चीन ने पहल किये ‘आरसीईपी’ समझौते पर १५ देशों के हस्ताक्षर – विश्‍व का सबसे बड़ा व्यापारी समझौता होने का दावा

बीजिंग – रविवार के दिन हुई वर्चुअल बैठक में चीन समेत १५ देशों ने ‘रिजनल कॉम्प्रिहेन्सिव्ह इकॉनॉमिक पार्टनरशिप’ (आरसीईपी) समझौते पर हस्ताक्षर किए। चीन ने आठ वर्ष पहले इस समझौते की कल्पना रखी थी। लेकिन, इसके बाद अमरीका और भारत इन दो प्रमुख देशों ने इस समझौते से बाहर होने का निर्णय किया था। फिलहाल कोरोना की महामारी के पृष्ठभूमि पर जागतिक स्तर पर चीन के खिलाफ असंतोष बढ़ रहा है और तभी इस समझौते पर हस्ताक्षर होना ध्यान आकर्षित करता है।

rcep‘आरसीईपी’ व्यापारी समझौते पर हस्ताक्षर करनेवाले देशों में आग्नेय एशिया के १० देशों के साथ चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूझीलैण्ड का समावेश है। जागतिक अर्थव्यवस्था में लगभग ३० प्रतिशत हिस्सा उठानेवाले देशों का समावेश, यही इस समझौते की विशेषता समझी जा रही है। ‘जीडीपी’ का विचार करें तो यह समझौता विश्‍व का सबसे बड़ा व्यापारी समझौता होने की बात कही जा रही है।

चीन की पहल से किए गए ‘आरसीईपी’ समझौते का उद्देश्‍य व्यापारी कर कम करना, सेवा क्षेत्र में व्यापार के अवसर प्रदान करना, निवेश के लिए प्रोत्साहित करना ही है। लेकिन, इस समझौते में पर्यावरण एवं मज़दूरों के अधिकारों का ज़िक्र नहीं है। अगले दो वर्षों में कम से कम ९ देशों ने इस समझौते को मंज़ुरी प्रदान करने के बाद यह समझौता प्रत्यक्ष आकार प्राप्त करेगा। कोरोना की महामारी की वजह से निर्माण हुए आर्थिक संकट की स्थिति से बाहर निकलने के लिए ‘आरसीईपी’ की सहायता होगी, यह दावा इस समझौते का हिस्सा बने देशों ने जारी किए संयुक्त निवेदन में किया है।

rcepइस समझौते पर हुए हस्ताक्षर यानी ऐतिहासिक जीत होने की ड़िंगें चीन ने हाँकीं हैं। ‘आरसीईपी’ समझौता चीन का बढ़ता प्रभाव रेखांकित करता है, यह बात भी कुछ आर्थिक विशेषज्ञ कह रहे हैं। लेकिन, कुछ विश्‍लेषकों ने ‘रिजनल कॉम्प्रिहेन्सिव्ह इकॉनॉमिक पार्टनरशिप’ समझौता अभी पूरा नहीं हुआ है, ऐसा कहा है। जापान के प्रधानमंत्री योशीहीदे सुगा ने, इस समझौते में भारत के संभावित समावेश के लिए हम कोशिश करेंगे, ऐसा कहा है। भारत ने पिछले साल इस समझौते से पीछे हटने का निर्णय किया था।

शुरू में इस गुट का सदस्य बना भारत बीते वर्ष समझौते से पीछे हटा था। इस समझौते को लेकर उठे कुछ सवालों का हल अभी नहीं निकला है, यह कहकर भारत ने इस समझौते से बाहर निकलने का निर्णय किया था। भारत ने इस समझौते पर हस्ताक्षर करने पर चीन के सस्ते उत्पादनों के लिए भारतीय बाज़ार खुला होगा, इसपर भारत ने चिंता जताई थी। भारत की आपत्ति एवं चिंता का हल निकले बगैर इस समझौते पर हस्ताक्षर करना संभव नहीं होगा, यह भूमिका भारत सरकार ने ड़टकर अपनाई थी। लेकिन, ऐसा करके भारत ने आर्थिक प्रगति की बस छोड़ दी है, ऐसी आलोचना चीन के सरकारी मुखपत्र ने की है।

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