अफगानिस्तान की तेज़ गतिविधियों की पृष्ठभूमि पर भारत के विदेश मंत्री रशिया के दौरे पर जायेंगे

नई दिल्ली – भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर जल्द ही रशिया के दौरे पर जानेवाले हैं। भारत और रशिया के बीच वार्षिक द्विपक्षीय चर्चा की तैयारी, यह विदेश मंत्री के रशिया दौरे के पीछे का प्रमुख कारण बताया जाता है। लेकिन अफगानिस्तान में गतिविधियाँ बहुत ही तेज़ हुईं हैं, ऐसे में भारत के विदेश मंत्री का यह रशिया दौरा गौरतलब साबित होता है। अमरीका की सेना वापसी के बाद अफगानिस्तान की परिस्थिति पर विदेश मंत्री जयशंकर रशिया के साथ चर्चा करेंगे, ऐसी गहरी संभावना जताई जाती है।

तालिबान ने अफगानी लष्कर के विरोध में जोरदार सफलता पाई होकर, जल्द ही तालिबान अफगानिस्तान में सत्ता हासिल करेगा, ऐसी संभावना जताई जाती है। इसकी दखल दुनिया भर के प्रमुख देशों ने ली होकर, रशिया अफगानिस्तान की इन गतिविधियों की ओर बहुत ही सावधानी से देख रहा है। अमरीका की सेना वापसी की सार्वजनिक चर्चा होने से बहुत ही पहले रशिया ने, अफगानिस्तान में होनेवाले अपने हितसंबंधों के लिए पाकिस्तान से सहयोग शुरू किया था। यह सहयोग आनेवाले दिनों में अधिक से अधिक बढ़ता जाएगा और रशिया के राष्ट्राध्यक्ष व्लादिमिर पुतिन पाकिस्तान का दौरा करेंगे, ऐसा दावा पाकिस्तान के माध्यम कर रहे थे। लेकिन राष्ट्राध्यक्ष पुतिन पाकिस्तान का दौरा नहीं करेंगे, ऐसा खुलासा पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने किया है।

राष्ट्राध्यक्ष पुतिन कि पाकिस्तान दौरे की संभावना हालाँकि खारिज हुई है, फिर भी अफगानिस्तान के मुद्दे पर रशिया पाकिस्तान से सहयोग कर रहा है, यह बात भारत का ध्यान आकर्षित कर रही है। कुछ विश्लेषक तो, अफगानिस्तान में भारत और रशिया के हितसंबंध परस्पर विरोधी होने की बात बता कर, अफगानिस्तान की भूमि पर भारत और रशिया के हितसंबंधों में टकराव होगा, ऐसे दावे कर रहे हैं। लेकिन अफगानिस्तान की भूमि का इस्तेमाल अपने विरोध में ना हों, यह भारत और रशिया की प्रमुख चिंता है। इस बारे में तालिबान कौन सी भूमिका अपनाता है, इस पर बहुत कुछ निर्भर होगा।

इस पृष्ठभूमि पर, विदेश मंत्री जयशंकर के रशिया दौरे में अफगानिस्तान की गतिविधियों का मुद्दा केंद्र स्थान में हो सकता है। विदेश मंत्री के दौरे के बारे में बोलते समय सूत्रों ने न्यूज़ एजेंसियों को यह जानकारी दी। अफगानिस्तान में तालिबान को मिल रही सफलता और तालिबान कर रहा हिंसाचार यह भारत के लिए बहुत बड़ी चिंता की बात साबित होती है। किसी समय सोव्हिएत रशिया के विरोध में लड़नेवाले तालिबान की ओर, वर्तमान रशिया भी सावधानी से देख रहा है। आनेवाले समय में तालिबान रशिया के विरोध में जाने की संभावना नकारी नहीं जा सकती। लेकिन फिलहाल तालिबान यह संकेत दे रहा है कि वह रशिया के और भारत के भी विरोध में नहीं है।

तालिबान का कट्टर विरोधी गुट माने जानेवाले नॉर्दन अलायन्स पर रशिया का बहुत बड़ा प्रभाव है। अफगानिस्तान का लष्कर तालिबान के सामने परास्त होने के बाद, तालिबान का सामना करने की क्षमता इस नॉर्दन अलायन्स के पास ही होगी, ऐसा सामरिक विश्लेषक बता रहे हैं। लेकिन तालिबान ने अगर सामोपचार की भूमिका अपनाई, तो यह संघर्ष टल सकता है और रशिया उसी के लिए गतिविधियाँ कर रहा होने की बात सामने आ रही है। इसी के साथ, पाकिस्तान और चीन इन देशों से सहायता लेकर अफगानिस्तान को स्थिर करने की कोशिशें भी रशिया द्वारा जारी हैं, ऐसे भी दावे कुछ लोगों द्वारा किए जा रहे हैं। लेकिन पाकिस्तान और चीन का अगर अफगानिस्तान में प्रभाव बढ़ा, तो वह भारत की सुरक्षा को चुनौती देनेवाली बात साबित हो सकती है। इस कारण अफगानिस्तान के मुद्दे पर भारत की रशिया के साथ चर्चा और सहयोग, बहुत ही अहम साबित होते हैं।

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