डॉ. निकोल टेसला – जीवनविकास की शुरुआत

डॉ. निकोल टेसला की नजरों में विज्ञान एवं अध्यात्म ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू थे। नैसर्गिक तौर पर होनेवाली हर एक घटना परमेश्‍वर का ही आविष्कार होती है ऐसी उनकी धारणा थी। उनके इस अध्यात्मिक विचारधारा के प्रति उनके पारिवारिक पृष्ठभूमि का आधार था। इनका जन्म ही परमेश्‍वर पर अविचल श्रद्धा रखनेवाले कैथलिक परिवार में हुआ था। डॉ.निकोल टेसला के पिता मिल्युटिन टेसला ख्रिस्ती Dr. Nikola Teslaधर्मोपदेशक थे। तथा टेसला के नाना भी धर्मोपदेशक ही थे। डॉ.टेसला की माँ डुका टेसला एक सामान्य गृहिणी थी। उनकी शिक्षा योग्य प्रकार से नहीं हुई थी। परन्तु इस माँ ने सर्वप्रथम निकोल टेसला को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही सोचना सीखाया।

डुका टेसला का हर कार्य एक नये तरीके से करने का प्रभाव टेसला के जीवन पर पड़ा। उपाधिप्राप्त शिक्षा न कर पाने वाली माँ ने अंडे को मिक्स करनेवाला यंत्र – ‘एग बीटर’ बनाया था। इससे ही हम उनके ऊपर होनेवाले बाल्या अवस्था के संस्कार आदि की कल्पना कर सकते हैं। वे अपनी माँ से अत्याधिक प्रेम करते थे। उनके इस प्रकार के प्रयोगशीलता से टेसला को प्रेरणा मिलती थी। इस प्रकार के आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक संस्कार करनेवाले परिवार में टेसला के आविष्कारी, तर्कयुक्त (शुद्ध) एवं निर्भयता आदि सद्गुणों का विकास होता है तो इस में कोई हैरानी नहीं।

निकोल टेसला की मिल्का, अ‍ॅजेलिना एवमं मॅरिका नाम की तीन बहनें थीं और उनके बड़े भाई का नाम डेन था। बद्किस्मती से डेन घुडसवारी करते समय एक दुर्घटना का शिकार हो गए थे। आगे चलकर डॉ.निकोल टेसला को उनके संशोधन में मिलनेवाले अपार यश से बिथर उठनेवाले उनके विरोधकों ने डेन के मृत्यु का जिम्मेदार टेसला को ठहराया। तथा अनेक प्रकार से उनके मानसिकता को ठेस पहुँचाने की कोशिशें उनके विरोधकों ने की परन्तु वे सफल न हो सके। ऐसी गिरी हुई हरकतें करने के बावजूद भी उनके विरोध में डॉ.टेसला ने कुछ भी नहीं कहा।

अपने जन्मस्थान स्मिलियान प्रांत के स्कूल में उन्होंने जर्मनी भाषा गणित एवं धर्मशास्त्र की शिक्षा हासिल की। इसके पश्‍चात उनका परिवार गॉस्पिक में स्थलांतरित हो गया। इनके पिता वहीं के चर्च में पास्टर के रूप में कार्य करते थे। अपनी अग्रीम शिक्षा इन्होंने यहीं पर पूरी की। 1870 में टेसला परिवार कार्व्होलाक में आकर बस गया। यहीं पर निकोल टेसला ने अपनी अगली पढ़ाई पूरी की।

