गलवान के संघर्ष से भारत ने चीन को दिया ‘संदेश’

– भारत के पूर्व राजदूत गौतम बंबावले

नई दिल्ली – चीन महाशक्ति है, इस बात का चुपचाप स्वीकार करके भारत हमेशा चीन के डर के साये में रहें, यह कोशिश चीन ने की। लेकिन, चीन की ऐसीं कोशिशों को भारत कुछ ख़ास महत्त्व नहीं देता, यही बात लद्दाख की घटना ने दिखाई हैं। इस एक घटना से भारतीय सेना ने चिनी सेना को काफ़ी बड़ा संदेशा दिया है, यह बयान चीन में भारत के राजदूत रहें गौतम बंबावले ने किया है। एक वृत्तसंस्था से की हुई बातचीत के दौरान बंबावले ने, भारत और चीन के बीच जारी सीमा विवाद के मुद्दे पर अपने विचार स्पष्टतापूर्वक रखे।

Galwan struggleभारत और चीन की संस्कृति में होनेवाले फ़र्क़ पर बंबावले ने इस इंटरव्यू के ज़रिये ग़ौर फ़रमाया। दोनों देशों की संस्कृति प्राचीन काल की है। लेकिन, भारतीय संस्कृति ‘वसुधैव कुटुंबकम्‌’ यानी संपूर्ण विश्‍व अपना परिवार होने पर विश्‍वास रखती है। वहीं, चिनी संस्कृति ‘चुंग वो’ यानी चीन ही पूरे विश्‍व का केंद्र है ऐसा मानकर, अन्य क्षेत्रों को दुय्यम स्थान प्रदान करती है। अन्य लोगों को कनिष्ठ समझनेवाली यह सांस्कृतिक धरोहर ही चीन की आक्रामकता का प्रमुख आधार होने का दावा राजदूत गौतम बंबावले ने किया।

लद्दाख में हुई चीन की सेना तैनाती एक रात में नहीं हुई है। यह एक पूर्वनियोजित साज़िश थी। अप्रैल महीने के शुरू में चीन की सेना ने अपनी सीमा में बड़े युद्धाभ्यास का आयोजन किया था। यह युद्धाभ्यास शुरू था, तभी चीन ने यकायक पूरी सेना लद्दाख की सीमा की ओर मोड़ दी, यह कहकर बंबावले ने चीन की इन हरकतों पर ध्यान आकर्षित किया। लद्दाख की सेना तैनाती और गलवान वैली की साज़िश चीन ने पहले ही रची थी। गलवान वैली में हमला करके चीन को अपनी साज़िश और रणनीतिक, ऐसे दोनों स्तरों पर कुछ बातें हासिल करनी थीं, यह आरोप भारत के पूर्व राजदूत ने किया।

बड़े पैमाने पर सेना तैनात करके यहाँ की सीमा रेखा स्वयं ही तय करने की चीन की साज़िश थी। लेकिन, भारतीय सेना ने चीन की इस साज़िश को नाक़ाम कर दिया और चीन की सेना को काफ़ी बड़ा संदेश दिया। चीन महाशक्ती है, यह बात भारत चुपचाप स्वीकार करें, इसी लिए चीन ने लष्करी दबाव बनाने की साज़िश की थी। लेकिन, हम चीन की परवाह नहीं करते, यही बात गलवान वैली में हुए संघर्ष के ज़रिये भारत ने दिखाई है। ऐसा करके भारत ने चीन को अपनी शर्तों पर चर्चा करने के लिए मज़बूर किया और चीन की साज़िश भी नाकाम की, ऐसा बयान बंबावले ने किया है।

गलवान वैली में हुए संघर्ष में चीन के निश्चित रूप में कितने सैनिक मारे गए हैं, इस मुद्दे पर काफ़ी चर्चा हो सकती है। लेकिन यहाँ पर मारे गए चिनी सैनिकों की संख्या से भी अधिक अहम बात यह साबित होती है कि पिछले चार दशकों में पहली ही बार चीन को प्रत्यक्ष संघर्ष के दौरान इतनी बड़ी जीवितहानि उठानी पड़ी है। इसके ज़रिये भारत की सेना ने चीन की सेना को दिया हुआ संदेश इसी कारण सबसे महत्त्वपूर्ण साबित होता है, यह कहकर बंबावले ये संकेत दिए हैं कि आनेवाले समय में चीन भारत को मानकर नहीं चल सकेगा।

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