हॉंगकॉंग और जासूसी के मामले से जर्मनी-चीन के बीच तनाव में बढोतरी

तृतीय महायुद्ध, परमाणु सज्ज, रशिया, ब्रिटन, प्रत्युत्तरबर्लीन/बीजिंग – चीन की सरकारी वृत्तसंस्था ‘झिन्हुआ’ के तीन पत्रकारों ने लष्करी अड्डे पर जासूसी करने के मामले की जांच करने का आदेश जर्मन यंत्रणाओं ने दिया हैं| पिछले सप्ताह में जर्मन चॅन्सेलर अँजेला मर्केल ने लष्करी अड्डे को दिए भेंट के दौरान चीनी पत्रकारों ने जासूसी का प्रयत्न करने का बताया जाता हैं| इस बात पर दोनों देशों में पिछले कुछ दिनों से निर्माण हुआ तनाव अधिक ही बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं| कुछ दिनों पहले हॉंगकॉंग के दो प्रदर्शनकारियों को जर्मनी ने ‘शरणार्थियों’ का दर्जा देने के बाद चीन ने नाराजगी व्यक्त की थीं|

चौथे क्रमांक का व्यापारी भागीदार होने वाले जर्मनी के साथ बने संबंध चीन की हुकूमत के लिए व्यापारी और विदेश नीति का अहम हिस्सा माना जाता हैं| यूरोप में पैर जमाने के लिए तथा प्रभाव बढ़ाने के लिए चीन ने लगातार जर्मनी के साथ सहयोग अच्छे रहेंगे इसका ध्यान रखा हैं| जर्मनी ने भी व्यापार के मुद्दे पर चीन को लगातार साथ देते हुए ‘हुवेई’ के मामले में अमरिका के विरोध में अपनाई भूमिका इसका प्रमुख उदाहरण माना जाता हैं| परंतु ऐसा होते हुए भी पिछले कुछ महीनों से जर्मनी में ‘चीन’ विरोधी स्वर आक्रामक होते दिखाई दे रहे है|

जनवरी महीने में जर्मनी के अर्थमंत्री ने चीन को दिए भेंट में दोनों देशों के बीच बने तनाव के संकेत मिले थे| उस समय जर्मन अर्थमंत्री ने चीन उनका वित्त और बीमा क्षेत्र विदेशी कंपनियों के लिए खुला नहीं करने पर नाराजगी व्यक्त की थीं| जर्मन कंपनियों को चीन में कर्ज मिलने में भी बाधा आने का दावा जर्मन सरकार से किया गया हैं| इसके साथ जर्मन कंपनियों के प्रमुख गट ने एक रिपोर्ट में जर्मन सरकार और यूरोपियन कमीशन ने चीन जैसे देशों के विरोध में आर्थिक स्तर पर कठोर कदम उठाने चाहिए, ऐसी अग्रह पूर्ण मांग की थीं|

मार्च महीने में यूरोपियन कमीशन ने चीन से यूरोपीय कंपनियों को कब्जे में लेने को शुरू की गतिविधियों को रोकने के लिए स्वतंत्र नीति का ऐलान किया हैं| इस के लिए पहल करने वाले देशों में फ्रान्स और इटली के साथ जर्मनी का भी समावेश था| इस धारणा का समर्थन करते हुए जर्मनी के कुछ नेता और अधिकारियों ने चीन के एकाधिकार तथा चीन का जर्मनी में संभावित हस्तक्षेप इन जैसे मुद्दों की ओर ध्यान आकर्षित किया था| ‘हुवेई’ के मामले में जर्मनी ने चीन को समर्थन देने पर भी जर्मनी के आंतरिक सर्कल में इस मुद्दे पर मतभेद होने का समाचार माध्यमों से उजागर हुआ हैं|

इस पृष्ठभूमि पर हॉंगकॉंग में प्रदर्शनकारियों और उनके साथ-साथ जासूसी की बात सामने आना ध्यान आकर्षित करने वाला साबित होता हैं| जर्मन सरकार ने ‘रे वॉंग’ और ‘लन ली’ इन प्रदर्शनकारियों को शरणार्थियों का दर्जा दिया हैं| यह दोनों भी हॉंगकॉंग की स्वतंत्रता की मांग करने वाले राजनीतिक गट के सदस्य हैं| इसलिए उन्हें जर्मनी ने पनाह देनेसे चीन नाराज हुआ हैं| चीन ने जर्मनी के वरिष्ठ अधिकारियों ने समन भेजकर निषेध दर्ज करते हुए जर्मनी अपनी भूल सुधारे, ऐसा सूचित किया हैं|

यह मामला शुरू होते हुए ही जर्मनी ने चीन के तीन पत्रकारों की पूछताछ करने के संकेत दिए हैं| जर्मन चॅन्सेलर अँजेला मर्केल ने पिछले सप्ताह में जर्मनी के नाटो के लष्करी अड्डे को भेंट दी थीं| उस समय पत्रकारों के पथक का हिस्सा होने वाले तीन चीनी पत्रकारों ने अड्डे पर हत्यार व यंत्रणाओं की तस्वीरें निकाली साथ ही सैनिकों को अतिरिक्त प्रश्न पूछने का दावा किया गया हैं| यह पत्रकार चीन की सरकारी वृत्तसंस्था के रूप में पहचाने जाने वाले ‘झिन्हुआ’ का भाग होने के कारण मामला और भी पेचीदा होने की संभावना व्यक्त की जा रही हैं|

केवल २४ घंटों में एक के पीछे एक सामने आ चुकी इन घटनाओं से दोनों देशों के बीच के बने संबंध बिगड़ने के संकेत मिलने लगे हैं| ्इससे पहले आर्थिक संबंधित चीन के विरोध में होने वाली नाराजगी को नई घटनाओं से बढ़ावा मिलेगा और जर्मन सरकार को चीन से नजदीकी कायम रखने के प्रयत्न छोड़ने पड़ेंगे, ऐसा दावा कुछ विशेषज्ञ ने किया हैं|

अमरिका के विरोध में शुरू व्यापार युद्ध में यूरोपीय देशों के सहयोग की अहमियत रखनेवाले चीन के लिए जर्मनी का साथ गवाना बर्दाश्त नहीं हो पाएगा| इस कारण आने वाले समय में जर्मन सरकार क्या भूमिका लेगी यह महत्वपूर्ण साबित होने वाला हैं| यूरोपिय महासंघ में भी जर्मनी की भूमिका निर्णायक होने के कारण जर्मनी के साथ तनाव बढ़ने पर उसके परिणाम चीन और यूरोपीय महासंघ के संबंधों पर भी होने की संभावना है|

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