कोल्हापुर भाग-१

कोल्हापुर, इतिहास, अतुलनिय भारत, महालक्ष्मी, पंचगंगा, भारत, भाग-१

जब गरमी काफ़ी बढ़ने लगती है, तब मुंबई में रास्ते से गुजरते हुए गन्ने का रस बेचनेवाली दुकानों के अस्तित्व का एहसास होता है। दर असल ये दुकानें साल भर वहीं पर रहती हैं; लेकिन माथे पर सूर्यभगवान जब तेज़ अग्निज्वालाओं को प्रक्षेपित करने लगते हैं, तब हमें इन दुकानों का एहसास होने लगता है। गन्ने की बात करते ही याद आता है, ‘कोल्हापुर’ का नाम। कोल्हापुर और गन्ने के बीच, साथ ही कोल्हापुर और शक्कर, गुड़ इनके बीच भी एक अटूट रिश्ता है।

‘कोल्हापुर मेडिकल कॅम्प’ जाने के लिए जब हम कोल्हापुर के क़रीब पहुँच जाते हैं; तब कोल्हापुर के आसपास के गन्ने के खेत हमें ‘कोल्हापुर अब दूर नहीं है’ इसकी इत्तला कराते हैं। कोल्हापुर और उसके आसपास के इला़के की उपजाऊ मिट्टी में गन्ने की फ़सल बड़े पैमाने पर उगती है।

लेकिन कोल्हापुर का महज़ गन्ने के साथ ही इतना गहरा रिश्ता नहीं है। जिसे याद करते ही मुँह में पानी आ जाता है ऐसी तीखी चटपटी मिसल, मांसाहार-प्रेमियों का मनपसंद लाल और सफ़ेद रस्सा, आँखों में से आँसू निकालनेवाली लौंगी मिरची इनके लिए भी कोल्हापुर मशहूर है। आप शायद यह सोच रहे होंगे कि आज कहीं खानपान के विषय पर तो लेख नहीं है ना! लेकिन कोल्हापुर इस नाम के साथ कम से कम इन खाद्यपदार्थों के नाम फ़ौरन सामने आ ही जाते है। और हाँ, यह सूचि यहीं पर ख़त्म नहीं होती। कोल्हापुर की ‘अंबाबाई’ यानि कि महालक्ष्मी, कोल्हापुर की कुश्ती, कोल्हापुर की चप्पल और मराठी सिनेमा-जगत् इनका भी कोल्हापुर के साथ गहरा रिश्ता है। इन सबका कोल्हापुर के साथ अटूट रिश्ता है।

करवीरनिवासिनी महालक्ष्मी यानि कोल्हापुर की अंबाबाई। कोल्हापुर में महालक्ष्मी का प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण तेरहवी सदी में किया गया ऐसा माना जाता है। इससे यह साबित होता है कि आज का ‘कोल्हापुर’ ही प्राचीन समय में ‘करवीर’ इस नाम से जाना जाता था। प्राचीन शिलालेख, साहित्य इनके ज़रिये प्राचीन करवीर के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। पुराणकाल में ‘करवीर क्षेत्र’ यह व्यापार का केंद्र, शक्तिपीठ और पुण्यदायक तीर्थ के रूप में जाना जाता था। इसे ‘दक्षिण काशी’ भी कहा जाता था। स्कंदपुराण में कहा गया है कि करवीर अर्थात् काराष्ट्र यह क्षेत्र पापों का नाश करता है। अधिकांश चालुक्य राजाओं ने कोल्हापुर को ‘महातीर्थ’ कहा है।

आज के कोल्हापुर को विभिन्न कालखण्डों में विभिन्न नामों से संबोधित किया जाता था। उसका ‘करवीर’ यह नाम आज भी सुपरिचित है। साथ ही कोलापुर, कोल्लागिरी, कोल्लापुरम्, कोल्लगिरी, कोल्लगिरेय इन नामों से भी जाना जाता था। ‘कोल्हापुर’ इस नाम का सर्वप्रथम उल्लेख यादव राजाओं के ज़माने के एक शिलालेख में मिलता है।

