क्रान्तिगाथा-१२

३१ मई यह दिन स्वतन्त्रतायोद्धाओं द्वारा सर्वमत से अंग्रेज़ों की हुकूमत के त़ख्त को पलट देने के लिए हालाँकि मुकर्रर किया गया था, मग़र फिर भी दास्यमुक्त होने की कल्पना से ही सैनिकों से सब्र नहीं किया जा रहा था। साथ ही कुछ घटनाएँ भी इस तरह होती गयीं कि ३१ मई के पहले ही अनेक इला़कें अंग्रेज़मुक्त हो गये। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि ३१ मई का दिन और रात अंग्रेज़ों के लिए शान्तिपूर्ण रहे। कई जगह सैनिकों ने ३१ मई के दिन अंग्रेज़ों के खिलाफ शस्त्र उठा लिये और ३१ मई की रात को फतेहगढ़ स्वतन्त्रता की ओर बढ़ने लगा।

फतेहगढ़ की स्वतन्त्रता से क्रान्तिगाथा के इतिहास में एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण पन्ना पलटा गया। फतेहगढ़ का आज़ाद होना यह कानपुर की स्वतन्त्रता की दिशा में पड़ा हुआ पहला कदम था। कानपुर यह अंग्रेज़ों के कब्ज़े में रहनेवाला भारत का एक महत्त्वपूर्ण शहर था। सन १८५७ के इस स्वतन्त्रतासंग्राम में कानपुर की अपनी एक खास जगह है, क्योंकि इस संग्राम के तीनों अग्रणी कानपुर के पास में ही रहते थे।

Varanasiganga

जिस गंगा के तट पर कानपुर बसा था, उसी गंगा के तट पर बसा था ‘बनारस’। भारतीयों के लिए पवित्रतम रहनेवाली ‘काशी’। बनारस में कई अंग्रेज़ अफसर भी रहते थे। उनमें प्रमुख रूप से कमिशनर, मॅजिस्ट्रेट, कॅप्टन, कर्नल जैसे पदों पर काम कर रहे कई अंग्रेज़ थे। दर असल बनारस शहर में पहले से ही अंग्रेज़ों के खिलाफ असंतोष की भावना फैली हुई थी। लोग आपस में अंग्रेज़ों से विद्रोह करने की बातें कर रहे थे। बनारस से ३ मील की दूरी पर स्थित ‘सिक्रोली’ में यहाँ की फ़ौज थी। लुधियाना की सीख सैनिकों की टुकड़ी, ३७ वीं नेटिव्ह इन्फेंट्री, इरेग्युलर कॅव्हल्री की १३ वीं रेजिमेंट और जिसमें सिर्फ अंग्रेज़ काम करते थे ऐसा तोपखाना, यह सब ‘सिक्रोली’ में था। इसी दौरान मई के अन्त में आज़मगढ़ के अंग्रेज़मुक्त हो जाने की खबर बनारस आ पहुँची।

३१ मई के नियोजित कार्यक्रम के अनुसार बरेली के सैनिक ३० मई तक अंग्रेज़ों को अपनी योजना की कानोंकान खबर तक न हो इस उद्देश्य से सावधानी बरत रहे थे और ३१ मई को उन्होंने विद्रोह का झंड़ा गाड़ दिया। दोपहर ११ बजे यह कार्य उन्होंने शुरू कर दिया। भारतीय सैनिकों के इस रुद्र रूप को देखकर कई अंग्रेज़ वहाँ से भागकर नैनिताल जा पहुँचे और केवल छह घंटों में ही यहाँ पर केवल भारतीय बाक़ी रहे।

बरेली जब अंग्रेज़ों की ग़ुलामी में से मुक्त हो रहा था, तब यहीं से ४० मील की दूरी पर भी ठीक इसी तरह की घटनाएँ हो रही थीं। जगह थी ‘शाहजाँपुर’। यहाँ पर भी एक नेटिव्ह सैनिकों की टुकड़ी थी। मेऱठ की घटना की स्मृति मन में जागृत रखनेवाले यहाँ सैनिकों ने ३१ मई को अपने इला़के को अंग्रेज़ों से आज़ाद कर लिया। इसी ३१ मई को बरेली से ४८ मील की दूरी पर स्थित मुरादाबाद भी आज़ाद होने की कग़ार पर ही था। कई जगह के सैनिकों ने अपने ३१ मई के पूर्वनियोजित कार्यक्रम की भनक तक अंग्रेज़ों को नहीं लगने दी थी।१८ मई को मेरठ से कुछ सैनिक यहाँ आये हैं यह खबर यहाँ के अंग्रेज़ अफसर को मिली थी। अब यहाँ के सैनिकों की स्वामीनिष्ठा को परखने का अवसर इस बहाने अंग्रेज़ों को मिल गया था। मेरठ के सैनिकों पर आक्रमण करने का हुक़्म अंग्रेज़ अफसर ने यहाँ की २९ वीं रेजिमेंट के सैनिकों को दिया। इस रेजिमेंट ने हालाँकि मेरठ के सैनिकों पर धावा तो बोल दिया, लेकिन रात के अँधेरे में मेरठ के सारे सैनिक ही कहीं रफा दफा हो गये।

तो ऐसे इस मुरादाबाद में ३१ मई का दिन उगते ही वहाँ के सारे भारतीय सैनिक इकट्ठा हो गये और उन्होंने ही वहाँ के अंग्रेज़ों को मुरादाबाद छोड़कर चले जाने का आदेश दिया और ३१ मई की रात को मुरादाबाद पर भारतीय सैनिकों का शासन स्थापित हो गया।

३१ मई और उससे पहले के घटनाक्रम की भी जानकारी बनारस पहुँच रही थी। अब गंगाजी का जल भी तपने लगा था। केवल सैनिकों में ही नहीं बल्कि यहाँ के आम नागरिकों के मन में भी असंतोष की भावना गरमा रही थी। अब नागरिकों ने अंग्रेज़ों के अत्याचारों के खिलाफ खुलेआम बोलना शुरू कर दिया।

३१ मई की रात बीत गयी और जून आ गया। भारत भर में चल रहे घटनाक्रम के मामले में ‘अब हमें आगे क्या करना चाहिए’ इस पर अंग्रेज़ अफसर विचारविमर्श कर रहे थे। इसी दौरान जनरल नील के अधिपत्य में मद्रास इला़के की एक टुकड़ी बनारस आ पहॅुंची, जिसमें सिर्फ अंग्रेज़ सैनिक ही थे। साथ ही दानापुर स्थित अंग्रेज़ सेना की एक टुकड़ी भी बनारस की ओर कूच कर रहीं थी। इस घटना का परिणाम ऐसा हुआ कि इससे अब बनारस स्थित अंग्रेज़ों का मनोबल काफी बढ़ गया।

लेकिन इसी वक़्त ‘दिल्ली’ जैसा महत्त्वपूर्ण थाना खो चुके अंग्रेज़ अब दिल्ली को पुन: जीत लेने की कोशिशों मे जुट गये थे। भारत भर में अंग्रेज़ फ़ौज पीछे हट रही थी और ऐसी घड़ी में इंग्लैंड से नयी फ़ौज ले आने के बारे में भी विचार-विमर्श चल रहा था। लेकिन वहाँ से यहाँ तक फ़ौज ले आने में काफी वक़्त लगने वाला था और इसे ध्यान में रखते हुए अंग्रेज़ों ने एक अलग योजना बनायी और उसपर फ़ौरन अमल भी किया गया।

Leave a Reply

Your email address will not be published.