भारत की सैटेलाईट यंत्रणा पर चीन के सायबर हमले – अमरीका स्थित अभ्यासगुट की जानकारी

वॉशिंग्टन – लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश की प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा के करीबी क्षेत्र में साज़िश कर रहे और हिंद महासागर में चुनौती दे रहे चीन ने अंतरिक्ष में भी भारत के खिलाफ़ नया मोर्चा खोलने की जानकारी सामने आ रही है। वर्ष २००७ से २०१८ के दौरान चीन ने भारत के सैटेलाइट कम्युनिकेशन्स पर सायबर हमले किए थे। अंतरिक्ष में चीन की गतिविधियों पर नज़र रखनेवाले अमरीकी अभ्यासगुट ने चीन की इन हरकतों की पोल खोली है। लेकिन, भारत की उपग्रह यंत्रणा और संबंधित उपकरण किसी भी तरह के सायबर हमलों से प्रभावित ना होने की बात इस्रो के प्रमुख ने स्पष्ट की है।

अमरीका स्थित ‘चायना एरोस्पेस स्टडीज्‌ इन्स्टिट्यूट’ नामक अभ्यास गुट ने अंतरिक्ष में जारी चीन की गतिविधियों और हरकतों के मुद्दे पर १४२ पन्नों की रपट तैयार की है। इस रपट में भारत की अंतरिक्ष मुहिम और सुरक्षा कमजोर करने के लिए चीन ने १३ वर्षों में किए हरकतों की जानकारी पेश की गई है। वर्ष २०१२ से २०१८ के दौरान चीन से भारतीय सैटेलाईट और संबंधित यंत्रणा पर लगातार सायबर हमले होने की बात इस रपट में दर्ज़ है। लेकिन, इस रपट में सिर्फ वर्ष २०१२ में हुए सायबर हमलों के बारे में विस्तार के साथ बताया गया है। वर्ष २०१२ में ‘जेट प्रोपल्शन लैबोरटरी’ (जेपीएल) पर चीनी नेटवर्क के कंप्युटर से सायबर हमले किए जाने की बात दर्ज़ की गई है। इस सायबर हमले से ‘जेपीएल’ नेटवर्क पर पूरी तरह से नियंत्रण प्राप्त किया गया था, यह दावा इस रपट में किया गया है।

इस सायबर हमले में भारत के ‘जेपीएल’ का कितना नुकसान हुआ, यह बात इसमें स्पष्ट नहीं है। लेकिन, इस रपट में ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (इस्रो) के प्रमुख के.सिवन की प्रतिक्रिया दर्ज़ है। भारत के सैटेलाईट कम्युनिकेशन्स के लिए सायबर हमलों का खतरा हमेशा बना रहता है। लेकिन आज तक इस सिस्टम पर किसी भी तरह का खतरा अभी तक पहुँचा नहीं है। इस तरह के सायबर हमलों से प्रभावित ना हो इसके लिए इस्रो की स्वतंत्र और इंटरनेट से जुड़ी ना होनेवाली ‘आयसोलेटेड’ यंत्रणा मौजूद होने की जानकारी इस्रो के प्रमुख ने साझा की। इस्रो के ‘प्रोपल्शन काँप्लेक्स’ तमिलनाडु के महेंद्रगिरी में है और वहां पर सैटेलाईट में इस्तेमाल हो रहे लिक्विड, क्रायोजेनिक और सेमी क्रायोजेनीक इंजन्स का परीक्षण होता है। लगभग दो वर्ष पहले ‘जेपीएल’ से संबंधित अमरीका की नासा और भारत की इस्रो ने विशेष सहयोग के लिए समझौता किया था।

अमरिकी अभ्यासगुट के रपट के अनुसार चीन ने बड़ी मात्रा में ‘काउंटर स्पेस तकनीक’ का निर्माण किया है। इस तकनीक की सहायता से चीन की ‘पिपल्स लिब्रेशन आर्मी’ अंतरिक्ष में अपने शत्रु देश की यंत्रणा को ज़मीन से ही ‘जिओसिंक्रोनस ऑर्बिट’ तक लक्ष्य कर सकती है। साथ ही शत्रु देश के सैटेलाईट्स नाकाम करने की तकनीक भी चीन के हाथ में होने की जानकारी इस रपट में साझा की गई है। डेढ़ वर्ष पहले ही भारत ने अपनी अंतरिक्ष मुहिम और उपग्रह सुरक्षित रखने के लिए ‘उपग्रह विरोधी’ यानी ‘ऐन्टी सैटेलाईट’ मिसाइल का परीक्षण किया था। इसके बाद भारत को शत्रु के उपग्रह निष्क्रिय करने के ‘कायनेटिक किल’ तकनीक का विकल्प भी प्राप्त हुआ है। भारत की इस तैयारी का अन्य देशों ने स्वागत किया था, तभी चीन ने भारत की इस उपलब्धी पर आलोचना की थी। इससे पहले, वर्ष २००७ में चीन ने सबसे पहले उपग्रह विरोधी मिसाइल प्रक्षेपित करके अंतरिक्ष में मौजूद अपना उपग्रह नष्ट किया था। चीन की इस हरकत की वजह से अंतरिक्ष में मौजूद उपग्रहों की सुरक्षा के लिए खतरा निर्माण होने की आलोचना विश्‍वभर से हो रही थी।

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