९४. रेगिस्तान में ख़ेती

जिस प्रकार इस्रायल के डेव्हलपमेंट टाऊन्स का ज़िक्र किया, तो एरिएह शेरॉन का नाम सामने आता है, उसी प्रकार नेगेव्ह के रेगिस्तान के विकास का ज़िक्र होने पर एक ऐसा ही नाम आँखों के सामने आ जाता है – ‘मेनाकेम पर्लमटर’!

सन १९२८ में तत्कालीन झेकोस्लोव्हाकिया में जन्मे पर्लमटर का नाम ‘नेगेव्ह विकास के शिल्पकार’ के रूप में सम्मानपूर्वक लिया जाता है। दूसरे विश्वपयुद्ध में जब नाझी जर्मनी ने झेकोस्लोव्हाकिया पर कब्ज़ा किया, उसके बाद सन १९४४ में उनके गाँव के सभी ज्यूधर्मियों को हिरासत में लिया गया, जिनमें वे और उनके बड़े भाई के साथ साथ उनका सारा परिवार भी था।

उसके बाद का, विश्व्युद्ध ख़त्म होने तक का समय कई बार गिरफ़्तारी, गिरफ़्तारी में से पलायन, पुनः गिरफ़्तारी, कभी आश्च‍र्यकारक रूप में रिहाई ऐसी आँखमिचौली में गया। विश्वियुद्ध ख़त्म होने पर जब वे अपने गाँव लौटे, तब उस पूरे गाँव के, उनके साथ साथ केवल १२ लोग ही वहाँ तक पुनः पहुँच सके हैं यह उन्हें ज्ञात हुआ।

उसके बाद सन १९४६ में पर्लमटर ने इस्रायल में आने की कोशिश की, लेकिन उस समय ब्रिटीश मँडेट होने के कारण ‘अवैध स्थलांतरित’ के तौर पर उन्हें सायप्रस की जेल में भेजा गया।

आगे चलकर इस्रायल के स्वतन्त्र होने पर जुलाई १९४८ में उनकी रिहाई होकर वे इस्रायल में पहुँच तो सके, लेकिन उस समय इस्रायल का स्वतन्त्रतासंग्राम चालू होने के कारण उन्हें इस्रायली फ़ौज में भर्ती होना पड़ा। यहाँ उन्हें प्रत्यक्ष युद्ध में सहभागी होने के साथ साथ, कुछ तात्कालिक कारण की वजह से सर्व्हेईंग का प्रशिक्षण भी मिला। यह प्रशिक्षण यानी उनके लिए उनके भविष्यकालीन कार्यक्षेत्र की पूर्वतैयारी ही साबित हुई; क्योंकि आगे चलकर युद्ध के ख़त्म होने के बाद जब नौकरी का सवाल खड़ा हुआ, तब उनके सामने एक नामचीन मौक़ा चला आया। दुनियाभर से आनेवाले ज्यू स्थलांतरितों के निवास का प्रबन्ध करने के लिए जब डेव्हलपमेंट टाऊन्स की योजना बनायी गयी, तब पर्लमटर की नियुक्ति नेगेव्ह रेगिस्तानी प्रदेश में डेव्हलपमेंट टाऊन्स का निर्माण करने हेतु बतौर प्रमुख सर्व्हेयर हुई। आगे चलकर उन्होंने ज्युईश एजन्सी के ‘रूरल सेट्लमेंट डिपार्टमेंट’ के इंजिनिअरिंग खाते के नेगेव्ह विभाग के संचालक के रूप में भी कार्यभार सँभाला।

