कांगड़ा भाग-३

गाड़ी के मुड़कर आगे बढते ही, दूर से कुछ धुँधली सी दिखायी देनेवाली वह वास्तु अब साफ़ साफ़ दिखायी दे रही है। दूर दूर तक फैली हुई चहारदीवारी और कुछ ऊँची वास्तुएँ ये दो बातें हमें बड़ी ही आसानी से दिखायी दे रही हैं। गत लेख के अन्त में जैसा कहा था, वैसे हम अब कांगड़ा के ‘उस मशहूर क़िले’ की ओर बढ़ रहे हैं। अब हमें कुछ ही दूरी पर दिखायी दे रहा है, कांगड़ा का वही क़िला।

चलिए, तो क़िले तक पहुँचते पहुँचते क़िले के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी हासिल करते हैं।

कांगड़ा नगर की सीमा पर ही यह क़िला अतिथियों का स्वागत करता है। टीले पर बसे हुए इस क़िले के पास ही दो नदियों का संगम होता है। लेकिन ज़रा ध्यान से, क्योंकि यह संगम एक गहरी खाई में होता है। क़िले पर से आसपास देखने पर गहरी खाई दिखायी देती है। इससे आप यह समझ ही गये होंगे कि इस क़िले के मुख्य प्रवेशद्वार के अलावा यदि किसी अन्य रास्ते से आप क़िले में दाखिल होना चाहते हैं, तो गहरी खाई से चढकर ही जाना पड़ेगा।

कहा जाता है कि अलेक्झांडर ने जब भारत पर आक्रमण किया था, तब उसकी उस मुहिम के वर्णन में इस क़िले का उल्लेख किया गया है। इस क़िले को इस पहाड़ी इला़के का सबसे पुराना एवं मज़बूत क़िला माना जाता है। इसके चारों तरफ बड़ी ही मज़बूत चहारदीवारी बनायी गयी थी। अब समय के साथ साथ आज वह कई जगह ढह चुकी है। लेकिन समय का प्रभाव यह जिस तरह इसकी एक वजह है, उसी तरह बीसवीं सदी के प्रारम्भ में यहाँ पर हुआ भूकम्प यह भी इस चहारदीवारी के ढहने की एक वज़ह है।

इतिहास कहता है कि ४ अप्रैल १९०५ की सुबह इस इला़के में भूकम्प के तेज़ झटके महसूस किये गये। लगभग ७.८ मॅग्निट्यूड की तीव्रता का यह झटका था। इस वजह से इस इला़के की कई वास्तुएँ धराशायी हो गयी, तो कुछ वास्तुओं के कुछ हिस्सें ढह गये। लगभग बीस हज़ार लोगों की मौत हो गयी और पचास हज़ार से भी अधिक मवेशियों की भी मृत्यु हो गयी। अब कुछ समय बाद इस हादसे में से भी यह इलाक़ा पुन: उभरा, यह तो निश्‍चित है।

देखिए, इस क़िले के अतीत को देखते देखते हम सीधे इसके प्रवेशद्वार तक आ पहुँचे।

इस क़िले के प्रवेशद्वार में से क़िले में दाख़िल होते ही अहाते में हम आ जाते हैं और वहाँ से क़िले के भीतर प्रवेश करते हैं। इस क़िले की ख़ासियत यह है कि इस क़िले के प्रवेशद्वारों को अलग अलग नाम दिये गये हैं। उनमें से कुछ नाम इस क़िले के भूतपूर्व शासकों के हैं। साथ ही एक और बात यह है कि इस क़िले के विभिन्न दरवाज़ों पर भूतपूर्व शासकों के नाम लिखे गये हैं।

इस क़िले की रचना समतल ज़मीन पर नहीं की गयी है, बल्कि टीले पर की गयी है और इसीलिए प्रवेशद्वार में से क़िले में दाखिल होने के बाद ऊपर चढकर जाना पड़ता है, जहाँ पर हम विभिन्न वास्तुओं को देख सकते हैं।

इस क़िले के मूल रचनाकार के बारे में इतिहास कहता है कि महाभारत काल में जब त्रिगर्त प्रदेश पर कटोच राजवंश के शासक राज कर रहे थे, तब उनमें से किसी राजा ने मूल क़िले को बनाया। उसके बाद विभिन्न शासकों के काल में विभिन्न वास्तुरचनाओं का निर्माण किया गया और इस तरह आज के वर्तमान क़िले का स्वरूप साकार हुआ। आज क़िले की कई वास्तुओं का काफ़ी नुकसान हुआ दिखायी देता है और हो सकता है कि अतीत की कुछ वास्तुएँ आज यहाँ न भी रही हों।

हम क़िले में दाख़िल तो हो चुके हैं, लेकिन क़िले से उसका नाम कहाँ पूछा हमने? इस क़िले को ‘कांगड़ा क़िला’ कहा जाता है।

इस क़िले के दरवाज़ों के नाम देखते हैं। दर्शन दरवाज़ा, आहनी दरवाज़ा, अमिरी दरवाज़ा, जहाँगीर दरवाज़ा, रणजीतसिंह दरवाज़ा और अँधेरी दरवाज़ा। इनमें से कुछ नामों से आप समझ ही गये होंगे कि इनमें से कुछ नाम कांगड़ा के भूतपूर्व शासकों के हैं। इससे यह ज्ञात होता है कि इन द्वारों का निर्माण उस नाम के शासक के कार्यकाल में किया गया है।

क़िला कहते ही हमारी आँखों के सामने दीवारें, गढ, चहारदीवारी इस तरह का नज़ारा आ जाता है। लेकिन कुछ क़िले इन सब बातों के साथ साथ शासकों की सुन्दरता-दृष्टि का भी परिचय देते हैं और कांगड़ा भी इसके लिए अपवाद (एक्सेप्शन) नहीं है। यहाँ के कुछ दरवाज़ों पर कुछ मूर्तियाँ तराशी गयी हैं, तो कहीं पर ऩक़्क़ाशियाँ भी बनायी गयी हैं। कांगड़ा के इस क़िले में कुछ बहुत ही ख़ूबसूरत वास्तुएँ मौजूद हैं, लेकिन उन वास्तुओं के अवशेष ही आज दिखायी देते हैं। किसी गहने पर किये गये ऩक़्क़ाशीकाम की तरह इन वास्तुओं पर अलंकरण किया गया है, जिससे कांगड़ा के शासकों की सुन्दरता-दृष्टि को हम समझ सकते हैं। दर्शनी दरवाज़े पर भी दोनों तरफ़ एक-एक मूर्ति दिखायी देती है। ये गंगा और यमुना की मूर्तियाँ हैं, ऐसा कहा जाता है।

कांगड़ा नगर और इस क़िले का इतिहास हमेशा ही परस्पर समान्तर रहा है। गत लेख में हम कांगड़ा के इतिहास पर नज़र डाल ही चुके हैं। जिस किसी ने भी कांगड़ा पर आक्रमण किया है, उसके आक्रमण का पहला लक्ष्य यह क़िला ही रहा है। कांगड़ा पर राज करनेवालों ने इस क़िले पर भी अधिपत्य स्थापित किया ही है।

क़िले के बारे में यह जानकारी भी मिलती है कि यह ‘कोट कांगड़ा’ या ‘नागरकोट’ इन नामों से भी जाना जाता था।

इस कांगड़ा क़िले की इतनी देर तक सैर करने के कारण शायद आपके पैर दर्द कर रहे होंगे। तो फिर आज यहीं पर रुकते हैं।

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