काशी भाग-३

Pg12_Dashasvamedha ghatनिरन्तर बहनेवालीं गंगाजी ने, जब से काशी में मनुष्यों की बस्तियॉं बसने लगी, तब से लेकर आज तक काशी का साथ निभाया हैं और वे ही काशी के अतीत एवं वर्तमान की प्रमुख गवाह हैं|

काशी नगरी के इतिहास का बौद्ध वांग्मय  में भी वर्णन किया गया है| बौद्धों के महावग्ग एवं जातकग्रन्थ इनसे काशी के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त होती है| इनके अनुसार बुद्धपूर्वकाल में काशी पर बहुत  ही बलवान राजा का शासन था और उसने आसपास के इलाकों को जीतकर उन्हें काशी के साथ जोड़ दिया था| वह राज्य बलवान एवं धनवान था, लेकिन बुद्धकाल में उस राजा का सामर्थ्य घटता रहा और काशी पर कोसलों ने कब्ज़ा कर लिया| इसापूर्व छठी सदी की यह घटना है| इसी कालखण्ड में महाकोशल राजा की कन्या कोसलदेवी का विवाह मगध के राजा बिंबिसार के साथ हुआ और काशीनगरी को उपहार के तौर पर बिंबिसार को दिया गया| काशी को इस दरमियान कईं आक्रमणों का सामना करना पड़ा, इसीलिए राजकीय दृष्टि से काशीनगरी को यद्यपि अधिक महत्त्व नहीं था, लेकिन ज्ञान,धर्म, व्यापार और संस्कृति इन क्षेत्रों में काशी का स्थान अव्वल रहा|

इसापूर्व ७वी सदी में भारत आये ह्युएन त्संग इस चिनी यात्री ने काशी का वर्णन किया है| उस वर्णन के अनुसार उस समय काशी पर हर्षवर्धन का शासन था| उस समय यह समृद्ध नगरी ‘वाराणसी’ इस नाम से जानी जाती थी| उस समय इस नगरी में अंदाजन् १०० मंदिर एवं ३० बौद्धविहार थें|

अल बरूनी मानक एक यात्री ने भी काशी का वर्णन किया है| उसके वर्णन के अनुसार पूरे हिन्दुस्तान से मुक्ति प्राप्त करने के उद्देश्य से लोग काशी आते रहते थें| वह काशी होकर गुजरनेवाले एक बड़े राजमार्ग का भी उल्लेख करता है|

प्राचीन समय से काशीनगरी व्यापार का एक बड़ा केन्द्र था, जिस वजह से काशी में बड़े पैमाने पर व्यापारी वर्ग बस रहा थाऔर इस व्यापार के कारण यहॉं धन की कमी भी नहीं थी| धन और सत्ता की लालसा के कारण ही काशी पर कईं आक्रमण हुए|

मध्ययुगीन समय में मुघलों के आक्रमणों के कारण सिर्फ  यह नगरी ही नहीं , बल्कि पूरे उत्तरप्रदेश को ही जर्जर किया था| परकीय आक्रमण के कारण किसी भी प्रदेश की जनता को जितनी तकलीफ  उठानी पड़ती है, उतनी ही वहॉं के ज्ञान-विज्ञान और संस्कृति की भी अत्यधिक हानि होती है| काशी को भी यह सब सहाना पड़ा| लेकिन रामानंदजी, कबीरजी और उनके बाद गोस्वामी तुलसीदासजी ने काशी में अध्यात्म एवं संस्कृति की रक्षा की| सोलहवी सदी में काशी के बुरे दिने खत्म हुए| आंबेर के राजा ने काशी में एक वेधशाला (जंतरमंतर) की स्थापना की| राजा मानसिंग द्वारा स्थापित इस वेधशाला का नाम था, ‘मानमंदिर’|

लेकिन फिर  थोड़े ही समय में काशी पर मुगलों के आक्रमण होने लगें और इन आक्रमणों की चपेट में काशी के प्रार्थनास्थल भी आ गयें|

मुघलों के कब्ज़े में चली गयी काशी को पुन: जीतने के लिए पेशवाओं ने काफी  प्रयास किए, लेकिन इस कार्य को पूरा करने के लिए उन्हें पूरा समर्थन नहीं प्राप्त हो सका, इसीलिए इस विचार को प्रत्यक्ष में उतारना उनके लिए मुमक़िन नहीं हुआ|

