तुर्की का प्रभाव रोकने के लिए फ्रान्स द्वारा ‘आर्मेनिया-अज़रबैजान’ के शांति समझौते पर अमल करने के लिए आन्तर्राष्ट्रीय तैनाती की माँग

पैरिस – रशिया की मध्यस्थता से पिछले सप्ताह में आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच हुए शांति समझौते में रशियन शांतिसैनिकों की तैनाती करने की बात तय हुई थी। लेकिन, अब तुर्की भी अपने सैनिकों की तैनाती करने के लिए गतिविधियाँ कर रहा है और इसके खिलाफ फ्रान्स ने आक्रामक भूमिका अपनाई है। इससे पहले आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच हुए संघर्ष के दौरान मध्यस्थता करनेवाला ‘मिन्स्क ग्रुप’, इस शांति समझौते पर अमल करने के लिए शामिल हों, यह माँग फ्रान्स के राष्ट्राध्यक्ष इमैन्युएल मैक्रॉन ने बड़ी आग्रहता के साथ रखी है।

शांति समझौते

सितंबर महीने के अन्त में ‘नागोर्नो-कैराबख’ प्रांत के मुद्दे पर आर्मेनिया और अज़रबैजान के युद्ध भड़क गया था। लगातार ४० दिनों बाद यह युद्ध अभी बंद हुआ है और इसके लिए रशिया के राष्ट्राध्यक्ष व्लादिमीर पुतिन की मध्यस्थता बड़ी अहम साबित हुई थी। रशिया की पहल से किए गए शांति समझौते में, अज़रबैजान ने युद्ध में जीता हुआ क्षेत्र उसी के कब्जे में रहने दिया गया था। साथ ही ‘नागोर्नो-कैराबख’ और आर्मेनिया को जोड़नेवाले क्षेत्र में रशिया की शांतिसेना तैनात रहेगी, यह नमूद किया गया था।

अज़रबैजान को दिये गए क्षेत्र में इस देश की सेना और सुरक्षा यंत्रणा तैनात रहेगी। लेकिन, इस क्षेत्र में अपनी सेना तैनात करने के लिए कोशिशें करने में तुर्की जुटा होने की जानकारी सामने आयी है। तुर्की की संसद में इससे संबंधित एक विधेयक पारित होने का समाचार है। इसके लिए तुर्की अब रशिया से बातचीत करने में व्यस्त होने के दावे भी किए गए हैं। ‘नागोर्नो-कैराबख’ में तुर्की की संभावित तैनाती फ्रान्स के लिए चिंता का कारण बनी है और इसी में से आन्तर्राष्ट्रीय दल की तैनाती की माँग आगे आयी है, ऐसा समझा जा रहा है।

शांति समझौते

फ्रान्स के राष्ट्राध्यक्ष मैक्रॉन ने युद्ध के दौरान ‘नागोर्नो-कैराबख’ से बाहर निकल रहें शरणार्थियों का मुद्दा उपस्थित किया है। इन शरणार्थियों का दोबारा वापस लौटना एवं उनकी सुरक्षा, ये दोनों मुद्दें अहम होने का बयान मैक्रॉन ने किया है। इस वजह से शांति समझौते पर अमल करते समय, यह कार्रवाई उचित तरीके से पूरी करने के लिए ‘मिन्स्क ग्रुप’ का समावेश अहम साबित होगा, इन शब्दों में फ्रेंच राष्ट्राध्यक्ष ने, आन्तर्राष्ट्रीय दल द्वारा नियंत्रण की माँग रखी है। ‘मिन्स्क ग्रुप’ में रशिया समेत अमरीका और फ्रान्स का समावेश है। इस गुट को तुर्की ने जोरदार विरोध जताया है और इसकी आलोचना भी की थी। यह बात ध्यान में रखकर फ्रेंच राष्ट्राध्यक्ष ने, शांति समझौते पर अमल करने के लिए मिन्स्क ग्रुप को शामिल करने का प्रस्ताव रखा हुआ दिखाई दे रहा है।

बीते कुछ वर्षों में फ्रान्स ने तुर्की की आक्रामक नीति का लगातार विरोध किया है और आवश्‍यकता महसूस होने पर कार्रवाई करने की भूमिका भी अपनाई है। सीरिया, लीबिया, युरोप के शरणार्थी, भूमध्य समुद्र में बना तनाव एवं आतंकवाद इन मुद्दों पर दोनों देशों के बीच लगातार संघर्ष हो रहा है और उनके बीच बना तनाव चरम स्तर पर जा पहुँचा है, ऐसा माना जा रहा है।

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