जम्मू-कश्मीर विधानसभा में जम्मू-लद्दाख के विधायकों की संख्या बढेगी – परिसीमन के लिए केंद्र सरकार की जरूरी प्रक्रिया शुरू

नई दिल्ली: जनसंख्या और क्षेत्र के अनुसार जम्मू और लद्दाख को जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में संतुलित प्रतिनिधित्व मिले इसलिए गतिविधियां शुरू हुई हैं| जम्मू तथा लद्दाख में जनता से इन कोशिशों का जोरदार स्वागत हो रहा हैं| अभी तक इस राज्य में कश्मीर घाटी के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र की संख्या सबसे अधिक थीं| इस कारण जम्मू और लद्दाख क्षेत्र की जनता अपने पर अन्याय होने की शिकायत कर रही थीं| उस पृष्ठभूमि पर केंद्र सरकार ने शुरू किए इन गतिविधियों पर समाधान व्यक्त किया जा रहा हैं|

हाल ही में ही दफ्तर स्वीकारने वाले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक, केंद्रीय गृह सचिव राजीव गौबा और गुप्तचर विभाग के प्रमुख राजीव जैन के साथ गहन चर्चा की हैं| जम्मू और कश्मीर के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र का परिसीमन करने पर चर्चा होने का बताया जाता हैं| इस कारण आने वाले समय में जम्मू तथा लद्दाख में विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र की संख्या में वृद्धि होने वाली हैं| इस कारण वर्णित राज्य की विधानसभा में दोनों प्रांतों को जनसंख्या और क्षेत्र के अनुसार प्रतिनिधित्व मिलेगा|

वर्ष २०११ की जनगणना के अनुसार जम्मू की जनसंख्या ५३ लाख, ७८ हजार ,५३८ हैं| जम्मू-कश्मीर राज्य की तुलना में जम्मू का क्षेत्र लगभग २६ प्रतिशत हैं| तो लद्दाख की जनसंख्या २ लाख, ७४ हजार, २७९ होते हुए इस राज्य के क्षेत्र में लद्दाख का हिस्सा ५८ प्रतिशत से अधिक हैं| वही कश्मीर घाटी की जनसंख्या ६८ लाख, ८८ हजार, ४७५ होते हुए राज्य में लगभग १५.७३ प्रतिशत क्षेत्र कश्मीर घाटी ने कवर किया हैं|

कश्मीर घाटी में विधानसभा के ४६ निर्वाचन क्षेत्र है, जम्मू क्षेत्र में विधानसभा के ३७ निर्वाचन क्षेत्र है और लद्दाख में केवल ४ निर्वाचन क्षेत्र हैं| वर्ष १९३९ में इस विषय में निर्णय लिया गया था| परंतु इसके आगे के समय में आवश्यकता होने पर भी जम्मू-कश्मीर के निर्वाचन क्षेत्र का परिसीमन नहीं किया गया| ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार ने इस संदर्भ में शुरू की गतिविधियां स्वागत करने वाले साबित होती हैं, ऐसा जम्मू और लद्दाख क्षेत्र के नेता और जनता का कहना हैं| परंतु कश्मीर घाटी के नेताओं ने इस प्रक्रिया को अपना विरोध होने का सूचित किया हैं|

वर्तमान में जम्मू-कश्मीर की विधानसभा भंग की गई है और राज्यपाल सत्यपाल मलिक के पास राज्य की प्रशासनिक जिम्मेदारी हैं| ऐसी परिस्थिति में वर्णित परिसीमन के लिए विधानसभा की मंजूरी लेने की आवश्यकता नहीं रही हैं| ऐसा होने पर भी यह प्रक्रिया जटिल होने का दावा कुछ विशेषज्ञ कर रहे हैं| परंतु यदि इस प्रक्रिया को पूरा करने में केंद्र सरकार को सफलता मिलती है तो जम्मू-कश्मीर में पृथकतावादियों का प्रभाव समाप्त हो जाएगा और यह राज्य अधिक प्रभावी रूप से देश से जुड जाएगा, ऐसा विश्वास व्यक्त किया जा रहा हैं| भूतपूर्व लष्करी अधिकारी भी केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के निर्वाचन क्षेत्र का परिसीमन करने संबंधी किए निर्णय का समर्थन कर रहे हैं|

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