‘डोकलाम’ का विवाद होते हुए भी चीन की भारत के निर्यात मे बढ़त

नई दिल्ली : पिछले वर्ष ‘डोकलाम’ का संघर्ष होने से भारत और चीन में तनाव निर्माण हुआ था। इस वर्ष उसके प्रभाव उमड़ेंगे एवं डोकलाम जैसा संघर्ष फिर होगा, ऐसा इशारा चीन से दिया जा रहा है। पर दोनों देशों के संबंध बिगड़े होते हुए भी, भारत एवं चीन का द्विपक्षीय व्यापार ८४ अरब डॉलर्स के आगे जाने की जानकारी सामने आ रही है। इस व्यापार में भारत को लगभग ५२ अरब डॉलर का व्यापारी नुकसान सहन करना पड़ रहा है। भारत से इतने बड़ा व्यापारी लाभ प्राप्त करने पर भी चीन भारत के आयटी एवं औषधी निर्माण क्षेत्र के कंपनियों को अपना बाजार उपलब्ध करके देने के लिए तैयार नहीं है यह भी इस निमित्त से सामने आया है।

डोकलाम का विवाद शुरू होनेपर, उसके भयंकर परिणाम भारत को सहने होंगे हैं, ऐसी धमकियां चीन से दिए जा रही थी। अभी भी चीन से मिलनेवाली यह धमकियां रुकी नहीं है। पर दोनों देशों का तनाव बढ़ा तो उसके द्विपक्षीय व्यापार पर परिणाम होकर, उसमें चीन को ही भारी नुकसान सहना होगा, ऐसा दिखाई दे रहा है। सन २०१७ में भारत एवं चीन में का व्यापार लगभग ८४.४४ अरब डॉलर्स पर गया था। उसके पहले वर्ष में यह व्यापार ७० अरब डॉलर्स के आसपास था। पर सन २०१७ वर्ष में इसमें १८ फीसदी बढ़त हुई है। इसकी वजह से इस व्यापार में भारत को सहन करनेवाले व्यापारी नुकसान का भी प्रमाण बढ़ा है।

चीन की भारत में निर्यात लगभग ६८ अरब डॉलर्स के आगे गई है तथा भारत से चीन को होनेवाली निर्यात केवल १६ अरब डॉलर्स तक मर्यादित रखी गई है। इसकी वजह से भारत को इस व्यापार में लगभग ५१ अरब डॉलर्स का नुकसान सहन करना पड़ रहा है। इससे पहले के वर्ष की तुलना में इस व्यापार के नुकसान में ८.५५ फीसदी बढ़त हुई है। चीन ने उजागर किए आंकड़ों से यह बात सामने आई है। वास्तव में भारत को चीन ने घोषित किया है, उससे अधिक व्यापारी नुकसान सहन करना पड़ रहा है, ऐसा कहा जा रहा है।

दुनियाभर में बड़ी तादाद में निर्यात करनेवाले चीन के लिए भारत यह सातवें क्रमांक का बाजार है। ऐसा होकर भी चीन भारत को किसी भी प्रकार के व्यापारी छूट देने के लिए तैयार ना होने की बात उजागर हुई है। विशेष रूप से भारत के आयटी एवं औषधी निर्माण कंपनियों को अपना बाजार उपलब्ध कराने की तैयारी चीन ने नहीं दिखाई है। भारत ने दशक पहले चीन से इस बारे में मांग की थी। पर चीन उस पर विचार करने के लिए तैयार नहीं है। अगर इस क्षेत्र में भारतीय कंपनियों को चीन में अवसर मिले, तो दोनों देशों के व्यापार में निर्माण हुआ असंतुलन दूर हो सकता है। पर चीन इस बारे में उदासीन है।

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