चार्ल्स थामसन रीस विल्सन (१८६९-१९५९)

‘विद्युतभारवाहक जलद कणों के मार्ग का अनुकरण कर के भापसंघनन पद्धति खोज निकालने के लिए नोबेल पुरुस्कार’ (सन १९२७)

for his method of making the paths of electrically charged particles visible by condensation of vapour

Charls Thomson

१४ फरवरी से सबको वैलेंटाइन दिवस याद आता है, मगर यह याद नहीं आता कि इसी दिन एक नोबेल विजेता वैज्ञानिक का जन्मदिन भी है। वह वैज्ञानिक है ‘चार्ल्स थामसन रीस विल्सन।’ १४ फरवरी १८६९ को स्कॉटलैंड की राजधानी एडिनबर्ग के निकट ग्लेनकोर्स गॉंव में इनका जन्म हुआ। वे जब ४ साल के थे तब उनके पिताजी का निधन हो गया। तत्पश्चात उनकी मॉं मेनचेस्टर में रहने लगी। चार्ल्स ने पहले मेनचेस्टर में एक निजी स्कूल में और बाद में ओवेन्स कॉलेज में शिक्षा पाई। सन १८८८ में वे कैंब्रिज के ‘सिडने ससेक्स’ यूनिवर्सिटी में दाखिल हुए। भौतिकशास्त्र और रसायनशास्त्र में विशेष अध्ययन करके सन १८९२ में उन्‍होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की परीक्षा दी। सृष्टि के आश्चर्यजनक घटनाओं की नकल करने के उद्देश्य से चार्ल्स ने सन १८९५ में प्रयोग शाला में मेघ निर्माण का प्रयोग शुरू किया। उसी वर्ष उन्होंने कैवेंदिश प्रयोगशाला में कॉंच के बंद बक्से में जलभाप मेघ निर्माण करने की पद्धति बनाई। क्लर्क मैक्सवेल स्कालरशिप पाने के बाद चार्ल्स ने तीन साल संशोधन में व्यतीत किए। तत्पश्चात उन्हें एक साल के लिए वातावरण में मौजूद विद्युत शक्ति का अध्ययन करने के लिए मौसम विभाग में नियुक्त किया गया। सन १९०० में उन्हें सिडने ससेक्स कॉलेज की फेलोशिप प्राप्त हुई और उन्हें भौतिक शास्त्र के अध्यापक के रूप में नियुक्त किया गया। अगले १८ वर्षों तक उसी कॉलेज में भौतिकी शास्त्र सिखाने बाद सन १९१८ में उन्हें मौसम विभाग के विद्युत विभाग के प्राध्यापक के रूप में नियुक्त किया गया। इस से पूर्व सन १९१३ में उन्हें ’सौर भौतिकी’ निरिक्षण केंद्र में मौसम भौतिकी विषय के निरीक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था। चार्ल्स ने तू़फान से निर्माण होनेवाली बिजली के बारे में बहुत सारे संशोधन यहीं किए। सन १९२५ में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में उन्हें सृष्टि विज्ञानशास्त्र के प्राध्यापक के पद पर नियुक्त किया गया। सन १९३४ में चार्ल्स निवृत हुए।

सन १९०० में लंदन रॉयल सोसाइटी ने उन्हें अपना फेलो बनाया। सन १९११ ह्यूगेस पदक और सन १९२० में उन्हें रॉयल पदक तो सन १९२० में ही कैंब्रिज फिलोसोफिकल सोसाइटी ने उन्हें होपकिन्स पारितोषिक प्रदान किया। सन १९२० में एडिनबर्ग के रॉयल सोसाइटी ने गनिंग पारितोषिक प्रदान। अमेरिका के फ्रैंकलिन इंस्टिट्यूट ने सन १९२५ में हॉवर्ड पॉट्स पदक प्रदान किया था।

विल्सन को विद्यार्थी दौर से ही मौसम के प्रति अधिक जिज्ञासा थी। कोहरा और बादल कैसे निर्माण होते हैं? वातावरण में बिजली कैसे निर्माण होती है, इसके प्रति जिज्ञासा की वजह से उनहोंने जो संशोधन किया, इस से उन्होंने खोज की उस से उन्हें प्रसिद्धि मिली और सन १९२७ में उन्हें नोबेल पुरुस्कार से सम्मानित किया गया।

Charles Thomson Rees Wilson

किरण उत्सर्ग के मूल तत्त्व से निकले हुए किरण हवा से गुज़रते हुए उस हवा के आकारमान में अचानक वृद्धि करने से मेघ बनता है क्या, यह देखने के लिए प्रयोग किया। तब उन्होंने पाया कि, जब हवा में धुल नहीं होती और मेघ निर्माण करने के लिए हवा का आकारमान और वृद्धि करने से उसका जो आकारमान है उस के सीधे प्रमाण से कम सीधा प्रमाण हो और उसे हवा से किरण उत्सर्ग होने देने से मेघ निर्माण होता है। इस से उन्होंने जाना कि, उनकी सोच सही है।

इस प्रयोग के बाद उन्होंने कई सालों तक प्रयोगों की श्रृंखला जारी रखी। सन १८९७ में विल्सन ने मेघ निर्माण करने हेतु इस्तेमाल किया हुआ पात्र आकृति में दिखाया गया है ।

मूलतत्त्व कानों के संशोधन हेतु विल्सन की मेघपात्र पद्धति अत्यंत उपयुक्त साबित हुई है। लार्ड रदरफोर्ड के विधान से उसकी उपयुक्तता का पता चलता है, विज्ञान के इतिहास में विल्सन मेघपात्र पद्धति एक अत्यंत मूल्यवान तथा आश्चर्यजनक खोज है। ऋण कणों पर कितना विद्युतभार होता है यह साबित करने के लिए सर जे. जे. थॉमसन ने विल्सन मेघपात्र का इस्तेमाल किया है। सन १९३६ का नोबेल पुरुस्कार पानेवाले एंडरसन और सन १९४८ में नोबेल पुरुस्कार पानेवाले ब्लॅकेट ने अपने संशोधन के लिए इसी विल्सन मेघपात्र का इस्तेमाल किया था। इसी से चार्ल्स विल्सन के संशोधन का महत्त्व समझा जा सकता है।

९० साल तक एक सच्चे संशोधक की तरह जीवन व्यतीत करने पर १५ नवम्बर १९४९ को चार्ल्स विल्सन का निधन हो गया।

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