‘स्युडो सैटेलाइट’ और ‘स्कायबोर्ग’ की धर्ती पर लड़ाकू ड्रोन विकसित करने के लिए ‘हल’ की कोशिश – ‘हल’ के वरिष्ठ अधिकारी की जानकारी

hal-satellite-droneनई दिल्ली – ‘हिंदुस्थान एरोनॉटिक्स लिमिटेड’ (हल) ‘स्युडो सैटेलाईट’ विकसित करने का काम कर रही हैं। पृथ्वी के वायुमंडल में सबसे उपरी स्तर पर काम करनेवाला उपग्रह ‘ऐटमोस्फेरिक सैटेलाईट’ को ‘हाय अल्टिट्यूड एअरक्राफ्ट’ के तौर पर भी जाना जाता हैं। आकाश में ७० हज़ार फीट उंचाई पर दो से तीन महीनें उड़ान भरकर यह उपग्रह जानकारी प्राप्त कर सकता हैं। विश्‍व के किसी भी देश ने अबतक इस तरह के उपग्रह विकसित नही किए हैं, यह दावा ‘हल’ के संचालक (इंजिनिअरिंग, आर ॲण्ड डी) अरुप चैटर्जी ने किया हैं। साथ ही ‘हल’ ने अमरीका के ‘स्कायबोर्ग’ की धर्ती पर लड़ाकू ‘ड्रोन’ विकसित करना शुरू किया हैं और शत्रु देश में घुंसकर बड़ा हमला करने की क्षमता यह ‘ड्रोन’ रखेगा, ऐसा बयान चैटर्जी ने किया हैं। बंगलुरू में हो रहें ‘एरो इंडिया – २०२१’ में इस लड़ाकू ‘ड्रोन’ का मोड़ल पेश किया गया हैं।

‘हल’ अब विश्‍व के अबतक के सबसे अनोखे उपग्रह का विकास कर रही हैं। भविष्य में यह उपग्रह आकाश में बड़ी उंचाई पर मंड़रा सकेगा। इसके लिए एक स्टार्टअप कंपनी पर ‘हल’ काम कर रही हैं, यह जानकारी चैटर्जी ने साझा की। ‘कम्बाईन एअर टीमिंग सिस्टिम’ (सीएटीएस-कैटस्‌) कार्यक्रम के तहत ‘हल’ इस उपग्रह का विकास कर रही हैं। आकाश में ७० हज़ार फीट उंचाई पर दो से तीन महीनों तक यह उपग्रह अहम जानकारी प्रदान करने का काम करेगा, ऐसा चैटर्जी ने कहा हैं। साथ ही ५० हज़ार फीट उंचाई पर चौबीस घंटे उड़ान भरने की क्षमता के उपग्रह यंत्रणा का निर्माण भी ‘कैटस्‌’ कार्यक्रम के तहत किया जा रहा हैं।

hal-satellite-droneयह भविष्य की तकनीक होगी और हल ने पेश की हुई इस कल्पना का भारतीय वायुसेना ने समर्थन किया है, यह बात ‘कैटस्‌’ कार्यक्रम के प्रकल्प व्यवस्थापक शशिकांत दुंधे ने कही हैं। इसी कार्यक्रम के तहत ‘हल’ ने प्रगत लड़ाकू ड्रोन का विकास करना शुरू किया हैं। यह ड्रोन लड़ाकू विमानों के साथ उड़ान भरेगा। यह लड़ाकू विमान का इस्तेमाल इस ‘ड्रोन’ के लिए बतौर ‘मदर शिप’ होगा। इस मदर शिप से चार ड्रोन बाहर छोड़े जाएंगे और यह ड्रोन्स स्वतंत्र रूप से काम करेंगे। इस ‘ड्रोन व्हेईकल’ का नाम ‘कैटस्‌ वॉरिअर्स’ रहेगा।

यह लड़ाकू ड्रोन शत्रु की हवाई सुरक्षा यंत्रणा और राड़ार को चकमा देकर ७०० किलोमीटर अंदर पहुँचकर हमला करने की क्षमता रखेंगे। लड़ाकू विमान अपने देश की हवाई सीमा में रहकर आकाश में इन ड्रोन को प्रक्षेपित कर सकेंगे और आगे यह ड्रोन्स शत्रु के प्रदेश में प्रवेश करके हमलें करके वापिस लौट सकेंगे, ऐसा चैटर्जी ने कहा। इन ‘ड्रोन्स’ के लिए भारतीय वायुसेना के बेड़े में मौजूद ‘तेजस’, ‘जैग्वार’ या अन्य लड़ाकू विमानों का ‘मदरशिप’ के तौर पर इस्तेमाल करना संभव होने की बात चैटर्जी ने कही।

इसके अलावा इसी तरह के ड्रोन से छोड़ना संभव हो ऐसें मात्र ५ किलो भार के स्वार्म ड्रोन का निर्माण भी किया जा रहा हैं। यह ड्रोन भी शत्रु प्रदेश में हमलें कर सकेंगे और इन ड्रोन का नियंत्रण मदरशिप से किया जाएगा, यह जानकारी चैटर्जी ने प्रदान की।

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