क्रान्तिगाथा-३४

भारत में कुछ ही मीलों की दूरी पर भाषा बदलती है। विभिन्न प्रदेशों के निवासियों का रहनसहन, खान-पान भी अलग अलग होता है। भारत में  हालाँकि इस तरह की विविधता है, मग़र फिर भी वक़्त आने पर भारत एकजुट होकर खड़ा रहता है और अपने दुश्मनों से लडता है, इस बात का अनुभव अँग्रेज़ों ने १८५७ में, उससे पहले और उसके बाद भी किया था। इसी वजह से अँग्रेज़ों ने अब ‘डिव्हाइड अँड रुल’ इस कुटिल नीति को अपनाया था।

१६ अक्तूबर १९०५ का दिन सारे भारत के लिए महत्त्वपूर्ण साबित हुआ। १६ अक्तूबर १९०५ को भारत के व्हाइसरॉय रहनेवाले लॉर्ड कर्झन ने बंगाल का बँटवारा किया था। हालाँकि इस बँटवारे की खबर १९०३-१९०४ के आसपास ही सब जगह फैलने लगी थी, लेकिन यह बँटवारा हुआ १६ अक्तूबर १९०५ के दिन। इस दिन बंगाल प्रान्त को ‘पूर्व बंगाल’ और ‘पश्‍चिम बंगाल’ इन दो हिस्सों में बाँटा गया।

‘बंगाल प्रेसिडन्सी’ यह उस समय का भारत का अँग्रेज़शासित सब से बड़ा प्रान्त था। इसकी जनसंख्या उस व़क़्त साढ़े आठ करोड़ से ज़्यादा थी। बंगाल प्रेसिडन्सी में बंगाल के साथ साथ बिहार, उड़ीसा और बांगलादेश का समावेश किया गया था। उस व़क़्त बंगाल इला़के में देशभक्ति की हवाएँ ज़ोरों से बह रही थीं। देश को आज़ाद करने के लिए यहाँ की जनता में जागृति इस क़दर हुई थी कि हर नागरिक अपनी अपनी क्षमता से कोशिशें कर रहा था। सारांश, यह प्रान्त उस व़क़्त देशभक्ति की ज्वाला का केन्द्र बन चुका था और यही बात अँग्रेज़ों को सता रही थी।

‘डिव्हाइड अँड रुल’

उस समय भारत के व्हाइसरॉय रहनेवाले लॉर्ड कर्झन ने बंगाल का बँटवारा किया। उसने इस इला़के का बँटवारा करने के जो कारण बताये थे, उनमें से अधिकतर कारण प्रशासकीय थे। उसकी राय में जनसंख्या और क्षेत्रफल की दृष्टि से विशाल रहनेवाले इस प्रदेश का कारोबर चलाना केवल एक प्रशासकीय अफसर के लिए बहुत ही मुश्किल था। बँटवारे से इस इला़के का कारोबार अधिक आसानी से किया जा सकेगा, यह प्रमुख वजह बताते हुए बंगाल का बँटवारा करने की बात निश्‍चित की गयी। लेकिन इसके पीछे छिपा कर्झन का हेतु कई भारतीयों की समझ में आ रहा था। देशभक्तों की राय में, बंगाल प्रदेश में सुलग चुकी देशभक्ति की चिंगारी अँग्रेज़ इस बँटवारे की आड़ में बुझाना चाहते थे। भारतीयों की मन की दास्यमुक्ति की भावना अँग्रेज़ पूरी तरह कुचल देना चाहते थे।

बँगाल के बँटवारे ने बंगाल को दो प्रदेशों में बाँट दिया। ‘पूर्व बंगाल’-जिसकी आबादी थी लगभग ३ करोड़ और ‘पश्‍चिम बंगाल’-जिसकी आबादी थी लगभग साढ़े पाँच करोड़। पूर्व बंगाल में समावेश था – आसाम, पूर्वी बंगाल के जिलें और ढाके का। वहीं पश्‍चिम बंगाल में समावेश था – पश्‍चिमी बंगाल के जिलें, बिहार और उड़ीसा का।

सारांश, इतने सालों से एकदिल से रहनेवाले बंगाल प्रदेश के भारतीयों में आपस में फूट डालना यही इस बँटवारे के पीछे का मक़सद था।

दर असल बँटवारा होने से १-२ वर्ष पहले जब इसकी खबर फैलने लगी, तब से कर्झन के इस फैसले का विरोध किया गया। अँग्रेज़ों की इस कुटिल नीति के खिलाफ देशभर में जनजागृति और तीव्र ब्रिटिशविरोध शुरू हो गया।

बंगाल प्रान्त में देशभक्तों की अनेक सभाएँ होने लगीं और विरोध करने के मार्ग तय किये जाने लगे। देश में जगह जगह सभाओं का आयोजन करके अँग्रेज़ों की कुटिल नीति से देशवासियों को अवगत किया जाने लगा। समाचार पत्र भी इस कार्य में अग्रसर थे। ‘हितवादी’, ‘बंगाली’ इन जैसे अनेक समाचारपत्रों के द्वारा इस बँटवारे के फैसले का प्रखर विरोध किया गया था।

मग़र फिर भी १६ अक्तूबर १९०५ को बंगाल का प्रत्यक्ष रूप में बँटवारा किया गया। संपूर्ण प्रदेश की जनता बस इस एक निर्णय से दो टुकड़ों में बँट गयी। कागज़ पर छपे एक फैसले ने एकसन्ध भूमि पर दिखायी न देनेवाली विभाजनरेखा खींच ली और इस प्रदेश में रहनेवालों के मन के बारे में सोचा तक नहीं गया।

१६ अक्तूबर १९०५ यह दिन संपूर्ण बंगाल में ‘राष्ट्रीय शोक दिवस’ के रूप में मनाया गया। लेकिन अब तक हुई जनजागृति के कारण एक विलक्षण घटना हुई। ‘बंगाल का बँटवारा’ यह अब सिर्फ बंगाल प्रदेश तक के लिए सीमित घटना नहीं रही, बल्कि सारे देश में से इस घटना का विरोध किया जा रहा था।

इस बँटवारे का विरोध करने के लिए जगह जगह जिन सभाओं का आयोजन किया गया था, उनमें से एक सभा में लगभग ७०-७५ हज़ार लोग इकठ्ठा हुए थे ऐसी जानकारी मिलती है। इस तरह किसी सभा में इतनी बड़ी संख्या में लोगों के उपस्थित रहने की यह पहली ही घटना मानी जाती है।

लेकिन अब महज़ शाब्दिक विरोध करना पर्याप्त नहीं था और इसीलिए कुछ कृति करना ज़रूरी है, ऐसा इस स्वतन्त्रता संग्राम की अगुआई करनेवाले राष्ट्रनेताओं को लगने लगा था और उसके बाद जो कृति साकार हुई, वह भारतभर में घटित हुई अभूतपूर्व ऐसी सामुदायिक कृति साबित हुई।

Leave a Reply

Your email address will not be published.