इस शहर के ‘कोलापुर’ और ‘करवीर’ इन नामों के पीछे कुछ आख्यायिकाएँ प्रचलित है। एक आख्यायिका के अनुसार यहाँ पर कोलासुर नाम का असुर राज कर रहा था। उसने यहाँ की प्रजा को का़ङ्गी परेशान कर रखा था। ऐसे उस असुर का देवीमाँ ने यहाँ पर वध कर दिया; जिससे कि यह स्थान ‘कोल्हापुर’ इस नाम से जाना जाने लगा। वहीं ‘करवीर’ इस नाम से संबंधित आख्यायिका के अनुसार यहाँ के निवासियों को कष्ट पहुँचानेवाले ‘करवीर’ का शिवजी ने वध किया और इसीलिए आगे चलकर यह स्थान करवीर इस नाम से जाना जाने लगा। एक अन्य आख्यायिका के अनुसार महालक्ष्मी ने प्रलय के समय इस नगर को स्वयं अपने हाथों (हाथ=कर) से उठाकर सुरक्षित स्थान पर रख दिया और इसीलिए इसका नाम ‘करवीर’ हो गया। कुछ लोगों की राय में ‘कोल्हापुर’ यह शब्द कोल्हार यानि कमल के साथ जुड़ा हुआ है। कोल्हापुर यानि कि कमलों का नगर। ख़ैर, आख्यायिकाएँ चाहे जो भी कहती हो, लेकिन यह सच है कि गत कईं सदियों से यह नगर ‘करवीर’ और ‘कोल्हापुर’ इन दो नामों से सुविख्यात है।

पंचगंगा नदी के तट पर बसे हुए इस शहर का इतिहास भी उसके अस्तित्व जितना ही प्राचीन है। कोल्हापुर शहर के इतिहास के तीन प्रमुख कालखंड माने जाते हैं- प्राचीन कालखंड, विदेशी हुकूमत का कालखंड और मराठों का शासनकाल। इस शहर का इतिहास लगभग २००० वर्षों का है।

कोल्हापुर, इतिहास, अतुलनिय भारत, महालक्ष्मी, पंचगंगा, भारत, भाग-१ऐसा भी एक मत है कि पुराने ज़माने में यह शहर एक पहाड़ी पर बसा था। कोल्हापुर से कुछ ही दूरी पर स्थित पंचगंगा नदी के तट पर ब्रह्मगिरि नाम की एक पहाड़ी है। कुछ वर्ष पहले उस पहाड़ी पर किये गये उत्खनन कार्य में वहाँ पर किसी ज़माने में एक सुनियोजित नगर बसा हुआ करता था, इसके सुराग़ मिले हैं। रसोई के चूल्हे से लेकर खाना पकाने से लेकर परोसने और खाने तक के लिए आवश्यक रहनेवाले मिट्टी के बरतन, विभिन्न प्रकार के हथियार, गहनें इत्यादि कईं वस्तुएँ इस उत्खनन में प्राप्त हुईं। इस शोधकार्य में पाये गये घर भी बड़े सुव्यवस्थित रूप से बनाये गये थे। लगभग २००० वर्ष पूर्व उनका निर्माण किया गया था। इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि २००० वर्ष पूर्व भी यहाँ पर इतनी सुव्यवस्थित नगररचना को करनेवाली एक सुसंस्कृत नागरी संस्कृति बसा करती थी।

कोल्हापुर पर विभिन्न कालखंडों में कदंब, वाकाटक, राष्ट्रकूट, चालुक्य, शिलाहार, मौर्य आदि राजवंशों ने शासन किया। शिलाहार राजवंश की यह राजधानी थी ऐसा भी कहा जाता है। शिलाहार राजवंश की तीन शाखाओं में से एक शाखा की राजधानी कोल्हापुर थी। लगभग १३वीं सदी तक यहाँ पर शिलाहार राजवंश की और उसके बाद यादव राजवंश की हुकूमत थी।

शिलाहार राजवंश के मारसिंह, गोंका और गंडरादित्य इन शासकों का नाम कोल्हापुर की विभिन्न वास्तुओं के निर्माण के संदर्भ में लिया जाता है।

साधारण रूप से १४वीं सदी के पूर्वार्ध में यहाँ पर मुग़लों की हुकूमत स्थापित हो गयी। छत्रपति शिवाजी महाराज के शासनकाल में उन्होंने इस प्रदेश को जीत लिया और उसके बाद कोल्हापुर पर मराठों का शासन रहा। आगे चलकर मराठों के बीच के सत्तासंघर्ष में कोल्हापुर पर ताराबाई की सत्ता स्थापित हुई।