शिक्षकों को हमेशा अपने बुद्धिमान एवं परिश्रमी विद्यार्थी के प्रति गर्व होता है और उससे वे बहुत सारी उम्मीदें भी रखते हैं। कुछ कर दिखानेवाले होशियार बच्चों की प्रशंसा शिक्षक करते ही है, परन्तु निकोल टेसला के मामले में पहले-पहले ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उल्टे शिक्षक अपने इस छात्र की ओर संदेहभरी दृष्टी से देखते थे। इसका कारण बिलकुल भिन्न था कारण टेसला शिक्षकों द्वारा दिए जाने वाले  घिसे-पीटे कॅल्क्युलस के गणित पर सिर पीटने की बजाय मन ही मन वे उसका हल निकालकर उसका उत्तर लिख देते थे। इसके लिए उन्हें समय भी बर्बाद नहीं करना पड़ता था। निश्‍चित ही उत्तर अचूक होता था। परन्तु इससे शिक्षक संतुष्ट नहीं होते थे।

यह विद्यार्थी इतनी आसानी से हल कैसे निकाल लेता है वे कैसे जान पाता हैं? उनकी नजरों में यह लड़का हमें फॅंसाता है ऐसी उनकी सोच हुआ करती थी। आखिरकार टेसला ने स्वयं ही उनके इस संदेह को दूर किया। यह कह कर कि हम दिमागी तौर पर सोचकर भी सही हल निकाल सकते हैं। यह उसने कर दिखलाया यह देख उसके शिक्षक भी हैरान रह गए। जिस ग्रॅज्युएशन के लिए अन्य विद्यार्थियों को चार वर्ष लगते थे, वहीं टेसला ने उसी अभ्यासक्रम को केवल तीन वर्षों में ही पूर्ण कर लिया। 1873 में टेसला ग्रॅज्युएट हो गए। उसी वर्ष वे स्मिलियान अपनी जन्मभूमि (मातृभूमि) में  वापस आ गए। यहाँ आने पर उन्हें जानलेवा कॉलरा की बीमारी होगई। परन्तु वे इस बीमारी से अच्छे हो गए।

1874 में टेसला प्रकृति के सान्निध्य में गए। वे पर्वतीय कंदराओं में मुक्त होकर घुमते-फिरते थे। परमेश्‍वर द्वारा निर्माण किये गए इस दुनिया एवं प्रकृति का अध्ययन करना यही टेसला के चिंतन और अध्ययन का विषय था। इस समय में किया गया निरीक्षण उनके आगे चलकर किये जानेवाले संशोधन के लिए उपयुक्त साबित हुआ। यह अध्ययन उन्हें मानसिक एवं शारीरिक दृष्टिसे सक्षम बनाने में भी उपयोगी साबित हुआ।

Dr. Nikola Tesla - Early Life1875 में टेसला ने ऑस्ट्रिया के ग्राम में होनेवाले ‘पॉलिटेक्निक कॉलेज’ में स्कॉलरशीप प्राप्त कर प्रवेश किया। इस कॉलेज में टेसला कें ज्ञान की भूख सतत बढ़ती ही रही। इस कॉलेज के एक भी लेक्चर को वे छोड़ते नहीं थे। इस कॉलेज में नौ परीक्षा देनेवालों में सर्वाधिक अंकों के विक्रम की नोंद उन्होंने यहाँ पर की। ये परीक्षा आवश्यकता से दुगुनी थीं ऐसा कहा जाता है। यहाँ पर उन्होंने ‘सर्बियन कल्चर क्लब’ की स्थापना की थी।

इस पॉलिटेक्निक कॉलेज के डीन ने इस असामान्य विद्यार्थी को ‘स्टार ऑफ द फस्ट रैंक’ के पुरस्कार से सम्मानित किया। इस प्रकार का बहुमान प्राप्त करते हुए, टेसला कितना समय अपनी पढ़ाई में व्यतीत करते थे, इस बात की जानकारी हमें हासिल करनी ही चाहिए। मध्य रात्रि के तीन बजे से लेकर दूसरे दिन के रात्रि के ग्यारह बजे तक टेसला लगातार अध्ययन करते रहते थे। दिन के कुल 20 घंटे तक काम करनेवाला यह विद्यार्थी सप्ताह के अंत में भी बिना छुट्टी लिए पढ़ाई में मग्न रहते थे।

