चीन ही है ब्रिटेन की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा – ब्रिटेन के गुप्तचर प्रमुख का इशारा

लंदन/बीजिंग – ब्रिटेन की सुरक्षा के लिए चीन सबसे बड़ा खतरा है, ऐसा इशारा ब्रिटेन के गुप्तचर प्रमुख जेरेमी फ्लेमिंग ने दिया है। इसके साथ ही ब्रिटेन की कंपनियां एवं अस्पतालों पर चीन से बड़ी मात्रा में सायबर हमले हो रहे हैं, यह आरोप भी उन्होंने किया। बीते कुछ महीनो में कोरोना के साथ अन्य मुद्दों पर ब्रिटेन और चीन के संबंधों में तनाव निर्माण हुआ है और ब्रिटेन ने चीन के विरोध में अपनाई भूमिका अधिक से अधिक आक्रामक करना शुरू किया है। ब्रिटेन के गुप्तचर प्रमुख ने दिया इशारा इसी आक्रामकता का हिस्सा है।

ब्रिटेन के एक अभ्यासगुट ने आयोजित किए कार्यक्रम के दौरान ब्रिटेन की गुप्तचर ‘जीसीएचक्यू’ यंत्रणा के प्रमुख फ्लेमिंग ने चीन के खतरे की ओर ध्यान आकर्षित किया। सायबर सुरक्षा एवं अन्य क्षेत्रों में ब्रिटेन को लगातार नई चुनौतियों का मुकाबला करना पड़ रहा है, यह बयान भी फ्लेमिंग ने किया। इस दौरान उन्होंने कोरोना की महामारी की पृष्ठभूमि पर ब्रिटेन की औषधि क्षेत्र की कंपनियों एवं अस्पतालों पर बड़ी मात्रा में सायबर हमले हो रहे हैं, यह बात साझा करके इन हमलों के पीछे चीनी हैकर्स होने का आरोप उन्होंने किया। कोरोना की महामारी के साथ ही ‘ब्रेक्ज़िट’ की पृष्ठभूमि पर ब्रिटेन में बनी अनिश्‍चितता का लाभ उठाने की कोशिश चीनी हैकर्स कर रहे हैं, यह दावा भी फ्लेमिंग ने किया है।

इसी बीच, ‘ब्रेक्ज़िट’ के बाद ब्रिटेन के सामने खड़ी चुनौतियां एवं खतरों के विषय पर बोलते समय ‘जीसीएचक्यू’ के प्रमुख ने यह इशारा दिया है कि, ब्रिटेन की सुरक्षा के लिए चीन ही सबसे बड़ा खतरा है। यह इशारा देने के साथ ही ‘ब्रेक्ज़िट’ के बाद भी सुरक्षा के मुद्दे पर ब्रिटेन और यूरोपिय महासंघ के सहयोग के स्वरूप में बदलाव नहीं होगा, बल्कि यह अधिक मज़बूत और व्यापक होगा, यह संकेत भी उन्होंने दिए। गुप्तचर विभाग के प्रमुख ने चीन को लेकर दिए इशारे का ब्रिटेन के वरिष्ठ लष्करी अफसरों ने भी समर्थन किया है। ब्रिटेन की ‘स्ट्रैटेजिक कमांड’ के प्रमुख जनरल सर पैट्रिक सैण्डर्स ने यह इशारा दिया है कि, ब्रिटेन की सुरक्षा के लिए चीन का खतरा काफी तीव्र स्वरूप का होगा।

वर्ष 2010 के बाद ब्रिटेन ने चीन के साथ संबंध अधिक मज़बूत एवं व्यापक करने के लिए बड़ी मात्रा में गतिविधियां शुरू की थीं। ब्रिटेन और चीन में हुए व्यापारी एवं निवेश से संबंधित समझौते के बाद दोनों देशों में ‘सुवर्णयुग’ की शुरूआत होने के दावे भी सियासी नेता एवं विश्‍लेषकों ने किए थे। लेकिन, बीते वर्ष से दोनों देशों के संबंधों में बदलाव होने लगा है और ब्रिटेन ने चीन से संबंधित अधिक आक्रामक भूमिका अपनाई है। कोरोना की महामारी, साउथ चायना सी में जारी गतिविधियां, हाँगकाँग के लिए किया गया कानून, उइगरवंशी, 5 जी तकनीक जैसे मुद्दों पर ब्रिटेन ने खुलेआम चीन के विरोध में भूमिका अपनाकर अहम निर्णय किए है।

ब्रिटेन की इस आक्रामकता की वजह से चीन बौखलाया हुआ है और ब्रिटेन के नेतृत्व पर साम्राज्यवादी मानसिकता का आरोप करने लगा रहा है। चीन के खिलाफ निर्णय कर रहे ब्रिटेन को इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे, इन शब्दों में धमका भी रहा है। लेकिन, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन ने अपनी नीति में बदलाव करने से इन्कार किया है और चीन विरोधी भूमिका अधिक व्यापक करने के संकेत दिए हैं। कुछ दिन पहले ही ब्रिटेन के एक शीर्ष अभ्यासगुट ने जॉन्सन की सरकार को ‘इंडो-पैसिफिक’ केंद्रीत विदेश नीति तय करके चीन के प्रभाव को स्पष्ट तौर पर चुनौती देने की सलाह भी दी थी।

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