६२. सौद घराने का अरेबिया में राज्य स्थापित (१९२० के दशक के घटनाक्रम)

इसवीसन १९२० के दशक में मध्यपूर्व में घटित हुए एक और महत्त्वपूर्ण घटना यानी अरेबिया के विभिन्न प्रान्तों ने एकसाथ आकर, अखंड़ित सौदी अरेबिया का निर्माण होने की दिशा में हुई उनकी मार्गक्रमणा।

इस प्रदेश की गतिविधियों के अधिकांश अभ्यासक सौदी अरेबिया का निर्माण होने की प्रक्रिया की शुरुआत इसवीसन १८वीं सदी में ही हुई ऐसा मानते हैं। इसवीसन १७४४ में अरेबिया के ‘नेज्द’ प्रदेश के शासक मुहम्मद बिन सौद ने तत्कालीन धार्मिक नेता मुहम्मद इब्न अब्द अल्-वहाब (इन्हें इस्लाम में होनेवाली ‘सुन्नी’ परंपरा की ‘वहाबी’ विचारधारा के जनक माना जाता है) के साथ युति कर इस सौदी राज्य का आरंभ किया। रियाध के नज़दीक के ‘दिरियाह’ इला़के से इस राज्य की शुरुआत हुई। (इसे ‘पहला सौदी राज्य’ माना जाता है।)

उस ज़माने में अरेबिया प्रान्त में कई छोटी-मोटी जनजातियाँ, छोटे-मोटे राज्य, अमिरातें अस्तित्व में थीं। उन सबपर जीत हासिल कर, उन्हें अपने राज्य में मुहम्मद बिन सौद ने शामिल कर लिया। आज के सौदी अरेबिया का अधिकांश प्रान्त उनके अधिकार में आया था। उसके बाद उसका बेटा अब्दुल्ला बिन मुहम्मद राजगद्दी पर बैठ गया। लेकिन आगे चलकर इसवीसन १८१८ में तत्कालीन ऑटोमन सुलतान ने इजिप्त के गवर्नर के नेतृत्व में सेना भेजकर इस सौदी राज्य को अपने साम्राज्य में जोड़ दिया। इस तरह ‘पहले सौदी राज्य’ की समाप्ति हो चुकी थी।

लेकिन इसवीसन १८१८ से १८२४ इस कालावधि में अथक संघर्ष कर अब्दुल्ला के बेटे – तुर्की बिन अब्दुल्ला बिन मुहम्मद ने नेज्द में पुनः सौद घराने का राज्य स्थापन किया। (‘दूसरा सौदी राज्य’). कुछ समय बाद उसने अपनी राजधानी को रियाध में स्थानान्तरित किया।

यह दूसरा सौदी राज्य हालाँकि स्थापन तो हुआ, लेकिन वह व्याप्ति से पहले सौदी राज्य जितना बड़ा नहीं था; साथ ही, अरेबिया प्रान्त के दूसरे एक ‘हायिल’ प्रान्त (हाल के सौदी अरेबिया के उत्तरी भाग का एक प्रान्त) के शासक रशिदी के साथ सौदवंशियों का लगातार संघर्ष जारी रहा। लेकिन इस दौर में निर्णायक विजय किसी को भी प्राप्त नहीं हो इसी दौरान हालाँकि तुर्की बिन अब्दुल्ला का पोता अब्दुलरेहमान राजगद्दी पर बैठा था, तुर्की बिन अब्दुल्ला के अन्य पोतों में सत्तासंघर्ष शुरू हो चुका था, जिससे इस दूसरे सौदी राज्य की नींव धीरे धीरे कमज़ोर होती जा रही थी।

आज के आधुनिक सौदी अरेबिया के जनक ‘इब्न सौद’

इस कारणवश आगे चलकर इसवीसन १८९१ में सौदवंशियों को परास्त करने में रशिदी घराने को क़ामयाबी मिली। ‘दूसरे सौदी राज्य’ की समाप्ति हो चुकी थी। सौद घराने ने तत्कालीन ब्रिटीश-नियंत्रित कुवेत में पनाह ली।

लेकिन कुवेत में आश्रय ले चुका सौद घराना चुपचाप नहीं बैठा था और अपनी इस हार का बदला चुकाने का मौक़ा ही ढूँढ़ रहा था। दूसरे सौदी राज्य का आख़िरी शासक अब्दुल रेहमान के बेटे अब्दुल अझिझ इब्न अब्दुलरेहमान इब्न फैजल इब्न तुर्की इब्न अब्दुल्ला इब्न मुहम्मद अल सौद (ये आगे चलकर ‘इब्न सौद’ नाम से ही मशहूर हुए) ने इसवीसन १९०२ में दूसरे सौद राज्य की राजधानी रियाध पर कब्ज़ा कर लिया। वहाँ से आगे कई वर्षों तक अथक संघर्ष कर सौद ने रशिदियों के ‘हायिल’ प्रांत के साथ साथ, अरेबिया के अन्य विभिन्न छोटे-बड़े राज्य, अमिरातें इन्हें अपने राज्य में जोड़ दिया।

