भारत के ‘डीप ओशन मिशन’ का जल्द ही होगा आरंभ

नई दिल्ली – समुद्र की गहराई में छिपी हुई खनिज संपत्ति की खोज़ के लिए भारत अगले तीन से चार महीनों में “डीप ओशन मिशन” का आरंभ करेगा, यह ऐलान पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम.राजीवन ने किया है। भविष्य के नज़रिये से ‘गेम चेंजर’ साबित होनेवाली इस महत्वाकांक्षी मुहिम के लिए आवश्‍यक सभी अनुमतियां प्राप्त होने की जानकारी राजीवन ने साझा की है। बीते वर्ष केंद्र सरकार ने इस मुहिम को मंजूरी दी थी।

भारत की समुद्री सीमा में पर्याप्त खनिज भंड़ार मौजूद हैं और अब तक इन भंड़ारों की खोज़ के लिए विशेष कोशिश नहीं की गई थी। दो वर्ष पहले पृथ्वि मंत्रालय ने ‘डीप ओशन मिशन’ शुरू करने का निर्णय किया था। बीते वर्ष केंद्र सरकार ने इस प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान की थी। ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था’ (इस्रो) ने अलग अलग मुहिमों के माध्यम से अंतरिक्ष में भारत का नाम दर्ज़ किया है। इसी तर्ज़ पर समुद्र की गहराई में व्यापक मु्हिम शुरू करने का विचार केंद्र सरकार कर रही है।

समुद्र की गहराई के अधिक व्यापक अनुसंधान के लिए तकनीक विकसित करना भी इस मुहिम का एक हिस्सा है। इसके लिए ‘डीआरडीओ’, इस्रो और ‘कौन्सिल फॉर सायंटिफिक ऐण्ड इंडस्ट्रियल रिसर्च’ (सीएसआयआर) की सहायता प्राप्त की जा रही है। भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र और समुद्री सीमा क्षेत्र में अनुसंधान और खनन के लिए ४ हज़ार करोड़ रुपयों की लागत की उम्मीद होने की बात पृथ्वी मंत्रालय ने साझा की है। संयुक्त राष्ट्र की ‘इंटरनैशनल सी बेड अथॉरिटी’ (आयएसए) ने भारत को मध्य हिंद महासागर के क्षेत्र में ७५ हज़ार चौरस किलोमीटर क्षेत्र में ‘पॉलिमेटैलिक नॉडूल्स’ के खनन और खोज़ के लिए अनुमति प्रदान की गई थी। वर्ष २००२ में इसके लिए पहली बार समझौता किया गया था। लेकिन, इस पर आवश्‍यक काम नहीं हुआ। वर्ष २०१६ में दुबारा ‘आयएसए’ के साथ १५ वर्षों के लिए समझौता किया गया था।

‘पॉलिमेटैलिक नॉडूल्स’ यानी गहरे समुद्र में मौजूद पत्थर निकल, कॉपर, कोबाल्ट, मैंगनीज एवं आयर्न से भरे होते हैं। हिंद महासागर क्षेत्र में ६ हज़ार मीटर गहराई पर ‘पॉलिमेटैलिक नॉडूल्स’ हर तरफ फैले होने के दावे किए जा रहे हैं। भारत की समुद्री सीमा क्षेत्र में ३८ करोड़ टन ‘पॉलिमेटैलिक नॉडूल्स’ मौजूद होने का अनुमान है।

इन ‘पॉलिमेटैलिक नॉडूल्स’ को निकालकर उससे प्राप्त होनेवाले खनिजों का इस्तेमाल इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण, स्मार्टफोन्स, पैनल्स में करना संभव होगा। फिलहाल भारत इसके लिए अन्य देशों पर निर्भर है। साथ ही हिंद महासागर के तल पर ‘पॉलिमेटैलिक सल्फायड’ बड़ी मात्रा में मौजूद है और इसमें अन्य खनिजों के साथ सोना, चांदी और प्लैटियम के भंड़ार भी देखे जाते हैं। इससे पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के ‘डीप ओशन मिशन’ की अहमियत स्पष्ट होती है।

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