श्रीलंका में विक्रमसिंघे के पदच्युति के खिलाफ तीव्र प्रदर्शन

Third World Warकोलंबो – श्रीलंका के राष्ट्राध्यक्ष मैत्रीपाला सिरिसेना ने रानील विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री पद से पदच्युत करने की वजह से श्रीलंका में अस्थिरता फ़ैल गई है। विक्रमसिंघे के हजारों समर्थकों ने मंगलवार को श्रीलंकन संसद, प्रधानमंत्री कार्यालय और राष्ट्राध्यक्ष निवासस्थान के सामने प्रदर्शन करके राष्ट्राध्यक्ष सिरिसेना के खिलाफ घोषणाएं दी।

विक्रमसिंघे की ‘यूनाइटेड नेशनल पार्टी’ ने आयोजित किए इस प्रदर्शन पर श्रीलंकन पुलिस ने कार्रवाई की है। इस प्रदर्शनकारियों को भगाने के लिए बड़े पैमाने पर बल का उपयोग किया गया। विक्रमसिंघे के समर्थन में इकठ्ठा हुए इन प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्राध्यक्ष सिरिसेना और उन्होंने नियुक्त किए महिंदा राजापक्षे के खिलाफ जोरदार घोषणाएं दी हैं। ‘राष्ट्राध्यक्ष सिरिसेना से श्रीलंका के लोकतंत्र को बचाएँ’, ऐसी घोषणाएं इस समय दी गईं।

पदच्युत प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे ने अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए, ‘यह राजनीतिक विद्रोह किसी एक व्यक्ति अथवा पार्टी के खिलाफ नहीं है। बल्कि अपने देश का लोकतंत्र, न्यायव्यवस्था और घटना के खिलाफ षडयंत्र है’, इन शब्दों में आलोचना की है।

विक्रमसिंघे, प्रदर्शन, रानील विक्रमसिंघे, प्रधानमंत्री, पदच्युत, श्रीलंका, चीनऊपर से श्रीलंका का यह संघर्ष अंतर्गत राजनीतिक सत्ता प्रतियोगिता का हिस्सा दिखाई दे रहा है, लेकिन इसके पीछे चीन का हाथ है, ऐसा स्पष्ट रूपसे दिखाई दे रहा है। राष्ट्राध्यक्ष सिरिसेना ने प्रधानमंत्री पद पर लाए महिंदा राजापक्षे चीन के हस्तक हैं, यह कई बार साबित हुआ है। इस बार भी श्रीलंका में हो रही उथल पुथल यह इस देश का अंतर्गत मामला होने का चीन ने दावा किया है। अलग शब्दों में कहा जाए तो श्रीलंका की इस राजनीतिक उथल पुथल में दूसरे देश हस्तक्षेप न करें, ऐसा चीन कहा रहा है।

महिंदा राजापक्षे फिरसे श्रीलंका के प्रधानमंत्री पद पर आने की वजह से श्रीलंका पर चीन का प्रभाव फिरसे भयानक रूपसे बढ़ने वाला है और उस वजह से इस देश का सफ़र लोकतंत्र से तानाशाही की तरफ शुरू होगा, ऐसी चिंता व्यक्त की जाती है। भारत, अमरिका और यूरोपीय देशों ने श्रीलंका के घटनाक्रमों पर व्यक्त की हुई चिंता यही दिखाती है।

श्रीलंका का हंबंटोटा बंदरगाह नियंत्रण में लेकर चीन ने इस देश को दिए कर्ज को वसूल किया था। इस वजह से श्रीलंका की जनता में चीन की नकारात्मक प्रतिमा है। ऐसी परिस्थिति में चीन के हस्तक के तौर पर प्रसिद्ध नेता को प्रधानमंत्री बनाकर राष्ट्राध्यक्ष सिरिसेना ने श्रीलंका में अराजकता को आमंत्रित किया है, ऐसा विश्लेषक कह रहे हैं। श्रीलंका फिर एक बार चीन और चीन विरोधी देशों के सत्ता संघर्ष की रणभूमि बनने वाली है, ऐसी चेतावनी इस देश के लोकतंत्रवादियों की तरफ से दी जा रही है।

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