आखिर इसवी १७७५ में पूरे भारतवर्ष को निगलनेवाले अंग्रेज़ों के कब्ज़े में काशी चली गयी|अंग्रेज़ों का काशी पर शासन स्थापित हो जाने के कारण एक महत्त्वपूर्ण बात यह हुई कि काशी ‘ज्ञाननगरी’ के रूप में पुन: मशहूर हुई|

१८वी सदी के अन्त में अंग्रेज़ों ने यहॉं एक संस्कृत महाविद्यालय की शुरुआत की| इसवी १८१४ में लॉर्ड हेस्टिंग ने काशी के प्रथम अंग्रेज़ी स्कूल की नींव रखी| इसवी १८९८ में डॉ. ऍनी बेझंट के प्रयासों के कारण सेंट्रल हिंदू कॉलेज की स्थापना हुई और इसवी १९१६ में पंडित मदनमोहन मालवीयजी ने हिंदू विश्‍वविद्यालय की स्थापना की|

काशी और अध्यात्म का रिश्ता शरीर और प्राण के समान है| काशीनगरी यह एक शक्तिपीठ भी है| सती के दाहिने कान का कुण्डल यहॉं गिरा था, ऐसी कथा है| काशी और शिवजी का नाता अटूट है| दरअसल काशी को  ‘विश्‍वनाथजी की नगरी’ कहा जाता है और ‘विश्‍वनाथजी’ अर्थात् ‘काशीविश्‍वनाथजी’ ही इस नगरी के प्रमुख हैं|

काशी में कईं तीर्थ थें,लेकिन आज उनमें से कुछ ही विद्यमान हैं| काशी के ६ कुओं का उल्लेख पुराणों में है, लेकिन उनमें से तीन आज विद्यमान नहीं है|

गंगा और गंगा पर बनायें गयें घाट यह भी काशी का एक मुख्य आकर्षण है| काशी के घाटों में से  मुख्य दो घाट विख्यात हैं – दशाश्‍वमेध घाट और मणिकर्णिका घाट| हर एक घाट की अपनी एक विशेषता एवं महत्त्व है और ऐसे लगभग ८०-८५ छोटे-बड़े घाट गंगाजी पर बनाये गये हैं|

इनमें से कुछ घाटों का निर्माण पेशवाओं ने किया और करवाया| कुछ का निर्माण शिन्देजी ने किया, तो कुछ घाट नागपूरकर भोसलेजी ने बनवाये हैं| जयपूर-उदयपूर-आंबेर के राजाओं ने, नेपालनरेश ने और कुछ धनिक सावकारों ने भी इनमें से कुछ घाटों का निर्माण किया है|

बनारस के इन घाटों की सुन्दरता ने कईं चित्रकारों को मोहित किया| हरएक घाट का अपना स्वतन्त्र व्यक्तित्व है और इसीलिए इनकी सुन्दरता से मोहित होकर चित्रकार-छायाचित्रकार इन्हों ने घाटों का चित्रण करके उन्हें जनसामान्यों तक पहुँचाया|

इन घाटों में से सब से पुराना घाट है- मणिकर्णिका घाट| इसवी १३०२ में इस घाट का निर्माण किया गया| जीवन-मृत्यु के चक्कर से मुक्ति प्राप्त करने की आस से काशी आनेवालों के नश्‍वर शरीरों को इसी घाट पर आग के हवाले किया जाता है| मौत आये तो वह काशी में ही आये इस उद्देश्य के साथ हररोज़ कई लोग काशी आते है, क्योंकि काशी में मृत्यु आने पर भगवान उस मानव को मुक्ति प्रदान करते  हैं, यह विश्‍वास प्राचीन समय से मनुष्यों के मन में है |

काशी और ज्ञान, काशी और अध्यात्म, काशी और गंगा, काशी और धन(पैसा), काशी और व्यापार, काशी और संस्कृती| भला किस बात के साथ काशी का नाम नहीं जुड़ा है! मृत्यु के साथ भी काशी का नाम जुड़ा हुआ है| लेकिन इन सब बातों के बावजूद यह है प्रकाश की नगरी, हर एक जीव के जीवन में आनन्द निर्माण करनेवाली नगरी|

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