नेपाल में जारी राजनीतिक उठापटक से चीन बेचैन

काठमांडू – अपने समर्थकों के हाथों से नेपाल की सत्ता खिसकने लगने से चीन काफी बेचैन है। इसी कारण चीन का उच्चस्तरीय शिष्टमंडल नेपाल दाखिल हुआ है। प्रधानमंत्री के.पी.शर्मा ओली और प्रचंड के मेल-मिलाप से मतभेदों का हल निकाले, ऐसी बिनती चीन के इस शिष्टमंडल ने की है। तभी, चीन हमारे देश में सियासी दखलअंदाज़ी करना बंद करे, ऐसी माँग करके नेपाल के विपक्षी दलों ने प्रदर्शन शुरू किए हैं। ऐसे में नेपाल का जनतंत्र खतरे में होने की स्थिति में भारत ने शांत रहना अनुचित है, ऐसा कहकर नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड ने भारत से सहायता के लिए आवाहन किया है।

राजनीतिक उठापटक

प्रधानमंत्री के.पी.शर्मा ओली ने नेपाल की संसद भंग करने की सिफारिश की है और इससे संबंधित प्रस्ताव पर नेपाल की राष्ट्रापति विद्यादेवी भंडारी ने मंजूरी भी दी है। अब नेपाल में जल्द ही आम चुनाव किए जाएंगे और इस वजह से चीन की बौखलाहट बढ़ने लगी है। नेपाल में प्रधानमंत्री ओली की सरकार कायम रहे इसके लिए चीन ने अपना शिष्टमंडल रवाना किया था। इस उच्चस्तरीय शिष्टमंडल ने प्रधानमंत्री और उनके प्रमुख प्रतिद्वंद्वि प्रचंड से भेंट करके दोनों के विवाद का हल निकालने की कोशिश भी की। लेकिन, यह विवाद चरम स्तर पर जा पहुँचा है और कम्युनिस्ट पार्टी के गठबंधन में पडी दरार अब मिटाना लगभग असंभव है।

इसके बावजूद चीन जैसा ताकतवर देश का नेपाल जैसे देश में जारी इन सियासी गतिविधियों में रूचि दिखाना चौकानेवाली बात है। प्रधानमंत्री ओली चीन के प्यादे हैं और वे चीन के इशारों पर ही काम करते हैं, ऐसा आरोप नेपाल के विपक्षी दल लगा रहे थे। पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड ने भी इन आरोपों का समर्थन करके प्रधानमंत्री ओली समेत चीन को झटका दिया। इस वजह से नेपाल की सरकार अस्थिर हुई और आखिरकार प्रधानमंत्री ओली ने संसद भंग करके चुनाव कराने की सिफारिश राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी से की थी।

नेपाल में जारी इस राजनीतिक उठापटक का भारतीय माध्यमों ने संज्ञान लिया था। साथ ही यह नेपाल का अंदरुनि मामला है, ऐसी भारत की भूमिका भी माध्यमों ने स्पष्ट तौर पर पेश की थी। नेपाल में चीन की दखलअंदाज़ी की पृष्ठभूमि पर भारत ने अपनाई भूमिका काफी संयमी एवं प्रगल्भ होने की बात स्पष्ट रूप से दिख रही है। इसी कारण बेचैन हुए चीन के सरकारी मुखपत्र ‘ग्लोबल टाईम्स’ ने भारत की आलोचना की है। नेपाल में अपना शिष्टमंडल भेजने का अधिकार चीन का है लेकिन, भारत को नेपल में दखलअंदाज़ी करने का अधिकार नहीं है, ऐसा हास्यकारक दावा ग्लोबल टाईम्स ने किया है।

इस पृष्ठभूमि पर नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड ने एक स्थानीय समाचार चैनल से बातचीत करते समय भारत से आवाहन करने का वृत्त है। नेपाल में जनतंत्र की हत्या के समय भारत जैसे देश का शांत रहना अनुचित है। भारत हमारी सहायता करे, यह माँग प्रचंड ने की है। किसी समय चीन के समर्थक एवं भारत के विरोधक के रूप में पहचाने जानेवाले प्रचंड ने भारत से ऐसी माँग करना ध्यान आकर्षित करनेवाली घटना है। भारत के साथ ही अमरीका और यूरोपिय देश भी नेपाल में जारी गतिविधियों का गंभीरता से संज्ञान लें, यह बयान भी प्रचंड ने किया है।

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