1878 में टेसला ग्राझ से पुन: गॉस्पिक में आ गए। यहाँ पर आकर उन्होंने अध्यापन का कार्य स्वीकार किया। 1980 में टेसला बुड़ापेस्ट आ गए। वहाँ पर टेलिफोन एक्सचेंज की नींव डाली जा रही थी। उसके सेंट्रल टेलिग्राफ ऑफिस में टेसला ने ‘ड्राफ्टस्मैन’ का कार्य सँभाला। जब वह टेलिफोन एक्सचेंज कार्यरत हो गया, तब वहाँ पर टेसला को चीफ इलेक्ट्रिशियन के रुप में नियुक्त किया गया। इसी समय टेसला ने सेंट्रल स्टेशन की प्रणाली में बहुत बड़ा बदलाव लाया।

…….और यहीं पर उनका प्रथम संशोधन हुआ। टेलिफोन ‘रिपीटर’ तथा ‘अँप्लिफायर’ उन्होंने बनाया। परन्तु जनकल्याण, अपने जीवन का उद्देश्य है यह मानकर चलनेवाले संशोधक ने अपने इस प्रथम संशोधन का पेटंट प्राप्त नहीं किया।

आगे चलकर डॉ. टेसला फ्रांस की राजधानी पॅरिस में रहनेवाले थॉमस अल्वा एडिसन के कंपनी में काम करने लगे। इस कंपनी की ओर से तैयार किए जाने वाले इलेक्ट्रिकल उपकरणों के ‘डिझाईन’ में सुधार लाने का काम एक इंजीनियर होने के नाते निकोल टेसला कर रहे थे। यहाँ पर उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को आश्‍चर्य चकित कर देने वाले काम किए। चार्ल्स बैचलर टेसला के वरिष्ठ अधिकारी थे वे टेसला से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने टेसला को एक शिफारस करनेवाला पत्र देकर, सीधे एडिसन से मिलने अमरीका भेज दिया। इस पत्र में बॅचलर ने एडिसन को टेसला की जानकारी बिलकुल गिने-चुने शब्दों में दी।

‘मुझे दो ही महान व्यक्तित्व के लोगों के बारे में जानकारी है। एक आप हो और दूसरा यह नौजवान हैं’ इस प्रकार बॅचलर ने टेसला की प्रशंसा की थी। इससे प्रभावित होकर स्वयं टेसला भी एडिसन से मिलने के लिए उत्सुक थे। क्योंकि वे उन्हें अपना आदर्श मानते थे। इस प्रकार जेब में केवल चार सेंट्स एवं बॅचलर द्वारा दिया गया पत्र लेकर  निकोल टेसला अमरीका जा पहुँचे। उस समय के जाने-माने प्रसिद्ध यंत्रज्ञ एडिसन के प्रति टेसला के मन में बहुत आदर था। ऐसे में उनसे मिलने के लिए उत्सुक होना टेसला के लिए स्वाभाविक था। परन्तु आगे चलकर आनेवाले समय में एडिशन टेसला की नजरों में आदर्श नहीं रहें इस बारे में अधिक जानकारी हम प्राप्त करेंगे ही। मात्र अमरीक के भूमि पर पैर रखनेवाला यह नौजवान निकोल टेसला अग्रीम छ: दशकों तक इस देश में ही अपनी अभूतपूर्व विज्ञान-कौशल दर्शानेवाला था। उसके सारे संशोधन और उनका लोगों को अचम्भे में डाल देनेवाला प्रदर्शन आनेवाले समय में अमरीका को आश्‍चर्यचकित कर देनेवाला था। (क्रमश:)

 

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One Response to "डॉ. निकोल टेसला – जीवनविकास की शुरुआत"

  1. Nilesh Jadhav   October 4, 2015 at 6:32 am

    It is indeed a great series started on Pratyaksha Mitra. I am enjoying a lot. What a great Scientist.

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