आगे चलकर अँग्रेज़ों ने अन्य रियासतों की तरह कोल्हापुर पर भी अपना शिकंजा कस लिया और कोल्हापुर एक रियासत के रूप में बना रहा।
समय के साथ साथ शहर का विस्तार होता रहा और विकास भी। इसी दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था, १९वीं सदी के मध्य में यहाँ पर की गयी म्युनिसिपालटी की स्थापना। म्युनिसिपालटी की स्थापना के कारण शहर का सुनियोजित एवं सुयोग्य विकास करने की दिशा में कदम उठाना मुमक़िन हुआ। बढ़ती हुई आबादी के साथ साथ विभिन्न नागरी सुविधाओं को उपलब्ध कराना यह आवश्यक बन गया था। भारत के आज़ाद होने के बाद यह विकसित हो रही कोल्हापुर रियासत भारतीय संघराज्य का एक हिस्सा बन गयी।

महाराष्ट्र पठार पर बसा हुआ यह शहर आज एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण शहर बन गया है।

कहा जाता है कि इस शहर के चारों ओर लगभग ९ मीटर्स की ऊँचाई की चहारदीवारी का निर्माण किया गया था। उसमें ६ दरवाज़ें और ४५ बुर्ज़ थे। सुरक्षा की दृष्टि से इस शहर के चारों ओर एक खंदक (गहरा गड्ढ़ा) भी बनाया गया था। लेकिन जैसे जैसे इस शहर की आबादी बढ़ने लगी, वैसे वैसे यह चहारदीवारी और खंदक इनका अस्तित्व नहीं रहा। कोल्हापुर में प्राचीन समय से कई झीलें थीं। समय की धारा में उनमें से कईं झीलों का अस्तित्व मिट गया। लेकिन कोल्हापुर की ‘रंकाळा’ नाम की झील आज भी अस्तित्व में है। विशाल एवं विस्तृत ‘रंकाळा’ झील आज भी कोल्हापुर की शान है।

कोल्हापुर का भौगोलिक स्थान बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। यहाँ से घाट उतरते ही ठेंठ कोकण जा सकते हैं। इसके आसपास विशाळगढ़, पन्हाळगढ़, बावडा, महिपतगढ़ आदि क़िले हैं। इनमें से कुछ क़िलें शिवाजी महाराज के जीवनचरित्र एवं शासनव्यवस्था के साथ जुड़े हुए हैं। यहाँ पर बहादुरी का, वीरता का, दिलेरी का इतिहास घटित हुआ है। उन वीरों की गाथाएँ इतनी ओजस्वी हैं कि यदि आज यहाँ के पत्थर जीवित हो जायेंगे तो वे अपने मुख से उस इतिहास को फ़क्र से बयान करेंगे।

प्राचीन समय में कोल्हापुर यह एक प्रमुख व्यापारी केंद्र भी था। भौगोलिक स्थान के साथ साथ यहाँ की उपजाऊ मिट्टी और आबोहवा यह भी इसका एक महत्त्वपूर्ण कारण है। आज गन्ने की उत्पाद में कोल्हापुर यह एक अग्रसर शहर है। केवल कोल्हापुर ही नहीं, बल्कि उसके आसपास के इला़के में भे गन्ने की खेती की जाती है। काली उपजाऊ मिट्टी में विस्तृत रूप में ङ्गैलनेवाला गन्ना हम सबका मुँह मीठा करता है। कैसे? गन्ने से ही शक्कर और गुड़ का निर्माण किया जाता है। यहाँ का गुड़ काफ़ी मशहूर है। शायद यहाँ की मिट्टी के और पंचगंगा के जल के गुणधर्म उसमें उतरते हैं, यही उसके इस अनोखे स्वाद का राज़ है।

कोल्हापुर कहते ही भाविकों के हाथ अपने आप भक्तिभाव से जुड़ जाते हैं, माथा झुक जाता है; केवल उन जगज्जननी के स्मरण से। इस करवीर क्षेत्र की प्रमुख आराध्य हैं, देवी महालक्ष्मी और इन्हेंही यहाँ के स्थानीय निवासी ‘कोल्हापुर की अंबाबाई’ कहते हैं। पुराने समय में यह मन्दिर शहर के बीचोंबीच था। पद्ममाळा, रंकाळा, खोल खंडोबा, उत्तरेश्‍वर आदि छह गाँवों के बीचोबीच यह मन्दिर बसा हुआ था। इस पवित्र वास्तु का केवल वर्णन पढ़ने के बजाय थोड़ी देर रुककर दर्शन करके ही आगे बढ़ते हैं।

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