चीन को झटका- भारत की आपत्ति के बाद श्रीलंका की ओर से ‘हंबंटोटा अनुबंध’ में सुधार

कोलम्बो: भारत की आपत्ति और चिंता को ध्यान में रखते हुए, श्रीलंका ने हंबंटोटा बंदरगाह के विकास के लिए चीन के साथ किए गए अनुबंध में सुधार किया है| इस सुधारित अनुबंध के अनुसार बंदरगाह का विकास करने वाली चीनी कंपनी को दिए गए अनगिनत अधिकारों पर मर्यादा डाली गई है, इस वजह से चीन इस बंदरगाह का उपयोग नौदल अड्डे की तरह कर सकता है, यह भारत की चिंता दूर हो गई है| इसी कारण यह सुधारित अनुबंध चीन के लिए एक बड़े झटके जैसा है|

 अनुबंध में सुधार

श्रीलंका के भूतपूर्व राष्ट्राध्यक्ष महिंदा राजपक्षे ने उनके कार्यकाल में श्रीलंका के दक्षिण क्षेत्र का हंबंटोटा बंदरगाह विकसित करने के लिए अनुबंध किया था| लेकिन १.५ अरब डॉलर्स के इस अनुबंध की प्रावधानों की वजह से भारत की चिंता बढ़ गई थी| इस बंदरगाह का विकास करने के लिए चीन को अनगिनत अधिकार प्राप्त हुए थे| चीनी कंपनी १५ हजार एकड़ जमीन व्यापार क्षेत्र विकसित करने के लिए अधिग्रहित करने वाली थी| इस बंदरगाह का विकास मतलब चीन की ‘सिल्क रूट’ योजना का एक हिस्सा है| लेकिन इस आड़ में चीन हंबंटोटा बंदरगाह का इस्तेमाल नौदल अड्डे की तरह कर सकता है, ऐसी चिंता भारत ने व्यक्त की थी| २०१४ में चीन की ओर से विकसित किए जा रहे कोलोंबो बंदरगाह में चीन की दो पनडुब्बियों ने लंगर डाला था, इसी वजह से भारत की चिंता उचित है, यह सिद्ध होता है|

विशेष बात यह है कि भारत के साथ साथ वहां के स्थानीय नागरिकों ने भी, हंबंटोटा बंदरगाह में चीनी कंपनी को दिए गए अनगिनत अधिकारों पर आपत्ति जताना शुरू किया, श्रीलंका में इस प्रकल्प के खिलाफ जुलुस निकाले गए, आन्दोलन भी हुआ| इतने बड़े पैमाने पर जमीन का अधिकार चीन को देना मतलब सार्वभौमत्व को धक्का लगने जैसा है, ऐसी टीका श्रीलंका में ही हो रही थी| राजपक्षे के बाद सत्ता में आए मैत्रीपाला सरकार ने भारत के लिए अनुकूल नीति स्वीकारी है, फिर भी चीन के महंगे कर्ज के तले दबे श्रीलंकाई सरकार हंबंटोटा बंदरगाह के मुद्दे पर कठोर निर्णय लेना टाल रही थी|

लेकिन पिछले कुछ समय में चीन ने इस बंदरगाह के लिये किया हुआ निवेश और उसे प्राप्त अनगिनत अधिकार को लेकर श्रीलंका में असंतोष बढ़ गया है| इसी दौरान भारत की ओर से दबाव बढ़ रहा था| आखिर इस अनुबंध में सुधार करने का निर्णय श्रीलंका की सरकार ने ले ही लिया है| इस सुधारित अनुबंध को मंगलवार को मंजूरी दी गई|

इस सुधारित अनुबंध का तपशील अभी तक सार्वजनिक नही किया गया है, फिर भी भारत ने जताई चिंता को ध्यान में रखते हुए अनुबंध में परिवर्तन किए जाने की खबर है| इसके अनुसार दो कम्पनियाँ स्थापन की गई हैं| ‘हंबंटोटा इंटरनेशनल पोर्ट ग्रुप’ इस कंपनी में चीन की मर्चंट पोर्ट कंपनी के ८५% अधिकार होंगे| शेष अधिकार श्रीलंका के प्राधिकरण के पास रहेंगे| यही कंपनी बंदरगाह के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित करेगी| साथ ही पुरे प्रकल्प की सुरक्षा और देखभाल की जिम्मेदारी श्रीलंका के पास ही रहेगी|

दो महीने पहले भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी श्रीलंका के दौरे पर गए थे| उसके पहले श्रीलंकन बंदरगाह में चीन की पनडुब्बी को लंगर डालने की अनुमति न देकर, चीन के प्रति नीति में परिवर्तन होने के श्रीलंकाई सरकार ने संकेत दीये थे| उसके बाद अब हंबंटोटा अनुबंध में भी परिवर्तन करके श्रीलंका ने चीन को और एक झटका दिया है|

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