चंडीगढ़ भाग-२

चंडीगढ़ शहर में दाखिल होते ही एक प्रसन्नता का एहसास होता है और इसकी वजह है, इस शहर की सुनियोजित रचना।

चंडीगढ़ शहर को एक प्लान्ड सिटी का रूप देने में जिन आर्किटेक्टस् और प्लानर्स का योगदान रहा है, उनका परिचय गत लेख में ही हमें हो चुका है। इनके साथ ही कई भारतीय आर्किटेक्टस्, प्लानर्स एवं इंजिनिअर्सने भी इस शहर को एक सुनियोजित रूप देने में अपना योगदान दिया है।

नियोजनबद्ध रूप में बनाया गया शहर होने के कारण चंडीगढ़ में विशिष्ट वास्तुओं का निर्माण विशिष्ट स्थान पर ही किया गया है। जैसे कि प्रशासकीय कार्य से संबंधित महत्त्वपूर्ण इमारतों को हम ‘कॅपिटोल कॉम्प्लेक्स’ में ही देखते हैं।

‘कॅपिटोल कॉम्प्लेक्स’ के विभाग में विधानसभा, सचिवालय, उच्च न्यायालय (हायकोर्ट) आदि महत्त्वपूर्ण सरकारी कामकाज़ करनेवालीं इमारतें हैं। इसी कॅपिटोल कॉम्प्लेक्स में एक आधुनिक वास्तुशिल्प दिखायी देता है। इस शिल्प को ‘ओपन हँड’ शिल्प कहते हैं।

अपने नाम की तरह ही यह ‘ओपन हँड’ शिल्प एक हाथ के पंजे का शिल्प है। इस शिल्प का यानी हाथ के पंजे का निर्माण धातु से किया गया है। इसकी ऊँचाई लगभग १४ मीटर्स है और वज़न लगभग ५० टन। हवा की गतिके अनुसार यह शिल्प अपनी दिशा बदलता है। ‘ओपन हँड’ शिल्प को चंडीगढ़ शहर का सम्मानबिन्दु माना जाता है। यह शिल्प एकता और शांति का पैग़ाम देता है ऐसी विशेषज्ञों की राय है। शिल्प-विशेषज्ञों के अनुसार ‘ओपन हँड’ यह शिल्प यह संदेश देता है कि ‘हम अच्छी बातें देने एवं स्वीकार करने के लिए तैयार हैं।’

अब कॅपिटोल कॉम्प्लेक्स से सीधा चलते हैं, शहर के फ़ेंफडें यानी यहाँ पर रहनेवालें कई बग़ीचों की ओर।

चंडीगढ़ शहर में कई बग़ीचें (गार्डन्स) हैं और हर एक गार्डन की अपनी ख़ासियत भी है।

बग़ीचों का यह सारा विभाग ही ‘लेजर व्हॅली’ इस नाम से जाना जाता है। रुह को सुकून देनेवाला यह विभाग। आँखों के साथ साथ मन को भी सु़कून देनेवाली हरियाली, तरह तरह के फूल, घ्राणेन्द्रिय (नाक) की तृप्ति करनेवाली फूलों की खुशबुएँ यहाँ पर हैं। लेजर व्हॅली शहर के किसी एक हिस्से तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सारे शहर भर में ही है। इन बग़ीचों का निर्माण शहर के विभिन्न इलाक़ों में किया गया है। शहर का प्लनिंग करते समय ही इन बग़ीचों का भी प्लानिंग किया गया होने के कारण सारे शहर को इन फ़ेंफडों से ताज़ी, शुद्ध हवा मिलती है।

अब आप शायद यह सोच रहे होंगे कि बग़ीचें तो सब जगह होते हैं। लेकिन चंडीगढ़ के इन गार्डन्स का अनोखापन यहाँ आनेपर ही आपकी समझ में आ सकता है।

इस शहर में दो ‘बोटॅनिकल गार्डन्स’ हैं। युनिव्हर्सिटी के बोटॅनिकल गार्डन की ख़ासियत यह है कि वहाँ पर कॅक्टस की विभिन्न प्रजातियाँ देखने मिलती हैं, वहीं अन्य बोटॅनिकल गार्डन में वनस्पती की कई दुर्लभ प्रजातियाँ मौजूद हैं।

