फोन और नोटों के किटाणुनाशन के लिए ‘डीआरडीओ’ ने किया ‘अल्ट्राव्हायोलेट सॅनिटायझेशन कैबिनेट’ का निर्माण

नई दिल्ली, (वृत्तसंस्था) – कोरोना वायरस से बचाव करने के लिए अलग अलग उपकरणों का निर्माण करने में ज़ुटी ‘डीआरडीओ’ ने मोबाईल फोन, लैपटॉप समेत नोटों का किटाणुनाशन करने के लिए ‘अल्ट्राव्हायोलेट सॅनिटायझेशन कैबिनेट’ का निर्माण किया है। इस उपकरण की वजह से, किसी भी प्रकार का संपर्क किए बिना किटाणुनाशन करना संभव होगा।

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की रिसर्च सेंटर इमारत (आरसीआय) प्रयोगशाला में ‘डिफेन्स रिसर्च अल्ट्राव्हायोलेट सॅनिटायझर’ (डीआरयूव्हीएस) का निर्माण किया गया है। ‘डीआरयूव्हीएस’ कैबिनेट मे मोबाईल फोन, लैपटॉप, आयपैड समेत अन्य सामान रखने पर इनपर सभी ओर से अल्ट्राव्हायोलेट किरण छोंड़े जाते हैं। जैसे ही किटाणुनाशन की प्रक्रिया पुरी होती है, यह सिस्टम अपनेआप बंद होती है। इस वजह से इस उपकरण का प्रयोग करने के लिए, किसी ऑपरेटर को इस उपकरण के साथ रुकने की ज़रूरत नहीं रहती। इसके अलावा पैसों के नोट, पासबुक, चेक, चलान का किटाणुनाशन करने के लिए ‘डीआरडीओ’ ने ‘नोटस्‌क्लिन’ यह उपकरण विकसित किया है। इस उपकरण के माध्यम से नोटों के पूरे बंडल का एक साथ किटाणुनाशन करना संभव होगा। कोरोना वायरस का संक्रमण ना हों, इसके लिए हाथ धोने की सलाह दी जा रही है या सॅनिटायझर का इस्तेमाल करने को कहा जा रहा है। लेकिन, मोबाईल और नोटस्‌ समेत अन्य सामान पर भी यह वायरस रह सकता है। इस वजह से, ऐसे सामान के किटाणुनाशन के लिए ये उपकरण अहम साबित होंगे, यह विश्‍वास व्यक्त किया जा रहा है।

कोरोना वायरस के विरोध में जंग कर रही ‘डीआरडीओ’ ने, पिछले कुछ दिनों में कई उपकरणों का निर्माण किया है। इससे पहले ‘डीआरडीओ’ ने ‘ऑटोमेटिक सॅनिटायझर’ और ‘अल्ट्राव्हायोलेट डिव्हाईस’ का निर्माण किया था। इससे घर की कुर्सियाँ, फाईल्स और फुड़ पैकेटस्‌ का किटाणुनाशन करना संभव हुआ है। इसके साथ ही, हॉटस्पॉट घोषित क्षेत्र में तेज गति से किटाणुनाशन करने के लिए ‘यूव्ही ब्लास्टर टॉवर’ का निर्माण भी ‘डीआरडीओ’ ने किया है। इसके अलावा जाँच किट, शरीर का किटाणुनाशन करने के लिए‘पर्सनल सॅनिटायझेशन एन्क्लोजर्स’ (पीएसई) मशीन जैसें उपकरण भी ‘डीआरडीओ’ ने तैयार किए हैं।

कोरोना पर असरदार टीका अभी प्राप्त नहीं हुआ है और इस वज़ह से इस विषाणु का संक्रमण ना हों, इसलिए ज़रूरी सावधानी बरतना यही इलाज़ साबित हो रहा है। इस दृष्टि से ‘डीआरडीओ’ का योगदान अहम भूमिका निभा रहा है।

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