों की तिजोरी भर रही थी।

अब इसके बाद ‘हमारे भारत में बननेवाली वस्तुओं का ही उपयोग करना चाहिए’, यह स्वदेशी के पीछे का मूल तत्त्व था। इससे अपने आप ही विदेशी माल का ‘बहिष्कार’ करना, उसका इस्तेमाल रोकना अभिप्रेत था। भारत में बने कपड़े, शक्कर, नमक, माचिस और इस तरह की अनेक वस्तुओं का ही इस्तेमाल करना है यह निश्‍चित किया गया और लोगों में भी इस मामले में जागृति करना शुरू हो गया। देखते ही देखते ‘स्वदेशी’ ने भारतीय जनमानस में कुछ इस तरह जड़े मज़बूत बना लीं कि आगे चलकर विदेशी माल बेचनेवाली दुकानों को बहिष्कृत करना, इतना ही नहीं, अँग्रेजपरस्त भारतीय लोग जो ब्रिटन में बनकर भारत में आया माल इस्तेमाल कर रहे थे, उन्हें भी बहिष्कृत करना शुरू हो गया। लोगों ने एक नये उपक्रम की शुरुआत की। हर नुक्कड़ पर लोग इकठ्ठा होने लगे और विदेशी माल की, ख़ासकर विदेशी कपड़ों की होली करना शुरू हो गया। ‘स्वदेशी आन्दोलन’ यह भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन का एक प्रभावी अस्त्र साबित हो रहा था।

स्वदेशी का स्वीकार अब भारतीयों की नस नस में इस क़दर दौड़ रहा था कि अँग्रेज़ों के द्वारा शुरू किये गये स्कूलों, न्यायालयों पर, यहाँ तक की सरकारी नौकरियों पर भी अब भारतीयों ने बहिष्कार करना शुरू कर दिया।

लेकिन इससे क्या हासिल होनेवाला है? अँग्रेज़ उनके देश में बननेवाला माल भारत में बेचकर भारतीयों का पैसा अपनी तिजोरी में भर रहे थे। दरअसल इन सभी वस्तुओं को भारत की भूमि में बनाना भारतीयों के लिए नामुमक़िन नहीं था। लेकिन भारतीयों को ग़ुलाम बनानेवाले अँग्रेज़ों ने इस आर्थिक शोषण के द्वारा अपनी यहाँ की सत्ता मज़बूत बनायी थी। फ़िर जब भारत से अँग्रेज़ों की तिजोरी में जा रहा पैसा घटने लगेगा, तब ही अँग्रेज़ी सत्ता की जड़ें हिल जायेंगी।

दर असल भारत के कुछ इलाक़ों में कुछ प्रमाण में इससे पहले ही ‘स्वदेशी का स्वीकार और विदेशी का बहिष्कार’ करने की कोशिशें की गयी थीं। लेकिन यह करनेवाले भारतीयों की कोशिशें अँग्रेज़ों के द्वारा समय समय पर दमन करके ख़त्म कर दी गयी थीं।

इस स्वदेशी आन्दोलन से एक बहुत ही अच्छी बात हुई थी और वह थी- भारतीय माल का निर्माण करने के लिए भारतीय आगे बढ़ गये। भारत की भूमि पर अनेक नये उद्योग शुरू हो गये। वस्त्रनिर्माण, रासायनिक उत्पाद, स्टील आदि का निर्माण करने के लिए भारत की भूमि पर नये कारख़ाने बनने लगे और इससे पहले कार्यरत रहनेवाले उद्योगों ने अब बड़ी तेज़ी से बड़े पैमाने पर माल का निर्माण करना शुरू कर दिया।

भारतीयों के बीच की एकता और बन्धुता तोड़ने के उद्देश्य से दर असल अँग्रेज़ों ने ‘बंगाल विभाजन’ की घटना करायी थी। लेकिन भारतीयों ने ‘वंगभंग’ के बाद तुरन्त एक दूसरे के हाथ में अपनी एकता और बन्धुता के प्रतीक के रूप में पीले धागे बाँधे थे।

‘वन्दे मातरम्’ की घोषणाओं से भारतीयों के मन में एक अभूतपूर्व चेतना जगाना शुरू कर दिया था। लेकिन भारतीयों की यह जागृति भला अँग्रेज़ों को कैसे रास आती? उन्होंने ‘वन्दे मातरम्’ की घोषणा पर रोक लगा दी।

भारतभर में इस स्वदेशी आन्दोलन का प्रचार और प्रसार करने में अग्रस्थान में थी ‘लाल-बाल-पाल’ की त्रिमूर्ति और इसी आन्दोलन में से अनेक नेतृत्वों का उदय हुआ, जो नेतृत्व आगे चलकर इस क्रान्तियज्ञ को निरंतर प्रज्वलित रखनेवाले थे।

इसी दौरान लोकमान्य टिळक और गणेश श्रीकृष्ण खापर्डे कोलकाता गये और वहाँ पर भी शिवाजी महाराज का जन्मोत्सव शुरू हो गया। रवीन्द्रनाथ टागोर ने इसी दौरान शिवाजी महाराज पर एक कविता लिखी थी। इस आन्दोलन के दौरान बंगाल में उदय हुआ एक व्यक्तित्व का, वे थे – अरविन्द घोष। यहाँ पर महाराष्ट्र में एक युवक के मार्गदर्शन में विदेशी कपड़ों की होली की गयी, उस युवक का नाम था – विनायक दामोदर सावरकर।

अब अँग्रेज़ महज़ रोक लगाना आदि बातों से ही सन्तुष्ट रहनेवाले नहीं थे, अब उन्होंने लोगों पर जुर्माना लगाना, उनपर लाठियाँ बरसाना शुरू कर दिया। सारांश, भारतीयों की नि:शस्त्र कृति का जवाब अँग्रेज़ हिंसा से दे रहे थे। इस आन्दोलन में महिलाएँ भी बड़े पैमाने पर और दिलों जान से सक्रिय हो गयी थीं।

भारतीयों की एकता और बहादुरी देखकर अचंभित हो जाने का वक़्त अँग्रेज़ों पर आ गया था, क्योंकि भारतीयों की इस वीरता का हृदय रहनेवाली भक्ति से अँग्रेज़ परिचित ही नहीं थे।

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