१००. इस्रायली शिक्षापद्धति

स्वतंत्र होते समय अविकसित माना जानेवाला अपने अथक परिश्रमों से विकसित कैसे बना, यह देखते हुए हमने अब तक, इस्रायल ने – डेव्हलपमेंट टाऊन्स, रेगिस्तान में ख़ेती, जलव्यवस्थापन, पानी के वैकल्पिक स्रोत, मत्स्यख़ेती आदि क्षेत्रों में की हुई प्रगति देखी| लेकिन ये सारीं इस्रायल के लिए, अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए आवश्यक ऐसीं मूलभूत बातें थीं| लेकिन आज के ज़माने में किसी भी देश की ‘विकसितता’ नापते समय प्रायः मूल्यमापन किया जाता है, वह वहॉं की शिक्षापद्धति, कला, क्रीडा, संस्कृति, विज्ञान, तंत्रज्ञान, अर्थव्यवस्था, लष्करी सामर्थ्य आदि बातों का!

उपरोक्त बातों में जूझकर सफलता प्राप्त करते हुए इस्रायल ने इन बातों की ओर दुर्लक्ष नहीं किया था; क्योंकि ये पहले बतायीं बातें, बतौर एक ‘देश’ अपना अस्तित्व बनाये रखने हेतु इस्रायल के लिए आवश्यक थीं; वहीं, ये आगे की बातें, बतौर एक ‘समाज’ विकास करने के लिए आवश्यक थीं| इस कारण, इस्रायल के बारे में बात करते समय इन बातों का भी विचार करना अनिवार्य ही होता है| सबसे पहले हम इस्रायली शिक्षापद्धति के बारे में जान लेते हैं|

सर्वप्रथम हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि इस्रायल यह ‘ज्यू-राष्ट्र’ है| ज़ाहिर है, इस राष्ट्र की हर एक कृति यह ज्यूधर्मियों के कल्याण के लिए, विकास के लिए होती आ रही है और शिक्षापद्धति भी इसके लिए अपवाद (एक्सेप्शन) नहीं है| व्यवहारिक दुनिया में उपयोगी साबित होनेवाली शिक्षा अर्जित करते हुए भी, आनेवाली हर नयी पीढ़ी के मन पर ज्यू-संस्कृति अंकित हों, ज्यूधर्मियों को प्रदीर्घ एवं गौरवशाली इतिहास उनकी समझ में आकर वे ज्यू-संस्कृति से प्रेम करने लगें, उसपर गर्व करने लगें इस प्रकार से ही यहॉं की शिक्षापद्धति की संरचना की गयी है|

लेकिन यह हुई आज की बात| लेकिन जब इस्रायल स्वतंत्र हुआ, तब इस्रायल के सामने, ऊपरोक्त क्षेत्रों की तरह ही इस क्षेत्र में भी बहुत बड़ी चुनौती खड़ी थी| क्योंकि पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस्रायल में ही टिककर जमे रहे जो ज्यूधर्मीय थे, उनकी संख्या तुलनात्मक दृष्टि से बहुत की कम प्रतीत हों इतनी बड़ी मात्रा में दुनियाभर से ज्यूधर्मीय स्थलांतरित होकर इस दौर में इस्रायल में लौटने लगे थे|

कर्मठ धार्मिक ज्यू विचारधारा के नेताओं ने चलायीं स्कूलों में ज्यू धर्मशास्त्रग्रंथ ‘टोराह’ के गहरे अध्ययन पर ज़ोर दिया जाता था|

जैसा कि हमने पहले ही देखा है, ये ज्यूधर्मीय स्थलांतरित कई पीढ़ियों से दुनियाभर के किसी न किसी प्रदेश में वास्तव्य कर रहे थे| वहॉं वे हालॉंकि मूल ज्यूधर्मतत्त्वों का पालन करते थे, उनमें से कइयों में, वे जिन प्रदेशों से आये थे वहॉं की संस्कृति, रीतिरिवाज़ भी घुलमिल गये थे| नयी पीढ़ी के कइयों को तो हिब्रू भाषा की भनक तक नहीं थी|

