जापान के प्रधानमंत्री एबे ने दिया चौकानेवाला इस्तीफा

टोकियो – जापान के प्रधानमंत्री एबे शिंजो ने शुक्रवार के दिन स्वास्थ्य के कारणों से अपने पद का इस्तीफा दिया। इस बीमारी का देश की अहम नीति पर असर ना हो, इसकी वजह से यह निर्णय करने की बात एबे ने इस दौरान कही। लंबे समय के लिए जापान के प्रधानमंत्री रहे नेता के तौर पर एबे की पहचान बनी हैं। प्रधानमंत्री के कार्यकाल में एबे ने आक्रामक निर्णय लेके देश को मज़बूत बनाया था। इसी वजह से उनके इस चौकानेवाले इस्तीफे से सनसनी फैली है और विश्‍वभर से एबे के इस्तीफे पर नेताओं की प्रतिक्रिया प्राप्त हो रही है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी एबे के इस्तीफे पर दुख व्यक्त किया। एबे के इस्तीफे का असर इंडो-पैसेफिक क्षेत्र की गतिविधियों पर पड सकता है, ऐसा कहा जा रहा है।

japan-pmशुक्रवार की सुबह से ही माध्यमों में एबे के इस्तीफे की खबरें आ रही थी। दोपहर के समय में वार्तापरिषद करके एबे ने प्रधानमंत्री पद के इस्तीफे का ऐलान किया। स्वास्थ्य के कारणों से इस्तीफा देने की बात एबे ने कही है। बीते महीने में एबे दो बार अस्पताल गए थे। एबे पहले से ही आंत के अल्सर से बीमार हैं। हम जनता के लिए सबसे अच्छा निर्णय नहीं कर पाए तो हमें प्रधानमंत्री बने रहने का अधिकार नहीं है, ऐसा एबे ने कहा। इसके अलावा इस्तीफे के लिए यही समय बेहतर होने की बात एबे ने स्पष्ट की।

वर्ष २०१२ से एबे जापान के प्रधानमंत्री रहे हैं। आठ वर्ष के प्रधानमंत्री पद के कार्यकाल में उन्होंने आक्रामक निर्णय करके जापान की अर्थव्यवस्था मज़बूत की। साथ ही ईस्ट चायना सी के विवाद में एबे चीन के खिलाफ़ खड़े हुए। एबे ने ही इंडो-पैसिफिक नाम देकर इस क्षेत्र का गणित बदल दिया था। इसके बाद भारत और जापान का सहयोग काफी मज़बूत हुआ था। इसी वज़ह से एबे के इस्तीफे के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने व्यक्त की हुई प्रतिक्रिया ध्यान आकर्षित करती हैं। बीते कुछ वर्षों में जापान और भारत के संबंध काफी गहरे और मज़बूत बने हैं। एबे के स्वास्थ्य में जल्द सुधार हो, यह सदिच्छा प्रधानमंत्री मोदी ने प्रदान की। तभी एबे के इस्तीफे पर तैवान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, रशिया ने प्रतिक्रियाएं दर्ज़ की हैं और उनके कार्यकाल में संबंध अधिक मज़बूत होने की बात इन देशों के नेताओं ने कही है।

इससे पहले वर्ष २००७ में भी एबे ने बीमारी के कारण से प्रधानमंत्री पद का इस्तीफा दिया था। इसके बाद दुबारा जापान के प्रधानमंत्री होने पर एबे ने सियासी, आर्थिक एवं लष्करी मोर्चे पर जापान को अधिक मज़बूत किया। इसमें जापान की रक्षा नीति में एबे ने किया हुआ आक्रामक बदलाव चीन की चिंता बढ़ानेवाला साबित हुआ। दूसरे विश्‍वयुद्ध के बाद जापान की रक्षानीति बचावात्मक रही थी। लेकिन चीन और उत्तर कोरिया से जापान की सुरक्षा के लिए खतरा होने की बात रेखांकित करके एबे ने जापान पर थोपी गई रक्षात्मक लष्करी नीति बदल दी थी। चीन को छोड़कर अमरीका के साथ पूरे विश्‍व ने जापान की इस भूमिका का स्वागत किया था। जापान दूसरे विश्‍वयुद्ध की मानसिकता में होने की आलोचना बेचैन चीन ने की थी। ईस्ट चायना सी में सेंकाकू द्विपों की सुरक्षा के लिए चीन के खिलाफ़ आक्रामक लष्करी नीति अपनाने के बाद एबे ने भारत और अमरीका के साथ इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भी अहम भूमिका निभाई है। ऐसी स्थिति में एबे का इस्तीफा इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की गतिविधियों पर असर कर सकता है।

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