लद्दाख में सिंधु समेत सहायक नदियों की आठ जलविद्युत परियोजनाओं को मंजूरी

नई दिल्ली – वर्ष २०१९ में जम्मू-कश्‍मीर से अलग करके नया केंद्रीय प्रदेश बनाए गए लद्दाख में विकास परियोजनाएं गतिमान की गई हैं। साथ ही कुछ नई परियोजनाएं भी वहां पर शुरू की जा रही हैं। इसी बीच लद्दाख में अब आठ नई जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण किया जा रहा है। यह सभी परियोजनाएं सिंधु और उसकी सहायक नदियों पर निर्माण की जाएंगी। जलशक्ति मंत्रालय और सिंधु आयोग ने इन परियोजनाओं को मंजूरी दी है।

लद्दाख में बुनियादी सुविधाओं का तेज़ गति से विकास किया जा रहा है। साथ ही वहां पर मौजूद जलसंपत्ति का इस्तेमाल करके बीजली परियोजना शुरू करने की योजना भी सरकार ने तैयार की है। फिलहाल लद्दाख में छोटे छोटे कई जलविद्युत प्रकल्प हैं। इनके ज़रिये ११३ मेगावॉट बीजली प्राप्त होती है। लेकिन, अब निर्माण हो रहे प्रकल्प मध्यम आकार के होंगे। इनसे कुल ११४ मेगावॉट बीजली प्राप्त होगी, यह जानकारी जलशक्ती मंत्रालय ने प्रदान की है।

जलशक्ती मंत्रालय और सिंधु आयोग ने मंजूर किए सभी प्रकल्प सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों पर स्थापित होंगे। इनमें से पांच प्रकल्पों का निर्माण लेह में होगा और तीन प्रकल्प कारगिल में होंगे, यह जानकारी जलशक्ती मंत्रालय ने प्रदान की है। इसके अनुसार लेह में दुर्बूक श्‍योक, शंकू, निमू चिलिंग, रोंगड़ो, रतन नाग दरी क्षेत्र में १९ मेगावॉट, १८.५ मेगावॉट, २४ मेगावॉट, १२ मेगावॉट और १०.५ मेगावॉट क्षमता के प्रकल्पों का निर्माण होगा। साथ ही कारगिल के मेगडुंम सागर में १९ मेगावॉट, हुंड़रमैन में २५ मेगावॉट और तमाशा में १२ मेगावॉट की परियोजनाएं स्थापित होंगी।

इन परियोजनाओं के लिए आवश्‍यक अन्य अनुमतियां अभी प्राप्त होनी हैं। यह मंजूरियां प्राप्त होने पर इन परियोजनाओं का निर्माणकार्य शुरू होगा। जलशक्ती मंत्रालय ने पाकिस्तान के साथ किए सिंधु जल बटवारा समझौते के अनुसार इन जलविद्युत परियोजनाओं का प्लैन तैयार किया है और इस समझौते के अनुसार संबंधित प्लैन्स की जानकारी पाकिस्तान से साझा की जाएगी, यह बयान जलशक्ती मंत्रालय के अधिकारी ने किया है।

लद्दाख की सीमा चीन के साथ ही पीओके से भी जुड़ी है। इस वजह से लद्दाख में निर्माण होनेवाले बुनियादी सुविधाओं के प्रकल्प बड़ी अहमियत रखते हैं। वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता से वर्ष १९६० में भारत और पाकिस्तान के बीच समझौता हुआ था। सिंधु नदी हिमालय से शुरू होकर कश्‍मीर से पाकिस्तान में प्रवेश करती है। इस नदी के पानी पर पाकिस्तान की खेती निर्भर है। भारत सिंधु जल बटवारा समझौते के नियमों के दायरे में रहकर भारत के हिस्से के पानी का पूरी तरह से इस्तेमाल करके नदियों पर बाँध और जलविद्युत प्रकल्पों का निर्माण कर रहा है। पाकिस्तान इन परियोजनाओं पर आपत्ति जता रहा है, फिर भी यह आपत्ति अंतरराष्ट्रीय विवाद में कभी भी खड़ी नहीं हो सकी है। भारत को अपने हिस्से के पूरे पानी का इस्तेमाल करने का अधिकार है, यही निर्णय पहले भी अंतरराष्ट्रीय लवाद ने दिया था।

भारत ने पाकिस्तान का पानी रोका तो पाकिस्तान में हाहाकार मचेगी। पाकिस्तानी की खेती व्यवस्था तहस नहस होगी और पाकिस्तान रैगिस्तान में तब्दील हो जाएगा, यह ड़र पाकिस्तान को लगातार सता रहा है। उरी और उसके बाद पुलवामा में पाकिस्तान ने भारतीय सैनिकों को लक्ष्य करने के लिए किए आतंकी हमलों के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने रक्त और पानी एक साथ बह नहीं सकते, ऐसी सख्त चेतावनी पाकिस्तान को दी थी। इसके बाद पाकिस्तान को महसूस हो रहा ड़र अधिक बढ़ा है।

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कुछ महीने पहले ही भारत के हिस्से का पानी एक बूंद भी पाकिस्तान में नहीं जाएगी। इसके लिए भारत ने पाकिस्तान जानेवाली नदियों पर बांध और सिंचाई परियोजनाओं का काम शुरू करने की मंशा व्यक्त की थी। इस पृष्ठभूमि पर लद्दाख में सिंधु और उसकी सहायक नदियों पर निर्माण हो रही इन परियोजनाओं की अहमियत बनती है।

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