कोझिकोड भाग-१

मलयाळम् भाषा सीखते हुए कई विशेषतापूर्ण बातें समझ में आ रही थीं, ख़ास कर उस भाषा के शब्दों का उच्चारण। अब यही देखिए ना, हम जिस ‘कोझिकोड’ नाम के केरल राज्य स्थित शहर की ओर प्रस्थान कर रहे हैं, उस शहर को ‘कोळिकोड’ इस नाम से जाना जाता है। यानि ‘कोझिकोड’ और ‘कोळिकोड’ ये दोनों एक ही शहर के नाम हैं, यह बात आप समझ ही गये होंगे। तो चलिए, कोझिकोड यानि कोळिकोड की दिशा में आगे बढते हैं।

अब कोझिकोड से आपको परिचित कराना हो, तो आपने भूगोल में ‘कालिकत’ यह नाम तो पढ़ा ही होगा। ‘कालिकत’ यह पुराने समय से एक मशहूर बंदरगाह है। इतिहास में हम देखते हैं कि गाँवों या शहरों के नाम समय के साथ साथ बदलते हैं। उनमें से कुछ नाम समय की धारा में पीछे पड़ जाते हैं, वहीं कालिकत जैसे कुछ नाम बरक़रार रहते हैं।

दक्षिण भारत की अपनी कई विशेषताएँ हैं। लेकिन उनमें सब से ख़ास बात है, यहाँ के कई इलाक़ो में किया जानेवाला मसालों का उत्पाद। यहाँ की जलवायु और ज़मीन मसाले की फ़सलों के लिए बहुत ही अनुकूल है। हम सभी भारतवासी इन मसालों के बारे में जानते ही हैं। अब आप शायद यह सोच रहे होंगे कि मसालों की इतनी चर्चा आज क्यों?

लेकिन इसकी भी एक वजह है। इस कोझिकोड का यानि कोळिकोड का, कालिकत का इनके साथ क़ाफी पुराना रिश्ता है।

दरअसल कालिकत एक बंदरगाह के रूप में विकसित हुआ, उसकी वजह मसालों का व्यापार यही है। काली मिर्च, लौंग, दालचिनी, अद्रक इन जैसे मसालों के साथ साथ लाह, कपड़ा आदि को भी कालिकत बंदरगाह से दुनिया के विभिन्न देशों में सागरी मार्ग से भेजा जाता था। इसीलिए पुराने समय से यहाँ पर देश-विदेश के लोगों का आना जाना लगा रहता था।

‘कल्लाई’ नदी के तट पर बसे इस शहर को प्राप्त हुआ अरब सागर का सान्निध्य ही इसके बंदरगाह के रूप में विकसित होने का कारण है।

इस कोझिकोड शहर के बारे में हाल ही में पढी हुई कुछ बातों का जिक्र करना ज़रूरी है। इस शहर के संदर्भ में किये गये कुछ सर्व्हेद्वारा कुछ महत्त्वपूर्ण नतीजे सामने आये हैं। उनके अनुसार हमारे भारत में आवास की दृष्टि से बेहतरीन माने जानेवालें शहरों में इस शहर का नाम काफ़ी आगे है। अब ज़ाहीर है कि इस सर्व्हे के लिए यहाँ की जलवायु के साथ साथ आवास करने के लिए आवश्यक सुविधाओं, शिक्षा-स्वास्थ्य विषयक सुविधाओं जैसी महत्त्वपूर्ण बातों पर भी गौर किया गया था। साथ ही साक्षरता के मामले में भी इस शहर का नाम अग्रगण्य है।

एक बंदरगाह से विकसित हुआ यह कोझिकोड कैसा है, इसके बारे में अब जानकारी लेते हैं।

अब बंदरगाह कहते ही हमारी आँखों के सामने बड़े बड़े जहाज़ आते हैं, माल भरकर ले आनेवालें और ले जानेवालें विशाल जहाज़। साथ ही उस माल को खरीदने और बेचने वालें व्यापारी और सफ़र करनेवालें यात्री भी। पुराने समय से विदेशों में से यात्री भारत आते थे। वे भारत के उस समय के प्रमुख शहरों या गाँवों में जाते थे और उनमें से कुछ सैलानी अपना स़ङ्गरनामा भी लिखते थे। ऐसे ही कुछ विदेशी सैलानियों के सफ़रनामों में से उस समय के ‘कालिकत’ बंदरगाह का चित्र हमारी आँखों के सामने साकार होता है।

