दोहा ‘ईंधन’ बैठक की पार्श्वभूमि पर सौदी और ईरान के बीच का संघर्ष तीव्र

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दुनिया के प्रमुख ईंधनउत्पादक रहनेवाले देशों की रविवार को हुई बैठक नाक़ाम हुई है। कच्चे तेल के उत्पादन के साथ साथ अन्य मुद्दों पर भी सौदी अरेबिया एवं ईरान के बीच चल रहा संघर्ष इसका कारण है, ऐसा कहा जा रहा है। बैठक शुरू होने से पहले ही सौदी ने ईरान की ओर ऊँगली उठाकर, ‘यदि अन्य देश उत्पादन मर्यादित नहीं रखनेवाले हैं, तो हम भी उत्पादन मर्यादित रखने के पाबंद नहीं हैं, यह स्पष्ट किया है। वहीं, ईरान ने, ‘दोहा की बैठक में हम सहभागी ही नहीं होंगे और बैठक में किया जानेवाला निर्णय हमपर बंधनकारक नहीं होगा’ ऐसी घोषणा की है।

दो महीनें पूर्व, सौदी अरेबिया एवं रशिया के साथ साथ प्रमुख तेलउत्पादक देशों ने एकता का प्रदर्शन कर, उत्पादन स्थिर रखने की घोषणा की थी। इस घोषणा से, आंतर्राष्ट्रीय मार्केट में तेल के दामों में वृद्धि होना शुरू हुआ था। फिलहाल कच्चे तेल की क़ीमत ४० डॉलर प्रति बॅरल से अधिक होकर, यदि रविवार की बैठक क़ामयाब हो जाती, तो यह क़ीमत ५० डॉलर से भी अधिक होने की संभावना जतायी गयी थी। लेकिन सौदी तथा ईरान के बीच के संघर्ष के कारण निराशा के सूर अलापे जाने लगे हैं।

News 1 Image 2 ईरान एवं सौदी में, कच्चे तेल के उत्पादन के मुद्दे के अलावा, सिरिया, येमेन एवं आखाती प्रदेश में के वर्चस्व के मुद्दे पर भी तीव्र संघर्ष चालू है। सिरिया के बशर अल् अस्साद ने गत कुछ महीनों में रशिया और ईरान के सहयोग से अपना स्थान फिर से एक बार मज़बूत करने की शुरुआत की है। येमेन में सौदी ने हालाँकि अरब मित्रदेशों के साथ आक्रामक लष्करी मुहिम चलायी, मग़र फिर भी ईरान का समर्थन करनेवाले हौथी बाग़ियों को उखाड़ फ़ेंकने में उन्हें अभी तक सफलता नही मिली है।

दूसरी तरफ़ सौदी ने ईजिप्त, तुर्की इन जैसे देशों के साथ संबंध और मज़बूत बनाने पर ज़ोर देना शुरू किया है। आखातक्षेत्र के अरब मित्र देश तथा अन्य प्रमुख देशों को साथ लेकर एक बड़ा मोरचा तैयार करने के सौदी के प्रयास चल रहे हैं, ऐसा इन गतिविधियों से स्पष्ट हो रहा है। उसी समय, आंतर्राष्ट्रीय परमाणुसमझौता करने में क़ामयाब हुए ईरान ने रशिया, चीन, भारत एवं युरोपीय देशों के साथ संबंध सुधारने पर ज़ोर देना शुरू किया है।

इसके लिए ईरान, ईंधन का इस्तेमाल कर रहा होकर, ईंधन उत्पादन तथा निर्यात को बढ़ाकर आर्थिक मोरचे को मज़बूत बनाने के प्रयास कर रहा है। दोहा की बैठक में यदि ईरान सहभागी हो जाता, तो उस बैठक मे सर्वसंमति से किये गये निर्णय को मानकर, ईरान को भी तेल के उत्पादन को फिलहाल है, उसी स्तर पर स्थिर रखना पड़ता था। ईरान की विद्यमान आर्थिक स्थिति को देखते हुए यह बात ईरान के लिए मुनासिब नहीं है। इसलिए बैठक में सहभागी न होते हुए ईरान ने, कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाने पर ही ज़ोर दिया जायेगा, ऐसी घोषणा की है।

ईरान की यह घोषणा सौदी के लिए अनुकूल साबित हुई होकर, सौदी के प्रिन्स मोहम्मद बिन सलमान अज़िज़ ने ईरान की तरफ़ ऊँगली उठाकर यह घोषित कर दिया है कि यदि सभी प्रमुख तेलउत्पादक देश उत्पादन स्थिर रखनेवाले नहीं हैं, तो सौदी भी वैसा नहीं करेगा। उसी समय, कच्चा तेल बेचने का जो मौक़ा मिलेगा, सौदी उसे नहीं छोड़ेगा, ऐसी चेतावनी भी दी। कच्चे तेल की क़ीमत में रहनेवाले उतार-चढावों से सौदी को कोई लेनादेना नहीं है, ऐसा दावा भी उन्हों ने किया।

News 1 Image 3दोहा बैठक के लिए पहल कर चुके सौदी, रशिया तथा अन्य प्रमुख देशों को दोहा के निर्णय से कुछ ख़ास फ़र्क नहीं पड़ेगा, ऐसा दावा कुछ पश्चिमी विश्लेषक कर रहे हैं। क्योंकि इन देशों ने अपने उत्पादन की आँकड़ेवारी को पहले से ही बढ़ाचढ़ाकर बताया होकर, निर्णय के बाद भी उसी मर्यादा तक कच्चा तेल मार्केट में आता ही रहेगा, ऐसा विश्लेषकों का कहना है। रशिया एवं क़तार जैसे देशों ने यह उम्मीद ज़ाहिर की थी कि ईरान की अनुपस्थिति में भी दोहा बैठक में निर्णय किया जायेगा।

बैठक की पार्श्वभूमि पर ही, सौदी अरेबिया ईरान में आतंकवादी कारनामों को समर्थन दे रहा होने का आरोप कर ईरान ने नयी खलबली मचायी है। वहीं, इस्लामी देशों की ‘ओआयएसी’ इस प्रमुख बैठक में ईरान पर ‘आतंकवाद का समर्थक’ होने का आरोप लगाया गया है। ये आरोप सौदी के बहकावे में आने के कारण ही लगाये गये हैं, ऐसा ईरान का दावा है। इन गतिविधियों के कारण, नज़दीक के समय में सौदी एवं ईरान के बीच का संघर्ष अधिक ही तेज़ धार वाला होने की संभावना दिखायी देने लगी है।

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