ऐसे लगभग ७० से भी अधिक देशों से आये लाखों ज्यूधर्मियों को उनकी भिन्न-भिन्न सांस्कृतिक पार्श्‍वभूमियों से एक ही सॉंचे में ढलाकर ‘इस्रायली’ बनाना, यही वह बड़ी चुनौती थी, जो इस्रायल उठायी; वह भी इतनी कम अवधि में|

इस्रायल स्वतन्त्र होने से पहले भी ब्रिटीश मँडेट पॅलेस्टाईन प्रांत में स्कूलें को थीं ही| लेकिन उनमें से अधिकांश स्कूलें ये पारंपरिक ज्यू, झायोनिस्ट ज्यू, मध्यममार्गीय ज्यू, समाजवादी ज्यू, कर्मठ धार्मिक ज्यू ऐसी किसी न किसी विचारधारा का प्रतिपादन करनेवाले ज्यू नेताओं ने/गुटों ने चलायी थीं और इसलिए ये स्कूलें उस उस विचारधारा का पुरस्कार अपने अपने पाठ्यक्रम के ज़रिये करती थीं| उदा. कर्मठ धार्मिक ज्यू विचारधारा के नेताओं ने चलायीं स्कूलों में ज्यू धर्मशास्त्रग्रंथ ‘टोराह’ के गहरे अध्ययन पर ज़ोर दिया जाता था और ऐसी स्कूलों में उसी विचारधारा के लोग अपने बच्चें भेजते थे|

लेकिन इस्रायल आज़ाद होने के बाद शिक्षणपद्धति में काफ़ी हद तक एकवाक्यता लायी गयी है| फिर भी उपरोक्त विचारधाराओं की प्रबलता होनेवालीं स्कूलें हैं ही| शिक्षा का माध्यम ‘हिब्रू’ रखा गया होकर, सभी स्कूलों में ‘हिब्रू भाषा’ यह विषय रखा गया है| बहुत ही कम स्कूलें अँग्रेज़ी या अरबी भाषा में शिक्षा प्रदान करती हैं| अरबी माध्यम की स्कूलों में अरब परिवारों के बच्चें; वहीं, अँग्रेज़ी माध्यम की स्कूलों में, इस्रायल में नियुक्त हुए बाहरी देशों के राजनैतिक अधिकारियों के बच्चें पढ़ते हैं|

स्कूली शिक्षा के, प्राथमिक (१ली से ६ठीं), माध्यमिक (७वीं से ९वीं) और हायस्कूल (१०वीं से १२वीं) ऐसे पड़ाव किये गये हैं| १२वीं तक की शिक्षा अनुदानित होकर, वह भी बच्चों के लिए बंधनकारक है| लेकिन संपूर्ण शालेय जीवन में परीक्षा केवल एक ही बार, १२वीं पास होते समय ली जाती है| शिक्षा बंधनकारक होने के कारण इस्रायल में अशिक्षित ज्यूधर्मियों का प्रमाण अत्यल्प है|

तेल अवीव्ह युनिव्हर्सिटी का कँपस

ज्यूधर्मियों का इतिहास ज्ञात न होनेवाले, साथ ही, हिब्रू भाषा न समझनेवाले स्थलांतरित ज्यू बच्चों के लिए और स्थलांतरितों में होनेवाले अध्यापकों के लिए भी इसके लिए स्पेशल शॉर्ट-टर्म कोर्सेस स्कूलों द्वारा आयोजित किये जाते हैं| वैसे ही, अध्यापकों को उनके विषय में होनेवाले उनके ज्ञान को अद्यतन करते रहने के लिए संसाधनों की आपूर्ति की जाते है और प्रोत्साहन भी दिया जाता है|

इस्रायली अर्थव्यवस्था यह अधिक से अधिक विज्ञान-तंत्रज्ञानविषयक उद्योगों पर आधारित बनती चली जा रही होने के कारण, ऐसी अर्थव्यवस्था में यदि टिके रहना है, तो अच्छी शिक्षा अर्जित करना आवश्यक है, यह अधिकांश इस्रायली लोगों के गले उतरी हुई बात है और वे मौक़ा पड़ने पर अधिक से अधिक पैसे बचाते हुए अपने बच्चों को अधिक से अधिक उच्च शिक्षा प्रदान करने के प्रयास करते हैं| फिलहाल इस्रायल में आठ सरकारी बड़ीं युनिव्हर्सिटीज् है, जो मुख्य रूप से तेल अवीव्ह, जेरुसलेम, नागेव्ह में स्थित हैं| उनके साथ कुछ निजी युनिव्हर्सिटीज् और विदेशी युनिव्हर्सिटीज् भी हैं|

