तैवान की पनडुब्बी निर्माण परियोजना के लिए भारत का प्रस्ताव

नई दिल्ली/तैपेई: चीन के खतरे को पहचानकर तैवान सामरिक दृष्टिकोण से अधिक मजबूत बनाने की कोशिश कर रहा है और हाल ही में तैवानने आठ डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों के निर्माण का उप्रकम शुरू करने का निर्णय लिया था। इसके लिए भारत ने तैवान की सहायता की है, ऐसी खबर है। तैवान की मीडिया ने किए दावे के अनुसार तैवान को पनडुब्बियों का निर्माण करके देने के लिए अमरिका और दो यूरोपीय कंपनियों के साथ साथ भारत और जापान की कंपनियों ने भी उत्सुकता दिखाई है।

हिंदी महासागर में भारत के प्राकृतिक प्रभाव क्षेत्र में चीन की नौसेना आक्रामक गतिविधियाँ कर रहा है। इस वजह से चीन के साथ विवाद वाले साउथ चाइना सी और ईस्ट चाइना सी क्षेत्र के देशों के साथ भारत का बढ़ता सामरिक सहकार्य महत्वपूर्ण है। तैवान के मुद्दे को लेकर अमरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ रहा है, ऐसे में भारत ने भी तैवान को पनडुब्बी निर्माण करके देने की तैयारी दर्शाने की वजह से, चीन को झटका लगा है।

तैवान, पनडुब्बी निर्माण परियोजना, भारत, प्रस्ताव, खतरे को पहचानकर, नई दिल्ली, तैपेई, चीनचीन की तरफ से सिर्फ तैवान को ही खतरा नहीं है, बल्कि पूरे विश्व के प्रजातंत्र को खतरा है, ऐसी चेतावनी भी कुछ दिनों पहले तैवान के राष्ट्राध्यक्ष ने दी थी। संपूर्ण तैवान अपना अविभाज्य हिस्सा है, ऐसा चीन का दावा है। किसी भी समय चीन अपने लष्करी सामर्थ्य का इस्तेमाल करके तैवान को अपने कब्जे में कर सकता है, इस तरह की धमकियां चीन दे रहा है। उसी समय चीन का सामना करने के लिए तैवान अपनी रक्षा सज्जता बढ़ा रहा है। अमरिका ने तैवान को लड़ाकू विमान, हेलिकॉप्टर्स, विध्वंसक की आपूर्ति करने की घोषणा की थी। अमरिका के साथ इस सामरिक सहकार्य को बढाते समय तैवान अपनी नौसेना भविष्य में आने वाली किसी भी आपत्ति के लिए सज्जता कर रहा है।

तैवान की चार पनडुब्बियां कालबाह्य हो गई हैं। पिछले कुछ वर्षों से तैवान नई पनडुब्बियां खरीदने की कोशिश करा रहा है। लेकिन चीन के आक्रामक विरोध की वजह से कोई भी सामने नहीं आया। लेकिन अब तैवान ने दो अरब डॉलर्स खर्च करके देश के अन्दर ही आठ डीजल इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों का निर्माण करने का निर्णय लिया है। इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों की तरफ से प्रस्ताव मंगाए गए थे।

तैवान के मीडिया के दावे के अनुसार छः कंपनियों ने इसमें दिलचस्पी दिखाई है और प्रस्ताव सादर किया है। इसमें अमरिका के साथ साथ जर्मन, स्पेन, जापान और भारतीय कंपनियों का भी समावेश है। अप्रैल महीने में अमरिका ने तैवान को पनडुब्बियां निर्माण करके देने की तयारी दर्शाई थी। लेकिन अमरिका ने १९५० से पारंपरिक पनडुब्बियों का निर्माण नहीं किया है। साथ ही पिछले ४० सालों में जर्मन और स्पेन कंपनियों को भी इस तरह की पनडुब्बियों के निर्माण का अनुभव नहीं है। इस वजह से जापान और भारतीय कंपनियों का प्रस्ताव तैवान के लिए अधिक व्यवहार्य साबित हो सकते हैं।

भारत को फ़्रांस के सहकार्य से देश के अन्दर स्कोर्पियन क्लास की श्रेणी के पनडुब्बी निर्माण का अनुभव मिला है। साथ ही ८० के दशक में जर्मनी के सहकार्य से माझगाव गोदी में २०९ श्रेणी की पनडुब्बियों का निर्माण भारत ने किया था। इस वजह से भारत और जापान की इस परियोजना पर दावेदारी मजूबत है, ऐसा कहा जा रहा है। साथ ही भारत और जापान के प्रस्तावों के पीछे अमरिका का हाथ होने का दावा विश्लेषक कर रहे हैं।

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