रोज़ गार्डन’ यानी गुलाबों का बगीचा। ग़ुलाब का नाम सुनते ही हमारा मन झूम उठता है और एक भीनी भीनी ख़ुशबू मन को सुकून देती है। यही अनुभव हम चंडीगढ़ शहर के रोज़ गार्डन में प्राप्त करते हैं। कहते हैं कि यहाँ पर गुलाबों के १७,००० पौधें हैं और लगभग १६०० प्रजातियाँ। २७ एकर्स की ज़मीन पर फैले हुए इस गार्डन का निर्माण सन १९६७ में किया गया। इस बग़ीचे में सालभर रंगों का जश्‍न रहता है। इसे एशिया खंड का एक विशेषतापूर्ण रोज़ गार्डन माना जाता है।

अड़हूल (हिबिस्कस-शू फ्लॉवर) यह कोई महकता हुआ मशहूर फूल तो नहीं माना जाता। मग़र उसकी अपनी एक ख़ूबसूरती तो ज़रूर है। चंडीगढ़ शहर में एक अनोखा ‘हिबिस्कस गार्डन’ है। इस गार्डन में अड़हूल के फूलों की ४० प्रजातियाँ देखने को मिलती है। अड़हूल का फूल सालभर खिलनेवाला है, इसी कारण इस गार्डन में पूरे सालभर किसी न किसी रंग के अड़हूल के खिले हुए फूल दिखाये देते है।

अड़हूल की तरह ही होता है बोगनवेलि का फूल, जो कोई ज्यादा मशहूर नहीं होता। रास्तों से गुजरते हुए हमें कई बार बोगनवेलि दिखायी देती है। उसके पतले नाज़ूक से रंगबिरंगी फूल जब बेलिपर उगते हैं, उसी समय उनपर ध्यान जाता है। वैसे देखा जाये तो बोगनवेलि एक शो प्लांट के रूप में ही मशहूर है।

अब बोगनवेलि के बारे में कहने का उद्देश्य यही है कि चंडीगढ़ में प्रमुख रूप से बोगनवेलि का एक बग़ीचा है। २० एकर्स में फैले हुए इस बग़ीचे में बोगनवेलि के लगभग ६५ प्रकार देखने मिलते हैं। ज़रा सोचिए कि विभिन्न रंगों की बोगनवेलियाँ जब खिलती होंगी, तब वह नज़ारा कितना ख़ूबसूरत होगा।

महक, फूलों की ख़ुशबू यह फूलों की अपनी ख़ासियत है। इन्सानों को सुकून देनेवाली फूलों की यह महक! ख़ुशबूओं को बिखेरनेवाला एक बग़ीचा भी चंडीगढ़ में है। इस बग़ीचे में प्रमुख रूप से सुगन्धित ङ्गूलों के ही पेड़-पौधे हैं। रातरानी, मोगरा, चमेली, चम्पा, पारिजातक, जूही जैसे विभिन्न प्रकार के सुगन्धित फूल जब यहाँ पर खिलते हैं, तब मनुष्य का नाक और मन भी यक़ीनन ही झूम उठता होगा।

अब इससे यह भी निष्कर्ष मत निकालिए कि इस शहर में सिर्फ़ फूलों के पेड़-पौधे ही हैं। कई छोटे बड़े पेड़, मध्यम आकारवाले वृक्ष हमें शहर में कई जगह दिखायी देते हैं। इनमें से अधिकतर पेड़ औषधि दृष्टिकोन से महत्त्वपूर्ण हैं, उपयोगी हैं और इसी वजह से उनका ख़ास ख़याल भी रखा जाता है।

इस शहर में ऊपर उल्लेखित बग़ीचों के अलावा अन्य बग़ीचें भी हैं। उनमें से दो महत्त्वपूर्ण बग़ीचों का ज़िक्र करना ज़रूरी है।

