डॉ. यश पाल

अवकाश संशोधन क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान देनेवाले वैज्ञानिक

विभिन्न प्रकार की चुनौतियाँ हमारे समक्ष समय-समय पर आ खड़ी होती हैं और उन्हीं चुनौतियों के अनुसार समाज बड़े-बड़े विद्वानों के, विचारकों के, वैज्ञानिकों के मतानुसार उन चुनौतियों का उत्तर ढूँढ़ने की कोशिशें करता रहता है। समाज प्रबोधन हेतु भी अनेक वैज्ञानिक आगे बढ़ते हुए दिखाई देते हैं। डॉ. यश पाल समाज में आसान तरीके से ज्ञान का प्रकाश फैलानेवाले वैज्ञानिक कों में से एक हैं।

बीस-पच्चीस वर्ष पूर्व दूरदर्शन यह केवल एकमात्र सरकारी प्रसारण क्षेत्र था। विज्ञान से संबंधित एक कारण इस धारावाहिक के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता था। उस वक्त आज के समान ‘सीधे प्रश्‍न’ पूछकर अथवा ‘फोन इन’ तकनीक की सुविधा न होने के कारण देश के किसी भी क्षेत्र से एक पोस्टकार्ड पर आनेवाले वैज्ञानिक प्रश्‍नों के उत्तर बड़े ही आसान तरीके से लोगों की (जिज्ञासुओं की) सन्तुष्टि करते हुए डॉ. यश पाल देते थे। प्रा. यश पाल के इस कार्य का उपयोग वैज्ञानिक दृष्टि निर्माण कर अंधश्रद्धा, गलत समझ निवारण के लिए काफ़ी अधिक पैमाने पर हुआ।

१९२६ में जन्मे डॉ. यश पाल पदार्थ विज्ञान के छात्र थे। केंब्रिज एम.आय.टी. नामक इस विदेशी उच्च शिक्षा देनेवाली संस्था में उन्होंने शिक्षा हासिल की। भारत सरकार के विविध विभागों के महत्त्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी उन्होंने संभाली। अंतरिक्ष यह उनके संशोधन का विशेष विषय था।

‘कॉस्मिक रेंज’ इस क्षेत्र में उनका संशोधन आंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है। ‘कॉस्मिक रेडिएशन’ जैसे उलझे हुए कठिन विषय का विवेचन, ‘एलिमेंटरी पार्टिकल फिजिक्स’ नामक इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में किया गया उनका संशोधन सामान्यों के लिए, साथ ही अध्ययनकर्ता एवं वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणादायी साबित हुआ है। ‘हाय एनर्जी फिजिक्स’ में ‘डॉ. यश पाल का सिद्धांत काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

डॉ. यश पाल ने भारत सरकार के नियोजन मंडल में मुख्य सलाहगार के रूप में कार्य किया। अहमदाबाद के अंतरिक्ष संशोधन केन्द्र के (इस्त्रो) संचालक के रूप में भी उन्होंने कुछ वर्षों तक काम किया। मुंबई के टाटा मूलभत संशोधन केन्द्र में प्राध्यापक के रूप में भी उन्होंने काम किया। भारतीय पदार्थ विज्ञान संगठन के सदस्य होने के साथ साथ अध्यक्ष पद का भार भी उन्होंने सँभाला। विद्यापीठीय अनुदान मंडल के वे कुछ समय तक अध्यक्ष थे। भारतीय विज्ञान परिषद के सदस्य पद पर होनेवाला चुनाव उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि प्राप्त करानेवाला साबित हुआ। संयुक्त राष्ट्रसंघ के अंतरिक्ष संशोधन कार्यक्रम के सचिव पद का भार भी उन्होंने ही सँभाला। भारतीय अंतरिक्ष अभ्यास मंडल गुणवान विज्ञान परिषद् एवं संस्थाओं में भी उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता की छाप छोड़ रखी है।

‘इस्त्रो’ नामक इस संस्था में परिवहन साधनों की निर्मिति एवं विकास इस क्षेत्र की भी उनके द्वारा की गई कारीगीरी काफी महत्त्वपूर्ण साबित हुई। १९७० के दशक में भारत के ग्रामीण इलाकों तक दूरदर्शन के कार्यक्रम पहुँचाने के महत्त्वपूर्ण कार्य की जिम्मेदारी भी उन्होंने निभायी।

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