भारत मालदीव में करेगा रणनीतिक रूप से अहम हवाई अड्डे का विकास

माले – मालदीव में सामरिक नज़रिए से अहम ‘हनिमाधो अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे’ का विकास भारत कर रहा है। इसके बाद इस हवाई अड्डे के रनवे पर ‘ए-३२०’ और ‘बोर्इंग-७३७’ जैसे विशाल विमान आसानी से उतारना संभव होगा। मालदीव में यह एक बड़ा और अहम बुनियादी सुविधाओं का प्रकल्प समझा जा रहा है। इसकी वजह से भारत और मालदीव के बीच कनेक्टिविटी बढ़ेगी।

airport-india-maldive‘एअरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया’ का शिष्टमंड़ल इसी काम के उद्देश्‍य से हाल ही में मालदीव गया था। इस शिष्टमंडल ने वर्णित हवाई अड्डे का परीक्षण किया। इस परीक्षण की रपट दो महीनों में पेश होगी। इस दौरान संबंधित शिष्टमंडल ने मालदीव के अर्थविकास और नागर उड्डयनमंत्री से मुलाकात की। मालदीव की बिनती पर भारत ने इस हवाई अड्डे पर बुनियादी सुविधाओं के प्रकल्प का काम हाथ में लिया है।

वर्ष २०२१ में इस हवाई अड्डे के विस्तार का काम शुरू होगा। इसके अनुसार भारत २,२०० मीटर लंबे रनवे का निर्माण करेगा। इस रनवे पर ‘ए-३२०’ और ‘बोईंग-७३७’ विमान उतर सकेंगे। इसके अलावा इस हवाई अड्डे पर टर्मिनल्स, कार्गो टर्मिनल्स और फायर स्टेशन में बदलाव किए जाएंगे। इसी महीने के पहले सप्ताह में भारतीय सेना के गश्‍त विमान इस हवाई अड्डे पर उतरे थे।

airport-india-maldiveभारत ने मालदीव के सात अहम प्रकल्पों में निवेश किया है। इन प्रकल्पों के लिए भारत ने मालदीव को ८० करोड़ डॉलर्स आर्थिक सहायता के तौर पर प्रदान किए हैं। इन प्रकल्पों के तहत मालदीव के ३४ द्विपों का विकास, बंदरगाहों का विकास, मत्स्यपालन, क्रिकेट स्टेडियम का भी निर्माण किया जा रहा है। इसके अलावा, भारत ने ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट के लिए १० करोड़ डॉलर्स की सहायता प्रदान की है। चीन के कर्ज़ के शिकंजे से मुक्त होने की कोशिश कर रहे मालदीव में भारत विकसित कर रहे इन प्रकल्पों की अहमियत बढ़ी है।

भारत ने हाल ही में मालदीव को २५ करोड़ डॉलर्स की आर्थिक सहायता प्रदान की थी। चीन के कर्ज के जाल में मालदीव फंसा हुआ है। मालदीव पर चीन के कर्ज का भार बढ़ रहा है। समय पर ध्यान नहीं दिया तो मालदीव की स्थिति भी श्रीलंका जैसी होगी, यह ड़र व्यक्त किया जा रहा है। इसी वजह से मौजूदा स्थिति में मालदीव की सभी उम्मीदें भारत पर टिकी हुई हैं। ऐसे में इस हवाई अड्डे का विकास करने के लिए मालदीव ने भारत से बिनती की है। इससे दोनों देशों के संबंध मज़बूत होंगे और साथ ही इसके कारण हिंद महासागर क्षेत्र में भारत का प्रभाव भी बढ़ेगा। यह विस्तारवादी नीति अपनानेवाले चीन के लिए बड़ा झटका है।

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