इस वीरान रेगिस्तान में डेव्हलपमेंट टाऊन्स का निर्माण करना यानी महज़ निवास के लिए घरों का निर्माण करना नहीं था; बल्कि बुनियादी सुविधाओं के साथ साथ सबकुछ शून्य में से निर्माण करना था। बिजली, पानी, सड़कें, परिवहनव्यवस्था, शैक्षणिक सुविधा, स्वास्थ्यसुविधा, किस भाग में कौनसी ख़ेती की जा सकती है – इन सबके बारे में ही योजना बनानी थी। इतना ही नहीं, बल्कि वहाँ पर बसनेवाले सभी नागरिकों के रोज़गार का प्रबन्ध हो पाने के लिए ख़ेती के अलावा अन्य पूरकधंधे एवं उद्योग, उसके लिए आवश्यक निधि इन सबके बारे में भी सोचना था। ख़ेती भी नेगेव्ह के रेगिस्तान में, दिन में ५० अंशों तक जा पहुँचनेवाले और रात को कड़ाके की ठण्ड़ होनेवाले, ऐसे तापमान में करनी थी। सबसे अहम बात यानी, पीने के लिए और ख़ेती के लिए पानी का इन्तज़ाम कैसे करना है, यह सवाल था।

पूरे इस्रायल में पीनेलायक पानी का स्रोत केवल गॅलिली का प्रचंड बड़ा सरोवर यही था और उसकी दारोमदार उसके कॅचमेंट एरिया में गिरनेवाली भरपूर बारिश पर ही थी। यह गॅलिली का पानी, साथ ही पर्वत के ढलान पर से नीचे आनेवाला पानी इन्हें अच्छे से संग्रहित कर, नहरों तथा पाईपलाईन्स के जाल के ज़रिये पूरे इस्रायल में उसकी आपूर्ति करने की योजना अलग से बन रही थी।

पूरे नेगेव्ह रेगिस्तान में एकदम कम पर्जन्यमान होने के कारण पानी के लिए पाईपलाईन्स के प्रचंड बड़े जाल का निर्माण किया गया।

लेकिन उस पानी से केवल पीने के पानी की ज़रूरत कुछ हद तक पूरी हो जाती, वह पानी ख़ेती के लिए पर्याप्त नहीं होता। ऐसे में चौखट के बाहर की सोच आवश्यक थी। गिरनेवाली बारिश पर तो अपना कुछ भी नियंत्रण नहीं है, वह नैसर्गिक घटना है। लेकिन बारिश गिरने के बाद, ज़मीन पर गिरनेवाली उसकी हर एक बूँद को इस्तेमाल में लाना और पानी कम से कम जाया करना, यह तो अपने हाथ में है। यही विचार पर्लमटर ने किया और उस दृष्टि से सारा संशोधन शुरू हुआ। पानी बचाने हेतु, ख़ेती के लिए ‘ड्रिप इरिगेशन’ जैसे टेक्निक्स का इस्तेमाल किया जाने लगा। पहले कुछ साल तो ऐसे संशोधनों में ही बीते। कभी कोई संशोधन पहले झटके में ही सफल हो जाता था, तो कभी उसे बार बार असफलता मिलती थी। लेकिन इससे मायूस न होते हुए लगन से संशोधन को जारी रखा जाता था।

पानी बचाने के साथ साथ, पानी के वैकल्पिक स्रोत क्या हो सकते हैं, इसके बारे में संशोधन करते समय, नेगेव्ह के रेगिस्तान के नीचे ही बहुत बड़े जलस्रोत होने की खोज हुई। यह पाना हालाँकि नैसर्गिक दृष्टि से पीनेलायक नहीं था, उसका इस्तेमाल क्या ख़ेती के लिए किया जा सकता है, इसके बारे में संशोधन शुरू हुआ। यह पानी खारा था, लेकिन समुद्र के पानी जितना नहीं। अतः इस कम खारे (‘ब्रॅकिश’) पानी के प्रयोग ख़ेती पर किये जाने लगे। इस पानी में भी पेड़ ज़िन्दा रह रहे हैं, वे पानी को नकार नहीं रहे हैं, ऐसा ध्यान में आ जाने के बाद फिर उस पानी का, विभिन्न पेड़ों की गुणवत्ता पर और गुणधर्मों पर क्या परिणाम होता है, इसपर संशोधन शुरू हुआ।

रेगिस्तान में पानी की उपलब्धता ही कम होने के कारण, इस्रायल को उपलब्ध सभी जलस्रोतों का इस्तेमाल करना ही पड़ा।