सन १९२५ तक अधिकांश अरेबिया प्रांत सौद के नियंत्रण में आ चुका था। लेकिन मक्का के शरीफ हुसेन इब्न अली ने ब्रिटिशों के समर्थन पर अपने आपको जिस हेजाज़ प्रान्त का सुलतान घोषित किया था, केवल उस हेजाज़ प्रान्त को सौद ने, ब्रिटिशों के साथ ठेंठ संघर्ष टालने के लिए हाथ नहीं लगाया था। लेकिन आगे चलकर हुसेन ब्रिटिशों की मर्ज़ी से उतरा होने के संकेत मिलने पर अल सौद ने हेजाज़ पर आक्रमण कर उस प्रान्त को भी अपने राज्य में जोड़ लिया। हुसेन ने सहायता के लिए ब्रिटिशों से किया आवाहन, ‘यह तुम्हारा धार्मिक मसला होकर, हम तुम्हारे धार्मिक मसलों में दख़लअन्दाज़ी नहीं करेंगे’ ऐसा कारण देकर ब्रिटिशों ने ठुकरा दिया।

आज का आधुनिक सौदी अरेबिया

अब सौद का राज्य ‘हेजाज और नेज्द का साम्राज्य’ (‘किंगडम ऑफ हेजाज अँड नेज्द’) के नाम से जाना जाने लगा। आगे चलकर इसवीसन १९३२ तक सौद ने संपूर्ण अरेबिया प्रान्त को अपने एकछत्री नियन्त्रण में लाया था। सन १९३२ में सौद ने ‘सौदी अरेबिया’ देश अस्तित्व में आया होने की घोषणा की और खुद को उसका ‘सम्राट’ घोषित कर दिया। (तीसरा सौदी राज्य)

इस प्रकार तुर्की एवं ट्रान्सजॉर्डन की तरह ही, भविष्य में मध्यपूर्व के राजनीति में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान होनेवाले सौदी अरेबिया का जन्म हो चुका था।

इसवीसन १९२० के दशक में मध्यपूर्व में इन घटनाक्रमों के चलते, ब्रिटीश मँडेटरी पॅलेस्टाईन में विभिन्न घटनाएँ घटित हो ही रहीं थीं।

इस्रायली संसद ‘क्नेसेट इस्रायल’ की पूर्ववर्ती संस्था ‘लेजिस्लेटिव्ह काऊन्सिल’ (विधिमंडल) अस्तित्व में आयी थी। इसमें १२ चुने हुए, १० नियुक्त किये हुए और हाय कमिशनर ऐसे कुल मिलाकर २३ सदस्य होनेवाले थे। लेकिन १२ चुने हुए सदस्यों में से ज्यूधर्मियों के हिस्से में केवल २ सीटें दी गयीं थीं, बाक़ी की सीटें अरबों को दी गयीं थीं। इसमें महिलाएँ भी बतौर सदस्य और बतौर मतदाता सहभागी हो सकनेवालीं थीं।

ज्यूधर्मियों के संदर्भ में होनेवाले धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा, स्वास्थ्य, समाजकल्याण, नागरीसुरक्षा, रक्षा आदि सभी मसलों की ज़िम्मेदारी इस काऊन्सिल को सौंपी गयी थी। इसवीसन १९२७ से इस काऊन्सिल को ज्यूधर्मियों से टॅक्सेस संपादन करने की अनुमति भी दी गयी। आगे चलकर इस्रायल के स्वतंत्र होने के बाद इस्रायल की संसद अस्तित्व में आने तक यह विधिमंडल कार्यरत था।

जेरुसलेम स्थित हिब्रू युनिवर्सिटीचा शुभारंभ

‘हिब्रू’ भाषा को व्यवहार की अधिकृत भाषा क़रार दी गयी। ‘हिब्रू’ भाषा में प्रिंटिंग प्रेस शुरू किया गया। साथ ही, इसवीसन १९१८ मेें निर्माणकार्य शुरू हो चुकी ‘हिब्रू युनिव्हर्सिटी’ भी सन १९२५ में कार्यरत हुई थी।

इसी कालखंड में इस्रायलस्थित अनुपजाऊ ज़मिनियों को ऊपजाऊ बनाने के प्रयोग भी किये गये।

इसी कालखंड में इस्रायल कीं, खेती के लिए निरुपयोगी मानीं जानेवालीं अनुपजाऊ ज़मिनियों पर प्रयोग कर उन्हें ऊपजाऊ बनाने के प्रयास शुरू हो चुके थे। इस दशक में रुटेनबर्ग के प्रयासों से इस्रायल में बिजलीनिर्माण केन्द्र शुरू हो ही चुके थे, अब उत्पादनप्रक्रिया बिजली पर चलनेवाले विभिन्न उत्पादों के कारखाने शुरू किये गये। बुनियादी ढाँचे का निर्माण होने लगा।

इस विकास के चलते ‘ब्रिटीश मँडेटरी पॅलेस्टाईन’ में ज्यूधर्मीय और अरबों के बीच की दूरी बढ़ती ही चली जा रही थी। अरबों का ज्यूधर्मियों के प्रति होनेवाला विद्वेष दिनबदिन बढ़ता ही चला जा रहा था। इस आग में तेल डालने के लिए स्थानिक अरब नेता डटकर आगे आ रहे थे।

इसके परिणामस्वरूप इसवीसन १९२९ में जेरुसलेम में पुनः एक बार अरब-ज्यू दंगें शुरू हुए।(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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