‘इब्न बतूत’ नाम का एक सैलानी अंदाज़न् चौदहवीं सदी के मध्य में भारत आया था। कहा जाता हैं कि वह कुल छह बार कालिकत आया था। उसके सफ़रनामे से हमें चौदहवीं सदी के कालिकत के बारे में जानकारी मिलती है। वह लिखता है कि ‘मलबार’ इलाके का यह सब से बड़ा बंदरगाह है। यहाँ दुनिया के कई देशों से व्यापारी आते जाते रहते हैं। इतनाही नहीं बल्कि वह अपने सफ़रनामे में यहाँ के राजा का भी वर्णन करता है।

पंद्रहवीं सदी की शुरुआत में यहाँ पधारे किसी ‘मा ह्युएंग’ नाम के चीनी मल्लाह ने इस जगह को एक बड़ा बंदरगाह कहा है। यह चीनी मल्लाह किसी बड़े नाविक के नेतृत्व में यहाँ आया था। वह भी यहाँ हो रही व्यापारियों की आवाजाही बयान करता है। उसके वर्णन में एक ख़ास बात का ज़िक्र है। वह लिखता है कि उस समय के व्यापारी गिनने के लिए यानि १-२-३ इन अंकों की गिनती करने के लिए ऊँगलिओं का इस्तेमाल करते थे। अब आप यह सोचेंगे कि इसमें भला ख़ास बात क्या है? आज भी हम ऐसा ही करते हैं। लेकिन अगले वर्णन को पढने के बाद इसकी विशेषता का पता चलता है। वह आगे लिखता है कि गिनती करने के लिए उस समय जिस तरह हाथ की ऊँगलियों का इस्तेमाल किया जाता था, उसी तरह पैरों की ऊँगलियों का भी उपयोग किया जाता था।

पंद्रहवीं सदी के मध्य में पर्शिया के राजा के द्वारा भेजा गया वक़ील भी कालिकत का वर्णन करता है। वह कालिकत को एक सुरक्षित बंदरगाह कहकर नवाज़ता है और साथ ही यहाँ पर मिलनेवालीं या दिखायी देनेवालीं कई विदेशी क़िमती वस्तुओं का भी ज़िक्र करता है।

उसके २-३ साल बाद यहाँ आये ‘निकोल-दी-कोन्ताय’ नाम के इटाली के यात्री ने यहाँ से विदेशों में भेजी जानेवाली काली मिर्च, दालचिनी, अद्रक जैसे मसालों का वर्णन किया है। उस समय का कालिकत लगभग आठ मील की परिधि में फैला था, ऐसा भी वह कहता है।

इन दोनों के कुछ वर्ष बाद रशिया से एक मुसाफ़िर यहाँ आया था। ‘अफ़न्सी निकितिन्’ नाम के इस यात्री ने इस बंदरगाह का उल्लेख ‘कॅलेकत’ इस नाम से किया है। वह भी इसे एक बेहतरीन और विशाल बंदरगाह कहकर नवाज़ता है। यहाँ की बड़ी बड़ी मंडियों का वर्णन भी वह करता है। ऊपरोक्त यात्रियों के अलावा अन्य कई सैलानी भी यहाँ आये थे, यह इतिहास से ज्ञात होता है।

इस सविस्तार वर्णन का उद्देश्य यही है कि इससे हम समझ सकते हैं कि पुराने समय से कालिकत यानि कोझिकोड यह एक बंदरगाह के रूप में काफ़ी मशहूर था। साथ ही यह भी ज्ञात होता है कि उस समय विदेशी लोगों को भारतीय मसाले इतने पसन्द थें कि विदेशों से व्यापारी भारतीय मसालों को खरीदकर अपने देश ले जाने के लिए यहाँ आते थे। इन मसालों का उपयोग महज़ जायके के लिए ही नहीं किया जाता है, बल्कि ये दवाई के रूप में भी काम करते है इस बात को भी शायद उस समय के विदेशियों ने जान लिया होगा।

आपने ‘वास्को-द-गामा’ का नाम तो सुना ही होगा। इस ‘वास्को-द-गामा’ ने भारत में पहला कदम रखा, वह इसी कोझिकोड की सरज़मीन पर। आज भी ‘वास्को-द-गामा’ जहाँ उतरा था, उस जगह को दिखाया जाता है।

