‘काली राष्ट्रीय उद्यान’ में रहस्यमय आगों का सिलसिला जारी – सीसीटीव्ही बिठाने की माँग

Mysore_ravages_Bandipur

कर्नाटक के उत्तर कनडा ज़िले के ‘काली राष्ट्रीय उद्यान’ में गत कई महीनों से जंगलों में लगनेवालीं आगों का रहस्य बढ़ता ही चला जा रहा है। पिछले हफ़्ते भी ‘काली राष्ट्रीय उद्यान’ में आग की एक और घटना दर्ज़ की गयी। ‘काली राष्ट्रीय उद्यान’ यह बाघों के लिए संरक्षित जंगल है। इस संरक्षित क्षेत्र में होनेवालीं आग की घटनाओं के कारण अब तक कई छोटे जानवरों की मृत्यु हुई है; साथ ही, सैंकड़ों एकर क्षेत्र का जंगल भी नष्ट हो चुका है।

कलगी, गुंद और फनसोली इलाक़ों में गत कुछ महीनों में आग की कई घटनाएँ दर्ज़ की गयी हैं। साथ ही, सुलागीर, कांद्र तथा उलावी इलाक़ों में भी आग की घटनाएँ दर्ज़ की गयी हैं। पिछले वर्ष भी इस इलाक़े में आग की इसी प्रकार की घटनाएँ घटित हुई थीं। इस पूरे परिसर में ३३ से ४० बाघ हैं, ऐसा बताया जाता है। इतनी बड़ी संख्या में एकत्रित रूप में बाघ रहनेवाला यह दुनिया का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस कारण, यहाँ के वनक्षेत्र में लगनेवालीं इन आगों को लेकर चिंता ज़ाहिर की जा रही है। वनक्षेत्र में लगनेवालीं इन आगों का रहस्य अभी तक प्रशासन से नहीं सुलझा है। गरमी के दिनों में आग लगने की घटनाएँ आम तौर पर घटित होते रहने के कारण, वन विभाग द्वारा हर साल, रास्ते से सटी हुईं जगहों को खुला कर दिया जाता है। लेकिन इतने एहतियात बरतने के बावजूद भी आगें लग रही हैं। जंगल में सैर करने आये लोगों द्वारा बरती गयी लापरवाही और इस मामले में जनजागृति का अभाव ये संभव कारण बताये जा रहे हैं। बाघों के लिए आरक्षित रहनेवाले क्षेत्र में आगें लगने के कारण सुरक्षा की दृष्टि से आवश्यक रहनेवाले उपायों पर शीघ्रतापूर्वक अमल किया जा रहा है।

‘काली राष्ट्रीय उद्यान’, ‘दांडेली वन्यजीव अभयारण्य’, ‘आंशी राष्ट्रीय उद्यान’ इन्हें ‘व्याघ्र संरक्षित क्षेत्र’ के रूप में घोषित किया गया है। इन स्थानों में रहनेवाले पेड़-झुरमुट एवं प्राणि इनकी सुरक्षा के लिए प्रयास किये जायेँ, ऐसी माँग वन्यजीव कार्यकर्ता कर रहे हैं। साथ ही, ये लगनेवालीं आगें मानवनिर्मित होने का आरोप भी वन्यप्रेमी कर रहे हैं।

देशभर में बाघों की घटती हुई संख्या चिंता का विषय बन चुकी थी। उसके बाद बाघों की संख्या में बढ़ोतरी करने हेतु ‘संरक्षित क्षेत्रों’ का निर्माण किया गया। लेकिन इन संरक्षित क्षेत्रों में भी मानवीय उपद्रव शुरू ही है। गरमी के मौसम में वनक्षेत्र को आग लगने की घटनाएँ दुनियाभर में घटित होती हैं। लेकिन काली वनक्षेत्र में गत कुछ महीनों में घटित हुई घटनाएँ संदिग्ध मानी जा रही हैं।

इसी दौरान कर्नाटक के ही ‘नागरहोल टायगर रिझर्व्ह’ में बाघों की सुरक्षा की दृष्टि से ४०० कॅमरें बिठाये गये हैं। इससे ‘नागरहोल व्याघ्र संरक्षण क्षेत्र’ यह, पूरी तरह कॅमरे की निगरानी में रहनेवाला देश का पहला संरक्षित वनक्षेत्र बन गया है। आनेवाले समय में  कर्नाटक के ‘बिंदनापुर व्याघ्र संरक्षित क्षेत्र’ तथा ‘काली राष्ट्रीय उद्यान’ इनमें भी इसी प्रकार कॅमरे बिठाने की योजना है। उससे जंगलक्षेत्र में होनेवालीं संदिग्ध गतिविधियों को रोका जा सकता है और जंगलक्षेत्र में यदि जानबूझकर ऐसीं आगें लगायी जा रही होंगी, तो उसपर भी नियंत्रण पाया जा सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.