बटवारे के बाद जम्मू-कश्मीर में आये शरणार्थीयों से संविधान के अनुच्छेद ’३५-ए’ को सर्वोच्च न्यायालय में आवाहन

नई दिल्ली: सन १९४७ में पश्चिम पाकिस्तान से भारत में आकर जम्मू-कश्मीर में रहे तीन लाख शरणार्थियों ने संविधान के ’३५-ए’ अनुच्छेद को सर्वोच्च न्यायालय में आवाहन दिया है। संविधान के ३५-ए इस अनुच्छेद के अनुसार जम्मू कश्मीर में नागरिकों को विशेष अधिकार दिए हैं। पर बंटवारे के बाद जम्मू-कश्मीर में आए शरणार्थियों को यह अधिकार नहीं मिल रहे। उन्हें संपत्ति की ख़रीदारी करना, सरकारी नौकरी प्राप्त करने के अधिकार नहीं है। इसकी वजह से ६५ वर्षों के बाद हमें अपने देश में शरणार्थियों के तौर पर जीना पड़ रहा है, यह शिकायत याचिकाकर्ताने की है।

जम्मू-कश्मीर में आये शरणार्थीयोंजम्मू-कश्मीर के नागरिकों को विशेष अधिकार देने वाले अनुच्छेद ३५-ए को आवाहन देने वाली और एक याचिका सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल हुई है। इसके पूर्व एक गैर-सरकारी संगठन ने सर्वोच्च न्यायालय में ३५-ए इस अनुच्छेद को आवाहन दिया था। ३५-ए अनुच्छेद के अनुसार सरकारी नौकरी या जम्मू कश्मीर में संपत्ति लेने का अधिकार बाहरी राज्य के नागरिकों को नहीं। तथा जम्मू कश्मीर में किसी युवती का विवाह दूसरे राज्य के नागरिक के साथ होता है तो उसका इस प्रांत की संपत्ति पर अधिकार समाप्त होता है। इस अनुच्छेद की वजह से भारत के दूसरे राज्यों के नागरिकों के समान अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। जिसकी वजह से इस अनुच्छेद में सुधार करना आवश्यक है, यह मांग इस याचिका द्वारा की गई है।

सर्वोच्च न्यायालय में अनुच्छेद ३५-ए को आवाहन देने के उपरांत जम्मू कश्मीर में बहुत बड़ी खलबली फैली। यह अनुच्छेद स्थगित नहीं किया जा सकता और यह जम्मू कश्मीर की जनता पर अन्याय होगा एवं जिसकी वजहसे परीस्थिति नियंत्रण से बाहर जाएंगी। इस पृष्ठभूमि पर अनुच्छेद ३५-ए को आवाहन देनेवाली दूसरी याचिका दाखिल हुई है। यह याचिका जम्मू-कश्मीर में पिछले ७० वर्ष शरणार्थियों की जिंदगी जीनेवाले नागरिकों की ओर से दाखिल की गयी है।

भारत-पाकिस्तान बटवारे के समय पश्चिम पाकिस्तान से वहां का समुदाय जम्मू-कश्मीर में दाखिल हुआ था। तत्कालीन सरकारने उन्हें जम्मू-कश्मीर के स्थाई निवास प्रमाणपत्र देने का आश्वासन दिया था। तथा जम्मू कश्मीर के स्थानिक नागरिकों के जैसे अनुच्छेद ३५-ए के अंतर्गत आने वाले सभी अधिकारों को देने का आश्वासन दिया था।

सन १९५४ में संविधान का ३५-ए अनुच्छेद अस्तित्व में आया। पर इन नागरिकों को दिए आश्वासन के अनुसार उन्हें स्थानीय नागरिकों का दर्जा नहीं दिया गया। अनुच्छेद ३५-ए के अनुसार केवल स्थानीय नागरिकों को ही सरकारी नौकरी, संपत्ति खरीदारी एवं अन्य अधिकार दिए गए हैं।

सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करनेवाले का नाम काली दास होकर अपना मूलभूत मानवाधिकार मिले, ऐसा आवाहन याचिकाकर्ताने इस याचिका द्वारा किया है। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और डी.वाई. चंद्रचूड़ की अदालत में यह याचिका सुनवाई के लिए आयी थी।

न्यायालय ने यह याचिका दाखिल करके शरणार्थियों के इस याचिका को ३५-ए अनुच्छेद से संबंधित अन्य याचिकाओं में शामिल किया है।

जम्मू-कश्मीर को दिए विशेष अधिकार पर देशभर से फिलहाल जोरदार चर्चा शुरू है। यह विशेष स्थान पीछे लेते हुए जम्मू-कश्मीर को भी अन्य राज्यों के जैसे ही देश में शामिल किया जाए, यह मांग जोर पकड़ रही है। पर कुछ लोगों का इस मांग पर कड़ा विरोध है।

जम्मू कश्मीर को दिया विशेष स्थान अगर भारत ने स्थगित किया तो इस राज्य की सारी जनता भारत के विरोध में जाएगी, ऐसा कई नेताओं का कहना है। साथ ही इस राज्य के विद्रोही इस मुद्दे के विरोध में आंदोलन छेड़ने की धमकियां दे रहे हैं।

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