चीन के दबाव से युरोपीय महासंघ ने ‘कोरोनावायरस रिपोर्ट’ में किया बदलाव

ब्रुसेल्स/बीजिंग – कोरोनावायरस को लेकर चीन ‘ग्लोबल डिसइन्फॉर्मेशन कॅम्पेन’ यानी झूठा प्रचार कर रहा होने की रिपोर्ट युरोपीय महासंघ ने तैयार की थी। लेकिन चीन द्वारा डाले गये दबाव के कारण युरोपीय महासंघ को उसे बदलना पड़ा है। हाँगकाँगस्थित ‘साऊथ चायना मॉर्निंग पोस्ट’ इस अखबार ने यह दावा किया। चीन ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर रिपोर्ट में अनुकूल बदलाव कराये, ऐसा इस अख़बार ने अपनी ख़बर में कहा है।

युरोपीय महासंघ ने कुछ दिन पहले तैयार की रिपोर्ट में, चीन के साथ रशिया कोरोनावायरस के मुद्दे पर ‘ग्लोबल डिसइन्फॉर्मेशन कॅम्पेन’ चला रहा होने का उल्लेख किया था। चीन में संक्रमण की शुरुआत होने के बाद सत्ताधारी कम्युनिस्ट हुक़ूमत ने उसकी जानकारी प्रकाशित नहीं की थी। उस दौर की नाक़ामयाबी को ढँकने के लिए चीन ने ज़ोरदार दावे शुरू किये हैं। अमरिकी लष्कर से ही वायरस आया होने का प्रचार चीन के सरकारी माध्यम लगातार कर रहे हैं।

अपनी नाक़ामयाबी छिपाने के लिए चीन ने जागतिक स्वास्थ्य संगठन का भी इस्तेमाल किया होने की बात सामने आयी थी। इसको लेकर जागतिक स्वास्थ्य संगठन की भी आलोचना शुरू है। लेकिन चीन अपनी आर्थिक ताकत के बल पर प्रसारमाध्यम तथा सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर ‘ग्लोबल डिसइन्फॉर्मेशन कॅम्पेन’ चला रहा है।

महासंघ की रिपोर्ट में इसका उल्लेख है, ऐसी जानकारी मिलने पर चीन ने महासंघ के राजनैतिक अधिकारी को बुलाकर गंभीर परिणामों के बारे में चेतावनी दी। इसमें चीन द्वारा, युरोपीय देशों को की जानेवाली अत्यावश्यक वैद्यकीय निर्यात रोकने के भी संकेत दिये गए, ऐसा ‘साऊथ चायना मॉर्निंग पोस्ट’ ने अपनी ख़बर में कहा है।

फिलहाल युरोप कोरोनावायरस की महामारी का मुकाबला कर रहा है और ऐसे में चीन द्वारा इस निर्यात को रोका जाना, यह महासंघ के सदस्य देशों के लिए मुश्किलभरा साबित हो सकता है। इस कारण महासंघ ने चीन के दबाव के सामने झुककर रिपोर्ट में बदलाव करने का विकल्प अपनाया, ऐसा ‘साऊथ चायना मॉर्निंग पोस्ट’ ने अपनी ख़बर में कहा है। अमरीका का न्यूज़चॅनल ‘फॉक्स न्यूज’, ‘न्यूयॉर्क टाईम्स’ दैनिक तथा ‘पोलिटिको’ इस वेबसाईट ने भी इस संदर्भ में ख़बर दी होकर, कुछ युरोपीय अधिकारियों ने रिपोर्ट में बदलाव किया जाने पर नाराज़गी व्यक्त की होने का उल्लेख किया है।

चीन ने इससे पहले ‘५जी तंत्रज्ञान’, युरोपीय कंपनियों में किया हुआ निवेश, व्यापारी समझौते तथा मानवाधिकार इन मुद्दों को लेकर युरोपीय देशों पर लगातार दबाव डाला होने की घटनाएँ सामने आयीं हैं। ऐसे मामलों में युरोपीय महासंघ द्वारा अपनायी गयी अस्पष्ट भूमिका की अमरीका ने ज़ोरदार आलोचना की थी।

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