शान्तिकुंज’ यह बग़ीचा अपने नाम के अनुसार ही शान्ति का एहसास देता है। इस बग़ीचे में फूल, पत्ते, बेलियाँ, पेड़-पौधें तो है ही, लेकिन यहाँ पर इन सबके साथ साथ आप शान्ति का भी अनुभव कर सकते हैं।

एक अन्य उल्लेखनीय स्थान है, ‘स्मृति उपवन’। इस उपवन की शुरुआत ही की गयी, भारत के पहले प्रधानमंत्री की स्मृति में एक पेड़ लगाकर। इस दुनिया से विदा ले चुके मानवों की स्मृति को यहाँ पर वृक्ष के रूप में जतन किया जाता है और इसीलिए इसका नाम रखा गया है – ‘स्मृति उपवन’।

चंडीगढ़ के बग़ीचों की सैर करते हुए वक़्त कैसे बीता इस बात का पता ही नहीं चला। है ना! अब सीधे चलते हैं, ‘सुखना झील’ की ओर।

शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में बसे चंडीगढ़ में एक विशाल जलाशय का निर्माण किया गया, सन १९५८ में। पेड़ यह जिस तरह आँखों को सु़कून देते हैं, मन को तरोताज़ा करते हैं, उसी तरह ज़ल भी मानव को नवचेतना प्रदान करता है। अत एव इस सुनियोजित शहर में इस जलाशय का निर्माण किया गया।

शिवालिक पहाड़ियों पर से बहकर आनेवाले जल को इस जलाशय में संग्रहित किया जाता है। ‘सुखना झील’ (सुखना लेक) यह चंडीगढ़ शहर का एक अविभाज्य अंग है। यह शहर के निवासियों तथा सैलानियों का मौज करने का स्थल है।

इस झील की जगह को इस प्लान्ड सीटी का नियोजन करते समय ही निश्‍चित किया गया था। अत एव इस शहर के निर्माणकर्ता भी इस झील से अच्छी तरह परिचित थे और उनका इस झील के साथ क़रीबी रिश्ता भी जुड़ गया था। कहा जाता है कि इस शहर के प्लानर्स और आर्किटेक्ट्स् में से एक ने यह इच्छा ज़ाहिर की थी कि उनकी मृत्यु के पश्‍चात् उनकी रक्षा को इस झील में ही विसर्जित किया जाये।

इस झील का एक अविभाज्य अंग है, ‘सुखना चिड़ियाघर’। यहाँ पर स्थानीय पंछियों के साथ साथ कई सैलानी पंछी भी देखने मिलते हैं। साधारण रूप में अतिशीत इलाक़ों में रहनेवाले पंछी जाड़ों के मौसम में उन इलाकों के मुक़ाबले कम ठंड रहनेवाले इस शहर में पनाह लेते हैं। इस इला़के में कई तरह के पंछी दिखायी देते हैं। सैबेरियन डक, क्रेन्स जैसे पंछी जाड़ों के मौसम में यहाँ पर दिखायी देते हैं। इनके साथ साथ यहाँ के चिड़ियाघर में तरह तरह के प्राणि भी दिखायी देते हैं। लगभग २६०० हेक्टर्स में यह चिड़ियाघर फैला हुआ है।

आज इस शहर की सैर करते समय प्राणि, पंछी, फूल, पत्तें, पेड़, जल इन कुदरत के नज़ारों को हमने देखा। भूमि यानी ज़मीन, जो हमें सहारा देती है, वह भी इस कुदरत का ही एक अविभाज्य अंग है। ज़मीन पर रहनेवाले पत्थर, मिट्टी ये भी तो कुदरत का ही एक हिस्सा हैं। अब पत्थर तो किसी इमारत या वास्तु के निर्माण में उपयोग में लाया जाता है, इतना ही हम पत्थर के बारे में जानते हैं। लेकिन इसी पत्थर में से कुछ अद्भुत एवं अनोखा सा बनाया जाये तो वह कितना ख़ूबसूरत होगा। चलिए, वही देखने तो हमें जाना है, लेकिन थोड़ी देर तक विश्राम करने के बाद।

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