शालेय पारंपरिक शिक्षा में विशेष रुचि न होनेवाले छात्रों के लिए कम से कम आवश्यक स्कूली शिक्षा के पश्‍चात् मेकॅनिक, इलेक्ट्रिशियन, हेअरस्टायलिस्ट इन जैसे व्यवसायाभिमुख कोर्सेस में प्रशिक्षण लेने की भी सुविधा है| उसीके साथ इस्रायली शिक्षा मंत्रालय के द्वारा कई सालों तक ‘एज्युकेशनल टीव्ही’ भी चलाया जाता था, जिसपर से स्कूली बच्चों के लिए स्कूली पाठ्यक्रम पर आधारित कार्यक्रम तो प्रसारित किये जाते ही थे; साथ ही, प्रौढों के लिए और व्यवसायिकों के लिए भी विभिन्न क्षेत्रों के ज्ञान पर आधारित डॉक्युमेंटरीज़् प्रसारित की जाती थीं|

शालेय पारंपरिक शिक्षा में कुछ ख़ास दिलचस्पी न होनेवाले छात्रों के लिए कम से कम आवश्यक शालेय शिक्षा के बाद व्यवसायाभिमुख शिक्षा लेने की भी सुविधा है|

उसीके साथ सबसे अहम बात यानी १२वीं के पश्‍चात् कॉलेज जाने से पहले, हर एक ज्यूधर्मीय छात्र को ‘आयडीएफ’ (इस्रायल डिफेन्स फोर्सेस) में अर्थात् इस्रायली सेना में ३ साल (लड़कियों के लिए २ साल) तक सेवा करना और लष्करी प्रशिक्षण लेना बंधनकारक है| यह लष्करी सेवा और प्रशिक्षण लिये हुए बच्चों को कॉलेज के प्रथमवर्ष की ट्यूशन-फी में भरपूर मात्रा में (९०% तक) छूट दी जाती है|

इस्रायल में ‘बोर्डिंग स्कूल्स’ भी हैं और यह इस्रायली शिक्षापद्धति की एक ख़ास बात है| अधिकांश देशों में ‘बोर्डिंग स्कूल्स’ में प्रायः रइसों के बच्चें पढ़ते हैं| लेकिन इस्रायल में इसके विरुद्ध बात है| यहॉं के ‘बोर्डिंग स्कूल्स’ उल्टे आर्थिकदृष्टि से दुर्बल छात्रों के लिए हैं और उनका खर्चा इस्रायली सरकार उठाती है|

इस प्रकार, बच्चों पर सामाजिक संस्कार कर उन्हें अच्छे नागरिक बनाना, उनमें तंत्रज्ञानविषयक विभिन्न कुशलताओं का निर्माण करना और ज्यू परंपरा का, अर्थात् ज्यू-राष्ट्र पर उनके मन में गर्व बढ़ानेवाला ज्ञान बच्चों को देना यह इस्रायली शिक्षापद्धति के लक्ष्य हैं|

इस्रायल की ‘बोर्डिंग स्कूल्स’ में आर्थिकदृष्टि से दुर्बल छात्र पढ़ते हैं और उनका खर्चा इस्रायली सरकार उठाती है|

अपने नागरिकों के लिए और देश के विकास के लिए होनेवाले शिक्षा के महत्त्व को जानकर इस्रायल, शिक्षा क्षेत्र में अपने सकल वार्षिक आय (जीडीपी) के लगभग ७.३ प्रतिशत से भी अधिक रक़म खर्च करती है, जो प्रमाण दुनिया के कई राष्ट्रों से ज़्यादा है| इसीलिए आज आर्थिक क्षेत्र में हो रहे इस्रायल के तेज़ प्रवास में इस्रायल की शिक्षापद्धति का अहम हिस्सा है, यह भूलकर नहीं चलेगा|(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

 

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