चीन में ‘डिफॉल्टर’ कंपनियों की मात्रा बढ़ने से निवेशकारों में खलबली

बीजिंग – कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि पर, चीन की अर्थव्यवस्था किमान विकासदर साध्य करेगी और देश के प्रमुख क्षेत्र रफ़्तार पकड़ेंगे ऐसे दावे किये जा रहे थे। लेकिन यह चित्र झूठा होने के आरोप किये जा रहे हैं और चिनी कंपनियाँ बड़े पैमाने पर बकाएदार तथा दिवालिया बनकर सामने आने की शुरुआत हुई है। इस साल के पहले १० महीनों में ही चीन की सरकारी कंपनियों ने पूरे छ: अरब डॉलर्स से भी अधिक मूल्य के बाँड्स को चुकते करने से इन्कार किया है। सरकारी कंपनियों के बारी में सामने आयी इस जानकारी से आन्तर्राष्ट्रीय निवेशकारों में खलबली मची है।

चीन की अर्थव्यवस्था पर का कर्ज़े का कुल बोझ ३३० प्रतिशत से अधिक है। सन २०१७ में वह तक़रीबन २५० प्रतिशत इतना है। महज़ तीन सालों में उसमें पूरे ८० प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस बढ़ती रफ़्तार के पीछे, गत दशक में जागतिक मंदी के बाद चीन ने अपनायी नीति कारणीभूत है। सन २००८-०९ की मंदी से बाहर निकलने के लिए चीन ने बड़े पैमाने पर वित्तसहायता उपलब्ध कराके, बैंकों को मनचाहे कर्ज़े बाँटने की छूट दी थी। इस नीति में अभी भी कुछ ख़ास बदलाव नहीं हुआ है।

लेकिन पहले सरकारी कंपनियों ने तथा बड़ी कंपनियों ने कर्ज़ा चुकता ना करने पर अथवा किश्तें चुकतीं ना करने पर सरकार द्वारा हस्तक्षेप किया जाता था। इस वजह से, ऐसीं कंपनियों द्वारा जारी किये जानेवाले बाँड्स को निवेशकारों द्वारा बड़े पैमाने पर प्रतिसाद मिलता था। लेकिन अब चीन के सत्ताधारियों द्वारा इस मामले में अलग संकेत दिये जाने की शुरुआत की है। कुछ दिन पहले चीन के वरिष्ठ नेता लिऊ हे ने एक बैठक के दौरान यह स्पष्ट चेतावनी दी कि सरकार कर्ज़ा डुबानेवाली अथवा दिवालिया बननेवाली हर एक सरकारी कंपनी को नहीं बचायेगी। दिवालिया बननेवालीं सरकारी कंपनियों के बारे में ‘झिरो टॉलरन्स’ नीति अपनायी जायेगी, ऐसा भी उन्होंने जताया।

सत्ताधारी हुक़ूमत से ऐसे संकेत मिल रहे होते समय, कर्ज़ा डुबानेवालीं कंपनियों की जानकारी देनेवाला ब्योरा सामने आया है। उसमें जनवरी से अक्तूबर २०२० इस १० महीनों की कालावधि में, चीन की सरकारी कंपनियों ने पूरे ६.१ अरब डॉलर्स के बाँड्स चुकते नहीं किये हैं, यह बात सामने आयी है। सरकार द्वारा भी इन कंपनियों को किसी भी प्रकार की ख़ास मदद अथवा हस्तक्षेप करना टाला गया। उसके बाद पिछले ही महीने में तीन बड़ी सरकारी कंपनियों ने कर्ज़ा चुकता करने में असमर्थता दर्शायी है। उनमें ‘ब्रिलियन्स ऑटो ग्रुप’, ‘त्सिंगुआ युनिग्रुप’ तथा ‘योंगचँग कोल ऍण्ड इलेक्ट्रिसिटी’ इनका समावेश है।

एक के बाद एक घटीं इन घटनाओं से, चीन में निवेश करनेवाले विदेशी निवेशकारों में बहुत ही खलबली मची है। बाँड्स के मूल्य में गिरावट आयी होकर, ब्याजदरों में प्रचंड बढ़ोतरी हुई है। इसका झटका शेअरबाज़ार को भी लगा होकर, सरकारी कंपनियों के शेअर्स में गिरावट आयी है। चीन में बाँड्स का मार्केट तक़रीबन १५ ट्रिलियन डॉलर्स इतना प्रचंड है। इस मार्केट को धक्कें लगना शुरू हुआ होकर, उसकीं गूँजें अर्थव्यवस्था में भी सुनायीं देंगी, ऐसा दावा विश्‍लेषकों द्वारा किया जा रहा है। ‘फिच रेटिंग्ज्’, ‘र्‍होडियम ग्रुप’, ‘नोमुरा’ इन जैसीं अग्रसर संस्थाओं ने भी इस बारे में चेतावनियाँ देना शुरू हुआ है।

चीन की लगभग २० कंपनियों ने अपने बाँड्स स्थगित किये हैं। वहीं, विदेशी निवेशकारों ने भी निवेश कम करने के संकेत दिये हैं। यह बात दुनिया के दूसरे नंबर की अर्थव्यवस्था होनेवाले चीन के लिए ख़तरे की घंटी साबित हो रही है। उसी समय, इसके परिणाम जागतिक अर्थव्यवस्था पर भी हो सकते हैं, ऐसा दावा विशेषज्ञों द्वारा किया जा रहा है।

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