दिमाग से संदेश स्वीकारनेवाले ‘माईंड रिडिंग रिस्टबैंड’ तैयार करनेवाली ‘कंट्रोल लैब्स’ स्टार्टपर पर फेसबुक ने किया कब्जा

तृतीय महायुद्ध, परमाणु सज्ज, रशिया, ब्रिटन, प्रत्युत्तरकैलिफोर्निया – मनुष्य के दिमाग से हाथ तक पहुंचाए जा रहे संदेश पकडकर अगला काम करनेवाला ‘माईंड रिडिंग रिस्टबैंड’ का निर्माण करनेवाले स्टार्टअप पर ‘फेसबुक’ ने कब्जा किया है| ‘कंट्रोल लैब्ज’ ऐसा इस स्टार्टअप का नाम है और यह व्यवहार करीबन १ अरब डॉलर्स का होगा, यह दावा अमरिकी माध्यमों ने किया| इस स्टार्टअप के जरिए से फेसबुक इसके आगे ‘वर्च्युअल रिएलिटी’ और ‘ब्रेन कम्प्युटर इंटरफेस’ क्षेत्र में अपना प्रभाव बढाने की कोशिश करेगी, यह दावा विशेषज्ञ कर रहे है|

फेसबुक ने कुछ वर्ष पहले आईटी क्षेत्र की प्रगत तकनीक हासिल करके इसी पर निर्भर क्षेत्रपर हुकूमत करने के उद्देश्य से ‘रिएलिटी लैब्ज’ इस उपक्रम का गठन किया था| लेकिन, इसे खास सफलता प्राप्त नही हुई| इस वजह से तकनीकी क्षेत्र की ‘स्टार्टअप्स’ कंपनी के साथ जुडकर इसके जरिए वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश फेसबुक ने शुरू की है| इसी के जरिए फेसबुक ने तीन महीनों पहले ‘लिब्रा’ इस क्रिप्टोकरन्सी का भी ऐलान किया था|

फिलहाल वैद्यकिय एवं तकनीकी क्षेत्र की कई कंपनियां एवं अलग अलग देशों के लष्करी विभाग ‘ब्रेन कम्प्युटर इंटरफेस’ (बीसीआई) पर काम कर रहे है| विख्यात उद्योजक एलॉन मस्क का ‘न्यूरालिंक’ यह उपक्रम एवं अमरिकी सेना के ‘डिफेन्स एडव्हान्स रिसर्च प्रोजेक्टस् एजन्सी’ (डार्पा) ने शुरू किए प्रोजेक्ट खास चर्चा में है| इस पृष्ठभूमि पर फेसबुक ने इस क्षेत्र में काम कर रही प्रमुख ‘स्टार्टअप’ पर कब्जा करके अपने इरादे स्पष्ट किए है|

‘कंट्रोल लैब्ज’ यह थॉमस रिअर्डन और पैट्रिक कैफोस इन दोनों ‘न्यूरोसायंटिस्ट’ ने चार वर्ष पहले एक होकर इस स्टार्टअप का निर्माण किया था| इस स्टार्टअप ने ‘आर्मबँड’ की तरह दिखनेवाली एक यंत्रणा का निर्माण किया है| यह यंत्रणा मनुष्य के दिमाग से स्नायू पर नियंत्रण रखनेवाली तरंगे पकड सकती है, ऐसा ‘कंट्रोल लैब्ज’ के वैज्ञानिकों का दावा है| इस बैंड की तकनीक के जोर पर किसी भी की बोर्ड का इस्तेमाल किए बिना सिर्फ सामने की सतह पर उंगलियां हिलाकर कम्प्युटर, टैब एवं स्मार्टफोन को चलाना मुमकिन होगा, ऐसा ‘कंट्रोल लैब्ज’ से दी गई जानकारी में स्पष्ट हुआ है|

‘कंट्रोल लैब्ज’ ने निर्माण किया ‘माईंड रिडिंग रिस्टबैंड’ यंत्रणा के साथ संपर्क करने का नया मार्ग विकसित करने के लिए सहायकारी साबित हो सकता है, ऐसा ‘फेसबुक’ के वरिष्ठ अधिकारी एंड्य्रू बॉसवर्थ ने कहा है| ‘यह तकनीक कई नए अवसरों का निर्माण हो सकती है| १९ वी सदी में किए गए खोज की २१ वी सदी में नए से रचना करना मुमकिन होगा’, यह दावा भी बोसवर्थ ने किया|

इससे पहले वर्ष २०१७ में फेसबुक ने मन में उठनेवालें विचार पकडकर संदेश टाईप करना मुमकिन होगा एवं त्वचा के जरिए शब्दों को सुनना मुमकिन होगा, ऐसे खयाल रखनेवाले अनुसंधान के उपक्रम शुरू किए थे|

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