इस संशोधन के दौरान कई बातें ध्यान में आयीं; जैसा कि – इस ज़रासे खारे पानी का यदि टरबुजों जैसे फलपेड़ों के लिए इस्तेमाल किया, तो उस पेड़ में अधिक दाब का निर्माण होकर वह पेड़ अधिक ग्लुकोज बनाता है, जिससे कि उसके फल स्वाद में अधिक मीठे तैयार होते हैं। वैसे ही, ‘डेड सी’ के आसपास की ज़मीनों में अधिक होनेवाला मिनरल्स का प्रमाण प्याज़ जैसी फ़सलों के गुणधर्मों को अधिक तीक्ष्ण बनाता है।

ऐसे कई प्रकार के संशोधनों में से नेगेव्ह के रेगिस्तान का हुलिया धीरे धीरे बदलने लगा। इतने दशकों के इन सभी प्रयासों का एकत्रित परिणाम दिखायी देने लगा और नेगेव्ह के रेगिस्तान का ‘रेगिस्तानी’ भाग धीरे धीरे कम होता जाकर, उसके स्थान पर विभिन्न प्रकार की हरियाली दिखने लगी। नेगेव्ह के रेगिस्तान में हरियाली खिलाने का जो सपना बेन-गुरियन ने नेगेव्ह के उस कृषिविशेषज्ञ के साथ बात करते हुए व्यक्त किया था, वह धीरे धीरे पूरा होता दिखायी दे रहा है और इसके शुरुआती प्रयासों में अहम हिस्सा है पर्लमटर का।

अपने जीवन का, पाँच दशकों से भी अधिक समय नेगेव्ह के विकास के लिए खर्च करनेवाले पर्लमटर आगे चलकर, पर्यावरण का भान रखकर की जानेवाली ख़ेती के आंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ माने गये और उन्हें कई राष्ट्रीय-आंतर्राष्ट्रीय सम्मान भी प्राप्त हुए।

लेकिन इस्रायल से जी-जान से प्रेम करनेवाले पर्लमटर को उन सारे सम्मानों की अपेक्षा भी, उनकी पत्नी ने नेगेव्ह रेगिस्तान में हरियाली खिलाने के उनके सपने में सहभागी होकर वहीं के एक स्कूल में टीचर की नौकरी की इस बात की; और उनकी बेटियों ने उनकी शादियाँ हो जाने के बाद भी नेगेव्ह प्रांत को ही अपने निवासस्थान के रूप में चुना, इस बात की खुशी अधिक थी।

इस्रायली शास्त्रज्ञ, कृषिविशेषज्ञ, सरकार और आम जनता इनके एकत्रित परिश्रमों में से ही रेगिस्तानी इला़के में भी विभिन्न फ़सलें उगने लगीं।

इस्रायली लोग ये अधिकांश रूप में ऐसे ही मनस्वी – ध्येय हावी हुए रहते हैं। आज भी इस नेगेव्ह के रेगिस्तान में घर बनाने की चुनौती वहाँ के कई इस्रायलियों को बुलाती है। शहर में चल रही अपनी अच्छीख़ासी नौकरी को छोड़कर नेगेव्ह के रेगिस्तान में कुछ कर दिखाने की लगन से वहाँ स्थलांतरित हुए युवाओं के-मध्यमवयीनों के उदाहरण बीच बीच में वहाँ के प्रसारमाध्यमों में प्रकाशित होते रहते हैं। फिर कभी किसी डॉक्टर दंपति पर, ग्रामीण इला़के में ‘पुसानेवाली (अफोर्डेबल) वैद्यकीय सेवा’ प्रदान करने का ध्येय सवार हुआ दिखायी देता है; वहीं, कभी रेगिस्तान की किसी बस्ती में किंडरगार्टन चलाने का ध्येय दिल पर हावी हुई कोई टीचर, ‘क्राऊडफ़ंडिंग’ का आवाहन करती हुई दिखायी देती है। (‘क्राऊडफ़ंडिंग’= किसी प्रस्तावित उपक्रम के लिए आवश्यक निधि के लिए ठेंठ आम जनता को ही आवाहन करना)

लेकिन इस्रायली लोगों के इतिहास को देखें, तो ‘ध्येय दिलोदिमाग़ पर हावी होना’ यही उनका स्वभावविशेष आसानी से दिखायी देता है ना?(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

 

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