इस कोझिकोड के नाम के बारे में एक मज़ेदार हक़ीक़त पढने में आयी। पुराने समय में किसी राजा ने अपने किसी अधिकारी को यहाँ की ज़मीन इनाम में दी थी। लेकिन कितनी ज़मीन, तो कौए की काँय-काँय की आवाज़ जहाँ तक सुनायी दें, वहाँ तक की ज़मीन उस अधिकारीको राजा द्वारा सौंपी गयी और इसी घटना से इस जगह को यह नाम मिला।

इस कहानी की सच्चाई तो ख़ैर कोई नहीं जानता, लेकिन इसके अलावा भी कई मत हैं। कहा जाता है कि इस शहर का मूल नाम ‘कोझिकोड’ था। ‘कोईल’ और ‘कोट’ इन दो शब्दों में ‘कोझिकोड’ इस नाम का उद्गम माना जाता है। कोईल और कोट इन शब्दों का एकत्रित अर्थ है – ‘जिसकी चहारदीवारी बनी है ऐसा क़िला या महल’। इसीलिए जहाँ चहारदीवारीयुक्त क़िला था, उस जगह का नाम ‘कोझिकोड’ हुआ। वहीं कुछ लोगों की राय में ‘कालिकत’ यह शब्द ‘कोईल’ और ‘कोट’ इन दो शब्दों से बना है।

किसी ज़माने में इस जगह को ‘चुल्लिकड’ इस नाम से जाना जाता था। इस शब्द का अर्थ, ‘जिस भूमि पर कीचड़ अधिक प्रमाण में रहती है’ ऐसा माना जाता है। अब नदी तट पर बसे होने के कारण और पास ही में समुद्र के होने के कारण यहाँ की भूमि पर कीचड़ का होना तो स्वाभाविक ही है।

इस ‘कोझिकोड’ बंदरगाह में व्यापार के सिलसिले में कई देशों से व्यापारी आते थे। उनमें से कुछ व्यापारी इसे ‘कॅलिफो’ कहते थे, कुछ ‘कालिकूथ’ कहते थे, तो कुछ इसका ज़िक्र ‘कल्लिकोट्टाई’ भी करते थे। इसके ‘कालिकत’ इस नाम के पीछे भी इतिहास है। पुराने समय में यहाँ पर बहुत ही महीन और चिकने सूती (कॉटन) कपड़ें का निर्माण किया जाता था। इसकी बुनाई करघे पर की जाती थी और यहाँ से उसे देश-विदेशों में भेजा जाता था। इस कपड़े को नाम दिया गया – ‘कॅलिको’ और ‘कॅलिको’ कपड़ें का निर्माण जहाँ किया जाता था, उस शहर को ‘कालिकत’ इस नाम से जाना जाने लगा। ख़ैर! तो ये था इस कोझिकोड के विभिन्न नामों से जुड़ा अतीत और सफ़र।

लेकिन हम इस शहर को ‘कोझिकोड-कोळिकोड-कालिकात’ ही कहेंगें।

ग्यारहवीं सदी के पूर्वार्ध में कोझिकोड की स्थापना की गयी। कुछ लोगों का मानना है कि इसकी स्थापना तो नौंवीं सदी में ही हुई थी।

आज भी कोझिकोड का महत्त्व ‘बंदरगाह’ के रूप मे क़ायम है। आज भी इसे केरल का एक महत्त्वपूर्ण बंदरगाह माना जाता है। इसका मतलब है कि कोझिकोड ने अपना पुराना स्थान आज के वर्तमान युग में भी बरक़रार रखा है।

एक बेहतरीन समृद्ध बंदरगाह, देश-विदेशों के व्यापारियों की आवाजाही आदि बातों की वजह से यहाँ पर धन की भी समृद्धी का होना स्वाभाविक है। एक यात्री के सफ़रनामे में यहाँ के राजा का उल्लेख भी किया गया है, यह भी हम पढ़ ही चुके हैं। तो फिर क्या यहाँ भी सत्तासंघर्ष, सत्तापरिवर्तन और उसके लिए किये गये युद्ध हुए होंगे? यह सवाल हमारे मन में उठता है। इन्ही सवालों के जबाब ढूँढ़ने के लिए अगले लेख में हम कोझिकोड के इतिहास पर एक नज़र डालेंगे।

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